हिन्दुओं के आराध्य प्रभु श्री राम एवं आदरणीय तुलसीदास जी पर हमले जारी है। अब हिन्दुओं के सबसे महान ग्रंथों में से एक श्री रामचरित मानस की प्रतियों को उसी उत्तर प्रदेश में जलाया गया, जहाँ पर आदरणीय तुलसीदास जी ने उसे लिखा था। वह प्रदेश जहाँ पर प्रभु श्री राम ने जन्म लिया, जहां पर प्रभु श्री राम ने बाल लीलाएँ की, जहाँ पर पग पग पर उनके अस्तित्व के प्रमाण बिखरे पड़े हैं, वहां पर श्री रामचरित मानस की प्रतियों को जलाया जाना और फिर उस पर राजनीतिक अट्टाहास किया जाना, राजनीतिक पतन की पराकाष्ठा है।
पहले बिहार के शिक्षामंत्री ने श्रीरामचरित मानस को घृणा फैलाने वाला ग्रन्थ कहा और फिर अब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने श्री रामचरित मानस पर प्रश्न उठाए और इतना ही नहीं कल स्वामी प्रसाद के समर्थन में लखनऊ में श्री रामचरितमानस की प्रतियां जलाई गईं।
यह कृत्य कथित रूप से उन चौपाइयों के विरोध में किया गया, जो कथित रूप से आपत्तिजनक हैं। और अब ऐसा लग रहा है जैसे यह राजनीतिक रणनीति है। राजनीतिक रणनीति कहीं न कहीं भारतीय जनता पार्टी का ओबीसी या कथित पिछड़ी जातियों के वोटबैंक तोड़ने के लिए है। यह दांव राजनीतिक है यह उस बात से समझ आ रहा है जो एक ट्वीट के अनुसार समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कही है।
क्या यह वोटबैंक को हासिल करने की कवायद भर है? या फिर क्या? राजनीति होती रहेगी, परन्तु इस प्रकार धार्मिक ग्रंथों के आधार पर राजनीति? यह हिन्दू समाज के प्रति किए जा रहे तमाम पापों की एक और कड़ी है। हालांकि कुछ लोगों का यह मानना है कि हो सकता है कि अखिलेश यादव को यह सब पता न हो, परन्तु श्रीरामचरित मानस को जलाए जाने के मध्य ही स्वामी प्रसाद मौर्य को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के पद पर नियुक्त कर दिया गया है।
यह सब क्यों किया जा रहा है? मात्र अपनी राजनीति चमकाने के लिए? मात्र अपनी राजनीति चमकाने के लिए क्या हिन्दू धर्म ग्रंथों का अपमान इस प्रकार किया जाएगा? क्या समाज को तोड़ने का कार्य किया जाएगा? क्या उस काल में बताई गयी वर्ण व्यवस्था के आधार पर आज समाज और सरकार का संचालन हो रहा है? क्या यह संविधान की शर्त थी कि सरकारी संविधान लागू होने के बाद जो धार्मिक ग्रन्थ हैं, उनका अनुकूलन और उन्हें समझने की दृष्टि उसी प्रकार की हो जाएगी?
यह प्रश्न इसलिए उठता है क्योंकि जो व्यवस्था हिन्दू धर्म में बताई गयी है, वह तो संविधान का आधार नहीं है, यदि वह संविधान का आधार नहीं है तो संविधान में प्रदत्त परिभाषाओं के आधार पर हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित वर्गों कि क्यों देखा जाता है?
क्या हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित परिभाषा के आधार पर निर्धारित ब्राह्मण ही आज संविधान में आधारित ब्राह्मण हैं? क्या हिन्दू धर्म व्यवस्था के अनुसार निर्धारित शूद्र ही संविधान के आधार पर वर्णित पिछड़ा वर्ग है? जाति और कास्ट क्या एक ही हैं?
