जब से फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स‘ आयी है, इस फिल्म ने लोगो की सोच में एक अप्रत्याशित बदलाव ला दिया है, लोग मात्र कश्मीरी हिन्दुओ के साथ हुए अत्याचारों पर बात ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन कारणों को भी खोजा जा रहा है, जिस वजह से ये जघन्य अत्याचार हुए और लाखो कश्मीरी हिन्दुओ को अपना घर बार छोड़ कर अपने ही देश में विस्थापितों का जीवन जीने को मजबूर होना पड़ा ।
यह फिल्म आपको झकझोर देती है, फिल्म आपको एक ऐसे माहौल में ले जाती है, जहां से आप कश्मीर में हुई धर्म, संस्कृति, मानवता और ज्ञान की हानि को देख सकते हैं। हमने भी एक अलग दृष्टिकोण से इस फिल्म की समीक्षा की है, और हमने महाभारत का उदाहरण ले कर ये समझने का प्रयास किया है कि आज अगर एक धर्म-युद्ध हो, तो उसमे इस फिल्म के पात्र किस तरह कि भूमिका निभाएंगे, आइये ज़रा इसे जानें।
फ़िल्म में चार मुख्य पात्र हैं, जो हमारे समाज और देश के चार प्रमुख स्तम्भों को चरितार्थ करते हैं
मिथुन चक्रवर्ती, जिन्होंने एक IAS अफसर ब्रह्म दत्त का पात्र निभाया है, ये हमारी सरकार का स्वरुप हैं, और उस सिस्टम को प्रदर्शित करते हैं जो देश की व्यवस्था चलाता है।
पुनीत इस्सर ने एक पुलिस अफसर हरि नारायण का पात्र निभाया है, जो हमारी कानून व्यवस्था का स्वरुप हैं।
अतुल श्रीवास्तव के पात्र का नाम विष्णु है, ये एक पत्रकार हैं और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का प्रतिनिधित्व करते हैं।
प्रकाश बेलावड़ी, जो एक डॉक्टर हैं और इनका नाम महेश कुमार है, ये हमारे देश की सर्विस क्लास का प्रतिनिधित्व करते हैं।
फ़िल्म में दिखाया है, कि जब कश्मीर घाटी में ये अत्याचार हो रहे थे, तो हमारे देश के ये चारों स्तंभ चुप थे, बेबस थे, और नकारा भी थे। कोई डर से चुप था, कोई अपने कार्य की मजबूरियों की वजह से चुप था। दो अन्य किरदार हैं शारदा (भाषा सुम्बली) और शिवा (बाल कलाकार), ये दो महत्वपूर्ण सम्पत्तियाँ हैं जो हमने खो दी हैं। शारदा का अर्थ है सरस्वती, जो ज्ञान का प्रतीक हैं, कश्मीर हजारों साल से हमारे ज्ञान का केंद्र रहा था, हमारे सैंकड़ो ग्रन्थ और बहुमूल्य पुस्तकें यहां लिखी गयी थी, इस अत्याचार के बाद वो सारा ज्ञान खो गया ।
वहीं दूसरी ओर शिवा हमारे धर्म का स्वरूप है, हजारो सालो से कश्मीर सनातन धर्म के उद्गम स्थल की तरह था, चाहे शैव्य चिंतन हो, या अमरनाथ कैलाश हो, या सनातन के संरक्षक शंकराचार्य के बहुमूल्य कार्य हो, इन सभी ने हमारे धर्म का उत्थान किया था, और इस फिल्म के अंत में दिखाया है कि शिवा की जबरन हत्या कर दी गयी है, मतलब धर्म का नाश कर दिया गया।
वहीं दूसरे पक्ष में कुछ राजनेता हैं (फारूख अब्दुल्ला), हमारे बुद्दिजीवी और शिक्षक हैं, जिनका प्रतिनिधित्व करती हैं पल्लवी जोशी, जिन्होंने प्रोफेसर राधिका मेनन का किरदार निभाया है, जो निवेदिता मेनन और अरुंधति रॉय का मिलाजुला रूप है। इसके अलावा असामाजिक तत्व भी हैं इस फिल्म में, जिनका किरदार निभाया है चिन्मय मंडलेकर ने, जो बिट्टा कराटे और यासीन मलिक का मिलाजुला किरदार निभा रहे हैं । इन तीनो ने एक मजबूत गठजोड़ बना रखा है, इन्होंने एक छद्म आवरण डाल दिया है समाज में, जिससे हर कोई दिग्भ्रमित है, और अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ नही उठा पा रहा है।
इनका मुकाबला कर रहे हैं हमारे समाज के चारों स्तंभ और पुष्कर नाथ (अनुपम खेर), ये लोग इस लड़ाई में अपना पूरा दम ख़म लगा रहे हैं, लेकिन सफल नहीं हो पा रहे हैं। लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल है कि ये लोग आखिर लड़ क्यों रहे हैं, वो क्या चीज है जिस पर दोनों ही पक्ष कब्जा करना चाहते हैं?
वो चीज है कृष्णा (दर्शन कुमार), जो हमारे समाज, हमारी चेतना, हमे धर्म, हमारे युवाओं का प्रतीक है। कृष्णा युवा है, शक्तिशाली है, स्मार्ट है, अच्छा बोलता है, कमाता भी है, लेकिन दिग्भ्रमित है इसलिए सच से कहीं दूर है। दोनों धर्म और अधर्म के पक्ष आपस में लड़ते हैं, कृष्णा को अपना अपना सच परोसते हैं, क्योंकि दोनों ही पक्षो को पता है, कि इस धर्म और अधर्म के युद्ध मे जीत अंत मे उसी की होगी जिसके पक्ष में कृष्ण हैं, क्युकी जहां कृष्ण हैं वहीं धर्म है और वहीं सत्य भी है ।
कृष्णा उधेड़ बुन में है कि सत्य क्या है, वो यात्रा करता है, तथ्यों को जांचता परखता है, और अंत में 10 मिनिट लंबा भाषण देता है, जिसमे कश्मीर के हजारो सालो की संस्कृति, धर्म, ज्ञान और वहाँ हुए अत्याचारों को दर्शाता है। वो समाज को सच समझाने की कोशिश करता है, वो ये बताता है कि अब अधर्म का समय ख़त्म हुआ, अब धर्म के रास्ते पर चलना होगा, तभी भविष्य में धर्म और सत्य बच पायेगा। कृष्णा अर्जुन को समझाता है, एक वृहद रूप दिखाता है, जिसमे धर्म और अधर्म के बीच फैला हुआ अँधियारा छंट जाता है, और अब कलयुग के अर्जुन को सब साफ़ साफ़ दिख रहा होता है।
अब आप पूछेंगे कि भला इस कहानी में अर्जुन कौन है ?
अर्जुन और कोई नही, आप,मैं और हम सब हैं। इस कलयुग के अर्जुन हम ही हैं, हम ही हैं जिनके कंधों पर गांडीव है, और इस धर्म-अधर्म के युद्ध मे हमें ही सोचना है कि किसका पक्ष लेना है। जैसे फिल्म के अंत में वहां बैठे युवाओ का भ्रम ख़त्म हो गया था, उम्मीद है आज के युवाओं को भी अब सत्य समझ आ गया है, और जब आप सच के रास्ते पर होते हैं, तभी आप सही होते हैं और धर्म की रक्षा कर पाते हैं ।