कथित मॉडर्न जगत कितना मॉडर्न है, यह बार बार उनके महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण को देखकर पता चल जाता है। इन दिनों इटली को लेकर पश्चिम का मीडिया भौचंक्का है, क्योंकि वहां पर दो घटनाएं हुई हैं, एक तो दक्षिणपंथी पार्टी चुनावों में जीती है और दूसरा सबसे महत्वपूर्ण है कि दक्षिणपंथ से भी एक महिला ने चुनाव जीता है। अर्थात इटली ने एक महिला पर अपना विश्वास व्यक्त किया है।
पत्रकार पीटर स्वीडन ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा कि
मीडिया परेशान है,
वैश्विक जन परेशान है,
ईयू हैरान है
क्योंकि इटली ने पहली बार एक महिला को प्रधानमंत्री चुना है
एशिया को पिछड़ा कहने वाला पश्चिम अभी तक इतना मॉडर्न नहीं हो पाया है कि वह एक महिला को सर्वोच्च पद लोकतान्त्रिक तरीके से सौंपे जाने को लेकर सहज हो सके! यह एक बहुत बड़ी विडंबना है। भारत में जबकि साधारण परिवार का कोई भी व्यक्ति नेता बनने का सपना देख सकता है और विचारधारा से इतर भारत में कई महिला नेता हैं जिन्होनें बिना किसी राजनीतिक परिवार की सीढ़ी के अपना राजनीतिक कैरियर बनाया।
परन्तु पश्चिम महिलाओं को लेकर इतना उदार नहीं है और वह भी उन महिलाओं को लेकर तो तनिक भी नहीं, जो अपने देश की, अपने राष्ट्र के हितों की बात करती हैं। वह उन महिलाओं को लेकर ही उदार है जो उनके वैश्विक एजेंडा को लेकर साथ चलती हैं। वह उन महिलाओं की बात करता है जो उसके औपनिवेशिक एजेंडे के अनुसार कार्य करती हैं।
और इटली में जो हो रहा है, उससे सारा विश्व पूरी तरह से हैरान है। जियोर्जिया मेलोनी, जो परिवार की बात करती हैं, जो अपनी राष्ट्रीय पहचान की बात करती हैं और उनका वीडियो भी काफी अधिक साझा किया जा रहा है। जिसमें वह यह कहती हुई दिखाई दे रही हैं कि क्यों परिवार आवश्यक है।
उनका दृष्टिकोण एलजीबीटी को लेकर भी स्पष्ट है। इस्लामिक हिंसा का भी वह विरोध करती हैं। बीबीसी ने उनके एक पुराने भाषण को कोट करके लिखा है, जो मेलोनी ने स्पेन की दक्षिणपंथी पार्टी वॉक्स को संबोधित करते हुए दिया था। उन्होंने कहा था “प्राकृतिक परिवार को हाँ, एलजीबीटी लॉबी को न, यौनिक पहचान को हाँ, लैंगिक विचारधारा को न, इस्लामी हिंसा को न, सीमा सुरक्षा को हाँ, बहुत बड़े स्तर पर शरणार्थियों को न, बड़े अंतर्राष्ट्रीय वित्त को न, ब्रुसेल्स के ब्युरोकेट को न!”
