1977 में वियतनाम की रक्षा मंत्री बिन्ह भारत आयीं थी. इंदिरा गाँधी की सरकार के रक्षा मंत्री जगजीवन राम ने उनकी अगुआई की. दृढ़मूल हो चुकी स्थापित मान्यता के अनुसार उन्हें क़ुतुब मीनार, लाल किला , ताज महल आदि घुमाने पर विचार हुआ. परन्तु मैडम बिन्ह ने अपनी इच्छा रखी कि वे छत्रपति शिवाजी की मूर्ती को माल्यार्पण करेंगी.
जैसे तैसे कहीं से विस्मृत छत्रपति शिवाजी की मूर्ती की व्यवस्था करी , उसे झाड़ा-पोछा और स्थापित किया गया. माल्यार्पण का कार्यक्रम संपन्न होने के बाद, आयोजन स्थल पर उपस्थित उत्सुक शीर्ष अधिकारीयों ने मैडम बिन्ह से इसका कारण पूछा. उनका उत्तर था, प्रतिद्वंदी की तुलना में आपके पास यदि अल्प संशाधन और बल हो तो किस विधा से सफलता पाना ये शिवाजी की गुरिल्ला युद्ध पद्धति को अपनाते हुए ही विएतनाम ने सर्व शक्तिमान अमेरिका को 1955 से 1975 के मध्य चले २० वर्ष के दीर्ध युद्ध में अंतत:घुटने टेकने को विवश कर देने में सफलता पायी.
शिवाजी की मुग़लों के विरुद्ध विजयशालिनी युद्ध नीति की शौर्य गाथा को हमारे सैनिक सुनते-सुनाते , उससे प्रेरणा पाते हुए बिना साहस खोये निरन्तर लड़ते रहे. इतिहास के उस क्षण को ही स्मरण करते हुए मैंने इस आयोजन की इच्छा व्यक्त करी.
शिवाजी की जिस खूबीकी चर्चा मैडम बिन्ह ने करी, वही बात आगे चलकर इंदिरा गाँधी ने इन शब्दों में दौहरायी, ‘ मैं सोचती हूँ , शिवाजी विश्व के महानतम व्यक्तियों में से हैं. क्यूंकि हम एक पराधीन राष्ट्र थे, हमारे देश के महान लोगों को विश्व इतिहास में छोटा दिखाया गया. यही व्यक्ति, यदि यूरोप के किसी देश में जन्मा होता, तो उसकी कीर्ति आकाश तक होती तथा उसे सभी जानते.’
छत्रपति शिवाजी , और फिर बाद में संभाजी- राजाराम आदि शूर वीरों के नेतृत्व में देश के उत्तर में शक्तिशाली मुग़ल साम्राज्य और दक्षिण में निजामशाह, आदिलशाह जैसे बहमनी सुल्तानों को मराठा शूरवीरों ने बिना धैर्य खोये लड़ते-लड़ते भारत भूमि से उखाड़ फैंका. पहले अफज़ल खान का वध; 1659 में आदिलशाह के लड़के फज़ल खान का भी वध और उसकी विशाल फौज की शर्मनाक हार; 1663 में मुग़ल सेनापति शाइस्ता खान की उंगलीयाँ काटकर उसे मैदान छोड़कर भागने के लिए विवश कर देना; 1664 में सूरत में मुग़ल खाजने पर आक्रमण; 300 से ज्यादा किले जीत कर अपने परिवार के बाहर के योग्य शूरवीरों को किलेदार नियुक्त करना; आमने-सामने की साल्हेर की लडाई में मुग़लों को पीछे हटने के लिए विवश कर देना; 6 जून 1674 को हिन्दू राजा के रूप में राज्यारोहरण– ये युद्ध-इतिहास में शिवाजी के जीवन की आश्चर्य में डाल देने वाली घटनाएँ हैं.
अपनी पुस्तक ‘हिस्टोरिकल फ़्रैगमेन्ट्स ऑफ़ मुग़ल एम्पायर’ में राबर्ट ओरमे लिखते हैं-‘ किसी भी आपात परिस्थिति में कितनी ही कठिनाई आयी हो, शिवाजी ने बिना धैय्र खोये संतुलित विवेक से उसका सामना किया. शिवाजी के सिपाही उनकी श्रेष्ठता को स्वीकार करते थे . क्यूंकि वे स्वयं युद्ध भूमि में तलवार के साथ खड़े दिखते थे’.
