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Thursday, June 1, 2023

शेरनी: एक और हिन्दू विरोधी एजेंडे से भरी फिल्म

विद्या बालन अभिनीत फिल्म शेरनी अंतत: एक और हिन्दू विरोधी फिल्म, जिसने अंतत: जाकर हिन्दुओं को ही नीचा दिखाया। तथ्यों के साथ रचनात्मक स्वतंत्रता लेते समय आखिर हकीकत में अवनि के लिए लड़ाई लड़ने वाली, अवनि को मारने वाले और अवनि का यह पूरा ऑपरेशन करने वाली अधिकारी के नाम, धर्म आदि क्यों बदल दिए गए, इस पर ध्यान देना अनिवार्य है।

विद्या बालन अभिनीत फिल्म में अवनि अर्थात शेरनी का शिकार करने के लिए गठित टीम की हेड हैं विद्या विंसेट, अर्थात एक ईसाई महिला, जिसे गहने आदि पसंद नहीं हैं और अधिकारी के रूप में वह बिंदी आदि लगाना पसंद नहीं करती है। चूंकि बिंदी लगाने से महिलाएं कमज़ोर हो जाती हैं, तो एक सशक्त औरत को बिंदी नहीं लगानी चाहिए, इस फेमिनिज्म को और पुष्ट करने के लिए असली अधिकारी के एम अभर्ण के बिंदी वाले लुक को नहीं लिया गया।  जिन्होनें अवनि को पकड़ने का अभियान ही नहीं चलाया था, बल्कि उसके लिए जमीन आसमान एक कर दिया था।

मगर “अवनि” का मामला कहकर बेची जा रही इस फिल्म को बनाने के लिए असली नायिका से सम्पर्क नहीं किया गया था और उनका यह भी कहना है कि इस फिल्म में मौलिक बहुत कम है और कल्पना बहुत है। टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि फिल्म बनाने वाली टीम ने उनसे संपर्क नहीं किया। और उन्होंने यह भी कहा कि कुछ तथ्यों को तो फिल्म में वैसा ही लिया है, मगर कुछ तथ्यों को एकदम तोड़ दिया गया है। मगर वह यह कहती हैं कि हो सकता है कि रचनात्मक स्वतंत्रता के लिए ऐसा किया हो।

यदि के एम अभर्ण से बात की जाती तो वह बतातीं कि उन्होंने कैसे लोगों का गुस्सा खुद झेला था, चूंकि उनके ज्वाइन करने से पहले ही टी 1 अर्थात अवनि पांच लोगों को मार चुकी थी, इसलिए लोग सड़कें ब्लाक कर देते थे, और अंतिम संस्कार भी कराने से इंकार कर देते थे। ऐसे में के एम अभर्ण ने ही आगे बढ़कर मोर्चा सम्हाला था। और उन्होंने नौ लेडी गार्ड्स की टीम बनाई थी, जो लोगों तक पहुँचने के लिए गाँव वालों के साथ संपर्क रखती थीं। वर्तमान में वह बैम्बू रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर में निदेशक हैं:

हाँ रचनात्मक स्वतंत्रता ही है, जो अवनि को मारने वाले असगर अली खान को रंजन राजहंस कर देती है। कलावा पहनने वाले रंजन राजहंस का परिवार विवादित शूटर नहीं था, बल्कि असगर अली खान का परिवार विवादित शूटर था। शफात अली, जिसे यवतमाल में अवनि को मारने का कार्य दिया गया था, वह निजी तौर पर वन्य जीवों का वध करने के लिए कुख्यात हैं और यही कारण था कि मेनका गांधी शफात अली के बेटे असगर अली को बुलाने के खिलाफ थीं। परन्तु ऐसा नहीं हुआ, और असगर अली ने तमाम नियमों को ताक पर रखते हुए अवनि को गोली मार दी थी।

https://www.firstpost.com/india/shafat-ali-khan-private-hunter-tasked-with-taking-down-tigress-avni-has-history-of-run-ins-with-animal-conservationists-5501511.html

इस फिल्म में एक नहीं कई आपत्तिजनक दृश्य हैं, जो खुलकर हिन्दू धर्म पर प्रहार करते हैं। जैसे विद्या का पूरा नाम विद्या विंसेट है। अर्थात ईसाई है। परन्तु वह बार बार विद्या ही उच्चारण होता है, जिससे सुनने में हिन्दू का बोध होता है। और उस पर जो विद्या का परिवार दिखाया है, वह जिस प्रकार की हरकतें करता है, जैसे उसकी माँ और सास, तो उससे यही बोध होता है कि “हिन्दू” परिवारों में माएं ऐसी होती हैं। जबकि यह ईसाई परिवार है!

और एक और दृश्य है जिसमें उस शेरनी को मारने/पकड़ने के लिए कार्यालय में हवन हो रहा है और विद्या विसेंट और एक मुस्लिम चरित्र उसे देखकर उपहास पूर्ण तरीके से हंस रहे हैं। और वह हिन्दू शिकारी भी उस हवन का हिस्सा है। यह दृश्य जानबूझकर रखने का क्या औचित्य था? क्या इसके स्थान पर के एम अभर्ण द्वारा उठाए गए कदम नहीं दिखाए जा सकते थे, जिससे वाकई एक सशक्त चरित्र का संदेश जाता!