वहीं इटली में भी लेफ्ट का वही रोना आरम्भ हो गया है, कि संसद में दक्षिण पंथ जीता है, देश में नहीं! यही कुतर्क भारत का भी वामपंथ और भारत का विपक्षी दल कांग्रेस लगातार दो लोकसभा पराजय से देता आया है।
twitter पर एक यूजर ने सीएनएन के शीर्षक का स्क्रीनशॉट साझा करते हुए लिखा कि सीएनएन ने पूरे छ पत्रकारों को इस काम पर लगाया कि कसी मेलोनी मुसोलिनी जैसी है जबकि उन्हें इस बात पर फोकस करना चाहिए था कि वह इटली की पहली महिला प्रधानमंत्री है
पूरी दुनिया भर की फेमिनिस्ट जो इस बात को लेकर पागल हो गयी थीं, कि अमेरिका में उपराष्ट्रपति एक महिला बनी है, चुनी गयी है, उनके मुंह पर ताला लगा हुआ है। यूनिवर्सल सिस्टरहुड की पूरी की पूरी अवधारणा तब आकर समाप्त हो जाती है, जब कोई ऐसी महिला उच्च पद पर आती है, जिसके विचार उस पूरी लॉबी के विरुद्ध होते हैं। इसी पर यूजर भी तंज क्स रहे हैं:
इटली में मेलोनी की जीत के चलते लिबरल मीडिया सकते में है। जहाँ वह पूरी तरह से उसे फासीवादी करार दे रहा है, तो वहीं अभी से इस बात को कह रहा है कि मेलोनी की पार्टी को शासन का अनुभव नहीं है।
मेलोनी जमीन से जुड़ी हुई नेता रही हैं और उनके पास एक लम्बा राजनीतिक अनुभव है। वह बात दूसरी है कि उनका राजनीतिक अनुभव उस अनुभव के अनुसार नहीं है, जो वोक राजनीतिक चाहती है। वह कहीं न कहीं उस एजेंडे के विरुद्ध है जो वोक लिबरल चाहता है, तभी निर्वाचन से पहले ही यह कहा जाने लगा था कि यदि इटली की जनता अलग मार्ग चुनती है, या उस विचार को चुनती है, जिससे वह असहमत हैं, तो यूरोपीयन युनियन प्रतिबन्ध लगाएगी।
फेमिनिस्टों में पसरी चुप्पी इस बात को स्पष्ट कर रही है कि यूनिवर्सल सिस्टरहुड दरअसल कुछ है ही नहीं। यदि होता तो वह आज इटली की पहली निर्वाचित महिला प्रधानमंत्री के पक्ष में लिख रही होतीं, वह उनकी राजनीतिक यात्रा की कहानियां लिख रही होतीं, परन्तु मेलोनी के मामले में सब कुछ बेकार है। सब कुछ व्यर्थ है क्योंकि मेलोनी उनकी परिभाषा में फिट नहीं बैठती हैं, वह एलजीबीटी पर गंदगी फैलाना पसंद न करके एलजीबीटी नामक गंदगी को ही समाप्त करना चाहती हैं।
वहीं उनकी इस जीत को लेकर एजेंडा पत्रकार जो अब तक कट्टर इस्लामी एजेंडा चलते हुए आए और जो यह कह रहे थे कि अमेरिका के लिए वास्तविक समस्या इस्लाम नहीं बल्कि “ईसाई राष्ट्रवाद” है, वह पत्रकार यह कह रहे हैं कि अब “दक्षिणपंथी” लोग महिलाओं को, और बच्चों की माताओं को प्रयोग करेंगे:
यह एक अजीब प्रकार की थेथरई है! दरअसल पूरी की पूरी लॉबी को यह समझ नहीं आ पा रहा है, कि इतने विष के बाद भी लोग वोक-लिबरलवाद से परेशान होकर राष्ट्रवाद को क्यों चुन रहे हैं? क्यों वह अपनी पहचान, अपनी जड़ों की ओर जा रहे हैं? क्यों उनके लिए राष्ट्र अनिवार्य है?
क्यों उनके लिए घर की दीवारे अनिवार्य हैं, जबकि वोक लिबरल घर की दीवारों को असुरक्षित एवं बाजार को सुरक्षित बताता है, वहीं कट्टर इस्लाम अपनी औरतों को परदे में रखकर शेष महिलाओं को बेहया मानता है, जिन्होनें पर्दा नहीं किया हुआ होता है!
इटली में जो हुआ है, और जो हो रहा है, उसका प्रभाव क्या पड़ेगा यह तो देखना होगा, परन्तु वोक-लिबरल लॉबी इस जीत से हिली हुई है और कोई हैरानी की बात नहीं है यदि इटली के विषय में भी आन्दोलन आदि के समाचार प्राप्त होने लगें!
बहरहाल, इस पूरे प्रकरण ने “यूनिवर्सल सिस्टरहुड” की पोल खोलकर रख दी है! फिर भी मेलोनी की मुस्कान यह बताने के लिए पर्याप्त है कि संघर्ष की जीत इतनी ही सुन्दर होती है, सहज होती है!