सिकंदर , जुलिस सीज़र , नेपोलीयन जैसे सेना नायकों ने जब सत्ता संभाली तो पहले से ही व्यवस्थित प्रशासन व् सेना उनको उपलब्ध थी. जबकी शिवाजी महाराष्ट्र के सह्याद्री के जंगलों में रहते हुए वनवासी वीर मावले बंधुओं को साथ लेकर आगे बढ़े. और एक समय ऐसा आया कि शिवाजी के द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलते हुए, आगे चलकर मराठा इतने शक्तिशाली हो उठे कि भयभीत, हताश औरंगजेब नें उनके समक्ष संधि का प्रस्ताव तक भेजा. पर जब तक बहुत देर हो चुकी थी. बदले में मराठाओं से मिली अपनी अवहेलना से उत्पन्न मानसिक प्रताड़ना से औरंगजेब को मुक्ति तब ही जाकर मिल सकी जब म्रत्यु ने उसे अपने गले लगाया. (सर जादूनाथ सरकार)
आगे चलकर 1751 में हिन्दू मराठा वीरों ने उड़ीसा पर कब्जा कर लिया , तो 1757 में गुजरात की राजधानी अहमदाबाद उनके कब्जे में थी. 1758 में पंजाब को अधीन कर पेशावर के अटक के किले पर भगवा ध्वज लहरा दिया। महादजी सिंधिया ने 1784 में दिल्ली से मुगल सल्तनत को पूरी तरह उखाड़कर फेंक दिया। दक्षिण के तमिलनाडू के तंजावुर तक हिदू साम्राज्य ने विस्तार पा लिया था. 1784 से 1803 तक दिल्ली के लाल किले की प्राचीर पर हिन्दू संस्कृति का परम पवित्र ‘भगवा ध्वज’ गर्व से लहराया। और जब फ्रांसीसी व अंग्रेज भारत आये , तो उनके सामने मुग़ल नहीं हिन्दूमराठा वीर हिन्दू युद के मैदान में खड़े थे.
‘म्रत्युन्जय’ के लेखक शिवाजी सावंत लिखते हैं-‘ औरंगज़ेब का आंकलन किये बिना मराठा हिन्दू वीरों का सही महत्त्व ध्यान में नहीं आ सकता. षड्यंत्रों द्वारा उसने अपने भाईयों दारा शिकोह, मुराद और शुजा का वध किया; पिता शाहजहाँ को मरते दम तक कैद में डाले रखा.’ ये भी ध्यान रहे वो उस मुग़ल बादशाह जहाँगीर का पोता था जिसने ‘गुरुग्रंथ साहिब ‘ के रचियता सिख गुरु अर्जुनदेव को तड़पा कर मारा. और,स्वयं औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर को उनके अनुयायीयों समेत मरवा डाला.
इतना ही नहीं उसके दिखाए मार्ग चलते हुए उसके मताहतों ने मजहब के नाम पर गुरुगोविंद सिंह दो छोटे-छोटे बालकों को ईंटों में चुनवाकर ख़त्म कर डाला. ऐसा औरंगजेब जब दक्षिण की मुहीम पर निकला तो बुरहानपुर की मस्जिद में नवाज़ पढ़ घोर प्रतिज्ञा करी कि काबुल से कांजीवरम तक वो सभी भू भाग इस्लाममय करके रख डालेगा.
इस संघर्ष में औरंगजेब ने भड़ोच से बंगाल और काबुल से दक्षिण की चौखट तक तक फैले अपने विशाल साम्राज्य के सभी संसाधन झोंक दिए . ये युद्ध छोटा सा ‘दिया’ और शैतान के ‘तूफ़ान’ के बीच की लडाई थी , लेकिन छत्रपति शिवाजी के शूरवीरों के परक्रम के आगे परिणाम उल्टा ही निकला.
As a Hindu I am truly indebted to Lord Shivaji Maharaj. The Real hero is Lord Shivaji Maharaj.