ऐसा नहीं है! क्यों हिन्दू धर्म के तमाम सिद्धांतों को, धर्म की व्याख्याओं को कथित “सोशल सिस्टम” अर्थात सामाजिक व्यवस्था के आधार पर आंका जाता है? यदि अंग्रेजों के जाने के बाद धार्मिक व्यवस्था अपनाकर धार्मिक स्मृति के आधार पर शासन का संचालन किया जा रहा होता तो सरकारी स्तर पर मनुस्मृति, श्री रामचरित मानस आदि पर बात करना उचित होता एवं सरकारी स्तर पर यह किया जा सकता था, परन्तु जब धर्म से परे होकर एक ऐसा संविधान बनाया गया जिसमें हर धर्म को कहने के लिए समान स्थान दिया गया, हालांकि कथित अल्पसंख्यकों के नाम पर बहुसंख्यकों के साथ बहुत कुछ असमानता की नींव भी डाली गयी, तो फिर ऐसे में राजनीति के लिए हिन्दू धर्मग्रंथों की विषय वस्तु को संविधान के आधार पर क्यों बार आंकना, जिसका संविधान से कोई लेना देना ही नहीं है?
श्री रामचरित मानस या फिर अन्य हिन्दू धर्मग्रंथों में लिखे गए हर वर्ग की परिभाषा अपने आप में स्पष्ट है, फिर बार बार उस पश्चिम की अवधारणाओं के आधार पर हिन्दू धर्मग्रंथों का अपमान क्यों, जिसे हिन्दू धर्म ग्रंथों के विषय में कुछ पता ही नहीं!
यह एक सुनियोजित षड्यंत्र है, यह षड्यंत्र है हिन्दुओं के धर्म ग्रंथों के आधार पर उन्हें भड़काना और फिर उन्हें उस स्थिति में ले जाना कि वह मतांतरित ही हो जाएं। यह उनकी चेतना को तोड़ने का कदम है क्योंकि यह बार-बार ईसाई मिशनरी ने भी कहा है कि रामचरित मानस ग्रन्थ की क्या महत्ता है?
एक ऐसा ग्रन्थ जिसने हिन्दू चेतना को इस प्रकार प्रभावित कर रखा है कि वह न ही ईसाई मिशनरी से प्रभावित होता है और न ही आततायी मुगलों से, तो उस ग्रन्थ को राजनीतिक लाभ के लिए निशाने पर लेना यह बताता है कि अंतत: किसके लाभ के लिए किया जा रहा है और क्यों किया जा रहा है?
स्वामी प्रसाद मौर्य जो पहले बसपा में थे और फिर भाजपा में आए और इन दिनों अखिलेश यादव का साथ निभा रहे हैं, और कथित वोटबैंक के लिए श्रीरामचरित मानस का अपमान कर रहे हैं, उनकी मंशा राजनीतिक है, अखिलेश यादव इस चौपाई के माध्यम से उत्तर प्रदेश के “योगी” मुख्यमंत्री को घेरना चाहते हैं, उनकी मंशा कथित रूप से दलितों का मसीहा बनने के साथ साथ संभवतया बहन मायावती के वोटर लेने की है, परन्तु यह सब कुछ राजनीतिक छीछालेदर उस भारत की आत्मा को कितनी चोट पहुंचा रही है, जिस भारत की आत्मा प्रभु श्री राम हैं, वह किसी को नहीं पता!
राजनीति का ऊँट किस करवट बैठेगा यह नहीं पता, परन्तु प्रभु श्री राम का अपमान करके किसी की भी राजनीतिक यात्रा सफल नहीं हुई है, यह वह अखिलेश यादव बेहतर समझ सकते हैं जो चुनावों से पहले श्री परशुराम जी की भी भव्य प्रतिमा की बातें किया करते थे!
या फिर वह इस बात से उत्साहित हैं कि जिस प्रकार रामभक्त कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश देनेवाले उनके पिता को पद्म विभूषण प्राप्त हो गया है, वह भी प्रभु श्री राम का अपमान कर लेंगे और उन्हें भी सम्मान मिलेगा? यह अभी भविष्य के गर्त में है, वर्तमान में आम जनता इस षडयंत्र का क्या उत्तर देती है, वह देखना होगा!