नोआखाली का नाम आते ही वर्ष 1946 की याद आ जाती है, जिसमें हिन्दुओं की निर्ममता से हत्याएं की गयी थीं। पर अब नोआखाली के दंगों की शृंखला में वर्ष 2021 भी जुड़ गया है। बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के पंडालों को बर्बाद करने के बाद इस्कॉन के मंदिर पर भी जिहादी तत्वों ने हमला किया और इस्कॉन मंदिर को ही नहीं तोडा बल्कि साथ ही श्रद्धालुओं पर भी हमले किए।
इस्कॉन बांग्लादेश ने हमले की तस्वीरें साझा कीं, जिसमें दिख रहा है कि इस्कॉन के संस्थापक अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद की भी प्रतिमा को जला दिया।
पूरे बांग्लादेश में अभी तक हिन्दुओं पर हमले हो रहे हैं। क्या यह समझा जाए कि हिन्दुओं पर फिर से आक्रमणों का नया दौर आरम्भ हो चुका है? परन्तु वह थमा ही कब था? यह प्रश्न स्वयं से किया जाना चाहिए कि क्या पिछले चौदह वर्षों में यह आक्रमण कहीं थमे हैं? जिहादी तत्वों के आक्रमण होते ही रहे हैं। उन्होंने कब थमने का प्रयास किया, हाँ हिन्दुओं को ही गलत इतिहास का नशा करवाकर ऐसा कर दिया है कि उन्हें अब हमलावरों से प्रेम हो गया है।
कारण क्या थे और क्या अभी तक हैं, उन पर बात की जाए या फिर आज की वास्तविकता को देखा जाए? अब प्रश्न यह आ रहे हैं।
हम एक विचित्र समय में रह रहे हैं, जहाँ पर जो पीड़ित वर्ग है उसे ही ऐसा वर्ग बनाकर प्रस्तुत कर दिया गया है, जो उत्पीडन करता है। जबकि ऐसा है नहीं!
बांगलादेश में जो हुआ वह हैरान करने वाला इसलिए नहीं है क्योंकि एक बड़ा वर्ग हिन्दुओं के साथ हुई हिंसा को हिंसा समझता ही नहीं है। उसके लिए हिन्दुओं का रहना या न रहना कोई मुद्दा नहीं है, हाँ, उनके लिए एक झूठे धर्मनिरपेक्षता के नशे में घूमना महत्वपूर्ण है।
वह वर्ग ऐसा है, जो दुर्गा पूजा की कलात्मकता के नाम पर उत्तर भारत के हिन्दुओं को पिछड़ा बताते हुए यह स्थापित करने का प्रयास करता है कि वह श्रेष्ठ ही नहीं है बल्कि अलग है। उस वर्ग ने हिन्दुओं को उसके दर्द से ही काट दिया है।
बांग्लादेश में नोआखाली में जो हुआ, और जो उससे पहले हुआ, वह न ही पहली बार हुआ है और न ही आख़िरी बार होगा। वह होता ही रहेगा! आज भी बांग्लादेश में हमले हो रहे हैं। और हालांकि कहने के लिए बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इन हमलों की निंदा करते हुए कड़ी कार्यवाही की बात की और उन्होंने यह भी कहा कि कोई भी व्यक्ति हो उसे छोड़ा नहीं जाएगा और किसी भी धर्म का अपराधी हो, उसे सजा जरूर दी जाएगी।
मगर जो उसके बाद कहा है वह थोडा चौंकाने वाला है। उन्होंने भारत को नसीहत देते हुए कहा कि भारत में कुछ भी ऐसा न हो जिससे यहाँ पर प्रभाव पड़े।
इसके निहितार्थ क्या हैं? बीबीसी बांग्लादेश की खबर के अनुसार उन्होंने कहा कि “भारत में भी ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए, जिससे हमारे देश पर कुछ असर पड़े क्योंकि अंतत: इससे यहाँ के हिन्दू समुदाय पर असर पड़ता है।”
इसका अर्थ क्या हो सकता है? हो सकता है इसका अर्थ यह हो कि भारत में मुसलमानो को छुआ न जाए या कहें भारत में भी वही जिहादी तत्व राज करें, जो वहां करते हैं। वैसे भी भारत में जिहादी तत्वों को बौद्धिक प्रश्रय प्राप्त है ही। अधिकाँश जिहादी तत्वों को बौद्धिक छाँव भारत के बुद्धिजीवियों और पत्रकारों द्वारा दी जाती है। वह कभी भी योग्य की मांग नहीं करते, वह हमेशा ही हर मुद्दे को मुस्लिम पहचान तक लेकर जाते हैं।
यहाँ तक कि अभी हाल ही में शाहरुख खान का बेटा आर्यन खान ड्रग्स के मामले में जेल में है, मगर एजेंडा चलाने वाले कुछ कुबुद्धिजीवियों और मुस्लिम पत्रकारों की दृष्टि में वह मुस्लिम सुपरस्टार का बेटा होने के कारण जेल में है। हर बात में मुस्लिम मुस्लिम लाने वाले तो कई लोग हैं यहाँ पर! और इस आधार पर उन्हें छूटें भी काफी प्राप्त हैं। फिर इस बात का क्या अभिप्राय है कि भारत में कुछ ऐसा नहीं किया जाना चाहिए जिसका असर हमारे देश पर पड़े और फिर हमारे हिन्दू समुदाय को नुकसान पहुंचे।
यदि कुछ किए जाने की बात है तो अभी अधिक दिन नहीं हुए हैं, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश के दौरे पर गए थे और उनके जाते ही पूरे देश में हिंसा फ़ैल गयी थी। हिन्दुओं के मंदिरों को निशाना बनाया गया था और ट्रेन पर भी हमला कर दिया था। इस्लामी कट्टरपंथ समूह वहां पर नरेंद्र मोदी की यात्रा का विरोध कर रहे थे और यह कह रहे थे कि भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जाता है।
उस समय भी बांग्लादेश जल रहा था और मंदिरों पर हमले हो रहे थे, पर उस समय तो ऐसा कुछ नहीं हुआ था! भारत में किसी भी सरकारी योजना में ऐसा नहीं है कि यह मुस्लिमों के लिए नहीं है, बल्कि अल्पसंख्यकों के लिए अलग से एक मंत्रालय है एवं उसकी योजनाओं को लेकर भारत का बहुसंखयक समाज कुछ भी आपत्ति नहीं करता है! फिर भी ऐसा क्या है, जिसके विषय में यह कहा गया कि भारत में कुछ ऐसा न हो? भारत ही विश्व का एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ का बहुसंख्यक इस बात के लिए आन्दोलन कर रहा है कि उसे अल्पसंख्यकों के समान अधिकार मिलें, भारत की एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ पर बहुसंख्यक अनाथ है, उसके मंदिरों पर राज्यों का कब्जा है।
भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ पर उसके बहुसंख्यकों के धर्म का अपमान किया जा सकता है और फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उसे ठीक भी ठहराया जा सकता है!
फिर भी भारत और हिन्दू धर्म को वह बांग्लादेश भी चेता सकता है, जिसके निर्माण के लिए हिन्दुओं ने भी पीड़ा सही थी और भारत ने मदद की थी! बांग्लादेश यह इसलिए कर सकता है क्योंकि वहां पर अपनी धार्मिक पहचान को लेकर कोई संशय नहीं है और जहाँ पर कथित धर्मनिरपेक्षता का स्थान न होकर धार्मिक विचारों की स्पष्टता है, लक्ष्य की स्पष्टता है! जबकि भारत में ऐसा कुछ नहीं है।