मजे की बात यह है कि के एम अभर्ण के साथ उनके वरिष्ठों ने कैसा व्यवहार किया, वह भी नहीं दिखाया है और असगर खान से माफी मांगने के लिए उन्हें उनके अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किया गया था, और वह भी क्यों, जिससे उस शिकारी का समर्थन कर रहे मंत्री को खुश किया जा सके। ऐसा जेरिल ए बनाइट का कहना है, जिन्होनें अवनि के मामले में जनहित याचिका दायर की थी।

https://timesofindia.indiatimes.com/city/nagpur/real-sherni-focus-on-challenges-on-field-but-several-facts-fictionalized/articleshow/83700644.cms

हालाँकि इस मामले में मुकदमा लड़ा था वन्यजीवन कार्यकर्ता संगीता डोगरा ने, जिन्होनें यह कहा था कि गाँव वालों ने ही पेशेवर शिकारी के लिए जश्न मनाया था। मगर फरवरी 2021 में संगीता डोगरा ने मुम्बई उच्च न्यायालय से अपील वापस ले ली थी क्योंकि न्यायालय ने यह अपील खारिज कर दी थी, जबकि इस फिल्म में क्या दिखा दिया गया कि विद्या विन्सेंट और नूरानी जी मामला लड़ रहे हैं। जबकि मुकदमा लड़ा संगीता डोगरा ने! और यह भी नहीं बताती है फिल्म कि आखिर अवनि के बच्चों का क्या हुआ?

हालांकि जब फिल्म ‘शेरनी’ बन रही थी तो असगर अली खान ने शेरनी फिल्म के निर्माताओं को नोटिस भेजकर अपनी इमेज खराब करने का आरोप लगाया था। मगर इसमें तो असगर अली खान का नाम ही नहीं है, इसमें तो कोई राजहंस हैं, तो असगर साहब का नाम कैसे खराब हुआ? निर्माता तो पहले से ही इतना डरा हुआ है कि वह असली नाम और असली कहानी ले ही नहीं सकता, वह यह दिखा ही नहीं सकता कि शफाक अली क्रूर शिकारी है, जिसकी क्रूरता असगर अली खान में उतर आई है।

इसलिए वह एक कलावा पहनने वाले रंजन राजहंस और उसके परिवार को क्रूर शिकारी बनाकर प्रस्तुत करता है, जिसके मन में सरकार के प्रति, इस व्यवस्था के प्रति आदर नहीं है। और वह शेरनी को जानबूझकर मार देता है, जो केवल मारना चाहता है, और जिसके मन में जीव के प्रति आदर नहीं है।

क्या संदेश है कि देवी का यज्ञ केवल इसलिए किया जा रहा है कि देवी के वाहन शेर (शेरनी) को मारा जा सके।

जबकि नवाब शफात अली ने मिड डे के साथ बातचीत में यवतमाल की आदमखोर शेरनी को आतंकवादी और कातिल कहा था। और साथ ही यह भी कहा था कि “शेर और आदमी एक साथ नहीं रह सकते हैं.” तो जो रंजन राजहंस अपने परिवार के बारे में कह रहा है फिल्म में, कि उसका परिवार इतने राज्यों के साथ मिलकर जंगली जानवरों को निर्दयता पूर्वक मारता है वह दरअसल शफात अली का परिवार है और जो मानव और पशुओं के सह अस्तित्व में विश्वास नहीं करता है।

हालांकि नोटिस मिलने के बाद अबुन्दंतिया एंटरटेनमेंट ने नोटिस का जबाव देते हुए कहा था कि यह फिल्म एक काल्पनिक कार्य हैं, जिनमें वह तत्व सम्मिलित हैं, जिन्हें हमने काल्पनिक रूप से चित्रित किया है। और असगर अली खान ने कोई भी सबूत नहीं दिया है कि यह फिल्म उनके परिवार को गलत दृष्टि से दिखाती है।”

कुल मिलाकर शेरनी ऐसी फिल्म है जिसमें असली कहानी पर फिल्म बनाने का दावा तो किया गया, परन्तु उसमें नायिका का संघर्ष नहीं दिखाया गया, के एम अभर्ण से संपर्क नहीं किया गया, उनकी बिंदी वाली भारतीय छवि को बिंदी न लगाने वाली ईसाई अधिकारी से बदल दिया गया! ईसाई परिवार को हिन्दू परिवार की तरह पेश किया गया और साथ ही एक कलावा पहनने वाले व्यक्ति को वह व्यक्ति बनाकर प्रस्तुत किया गया, जिसने निर्दयता से सारे नियमों का उल्लंघन करते हुए एक ऐसी शेरनी को मार दिया था, जिसके छोटे छोटे बच्चे थे, जबकि उसे मारा था क्रूर शिकारी असगर अली खान ने!

यदि काल्पनिक कहानी होती तो एक बार माना जा सकता था कि कल्पना का सम्मिश्रण है, परन्तु असली कहानी में कहानी ले लेना और नायक और खलनायकों के धर्म बदल देना, यह हिन्दुओं के साथ किया जाने वाला सबसे बड़ा छल है और बॉलीवुड सदा से यह करता आया है!


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