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Sunday, December 8, 2024

शमशेरा के निर्देशक ने फिल्म की असफलता को लेकर कहा “मैं घृणा नहीं सम्हाल सका!”, पर हिन्दुओं से घृणा तो आपने दिखाई है निर्देशक महोदय!

शमशेरा फिल्म फ्लॉप हो चुकी है और उसके इतने नकारात्मक रिव्यू मिले हैं, कि हर कोई हैरान है। यह जानते हुए भी कि यह एक एजेंडा फिल्म थी और इसमें जानते बूझते हुए हिन्दू विरोधी कोण डाला गया था, इसमें वह एजेंडा डाल कर हिन्दुओं के समक्ष परोसा गया था, जो हिन्दुओं के इतिहास से कोसों दूर है, अब यह क्यों घृणा फैलाई गयी, यह वास्तव में एक शोध का प्रश्न है!

अब जब जनता ने इस झूठ को स्वीकारने से इंकार कर दिया है कि अंग्रेज तो कोमल हृदय थे, यह तो हिन्दू उच्च वर्ग था जिसने शोषण किया, तो उन्हें समस्या हो रही है। यह समस्या इतनी भयंकर है कि उन्हें यह सहन ही नहीं हो पा रहा कि हिन्दू उनके एजेंडा को स्वीकार नहीं कर रहा है। आखिर क्या कारण है कि हिन्दू उनके इस झूठ को स्वीकार करे ही करें? हिन्दू एजेंडा को क्यों स्वीकार करें? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसे बार बार पूछा जाना चाहिए, परन्तु दुर्भाग्य से जबसे हिन्दुओं ने इस एजेंडे को जाना है, तब से उन्हें ही कोसा जाने लगा है।

इस कहानी में किसी खास आदिवासी समूह को डकैत जाति घोषित किया किसने? अंग्रेजों ने! परन्तु अंग्रेजों से क्रूर किसे दिखाया एक शिखाधारी व्यक्ति को! आखिर उस शिखाधारी व्यक्ति से इतनी घृणा क्यों है?

निर्देशक करण मल्होत्रा का कहना है कि वह घृणा को नहीं सम्हाल पाए, अब प्रश्न उठता है कि जिन ब्राह्मणों ने मंदिरों की रक्षा के लिए, अपनी संस्कृति एवं धर्म की रक्षा के लिए, बलिदान दिया, अपने प्राणों की परवाह नहीं की, उनसे किस सीमा तक घृणा की जा सकती है, इस सीमा तक कि आप उन अंग्रेजों से अधिक क्रूर उन बेचारों को प्रमाणित कर दें, जो इतने वर्षों से शोषण झेल रहे थे?

क्या इस प्रकार के किसी खलनायक को गढ़ने के लिए कोई शोध किया गया था? यदि हाँ तो क्या और यदि नहीं तो ऐसी घृणा क्यों? इतनी घृणा क्यों? बॉलीवुड को घृणा के लिए ब्राह्मण ही क्यों मिलते हैं? या हिन्दू प्रतीकों वाला खलनायक ही क्यों मिलता है?

जब लोगों ने इस अकारण और एजेंडा वाली घृणा को नहीं लिया तो करण मल्होत्रा सामने आए और उन्होंने इन्स्टाग्राम पर पोस्ट लिखा कि वह “नफरत सम्हाल नहीं पाए!”

परन्तु नफरत क्यों हुई? क्या यह बताया उन्होंने? उनकी इस फिल्म को कहीं प्रशंसा नहीं मिली है, फिर ऐसे में यह नफरत किसकी है?

जिन वामपंथियों ने यह नफरती एजेंडा चलाया है, क्या वह इस नफरती एजेंडे वाली फिल्म को देखने गए? ऐसा चरित्र इतिहास में मिलता नहीं है कि उच्च जाति का अत्यधिक अधिकार प्राप्त, क्रूर और अमानवीय व्यक्ति, जो व्यक्तिगत लाभों के लिए अंग्रेजों की नौकरी कर रहा है?

निर्देशक ने कहा कि वह नफरत नहीं सम्हाल पाए, और वह हिन्दुओं को अपने प्रति हो रहे इस अन्याय का विरोध करने का भी अधिकार नहीं देना चाहते हैं।

यह अजीब विडंबना है, कि हिन्दू अपने विघटन का एजेंडा भी देखे और फिर यह भी न कहे कि आपने एजेंडा चलाया है! निर्देशक ने कहा कि शमशेरा उनकी है और उन्हें बहुत दुःख है कि उन्होंने इस फिल्म को बीच में ही छोड़ दिया है। फिर उन्होंने लिखा कि जो भी सामने आता है, अच्छा, बुरा या बदसूरत, वह सभी का सामना करेंगे और शमशेरा परिवार, कास्ट और क्रू को धन्यवाद

असली कारण पर न ही करण पहुंचे और न ही शमशेरा का समर्थन करने वाले संजय दत्त, जिन्होनें इस फिल्म में खलनायक की भूमिका निभाई है। अब वह भी बिल से बाहर आए और अपने इस हिन्दू विरोधी एजेंडे को “मेहनत” बताते हुए बोले कि

“लोग हमारी मेहनत का सम्मान नहीं कर रहे हैं!”

संजय जी को यह नहीं पता कि मेहनत तो एक चोर भी करता है, एक ठग भी करता है, और एजेंडा चलाने वाले लोग भी करते हैं, तो क्या उनका सम्मान किया जाएगा? मेहनत तो दुर्योधन ने भी की थी, तो क्या वह पूजनीय या आदर्श हो गया? संजय दत्त ने इंस्टाग्राम पर लिखा कि “फ़िल्में तो पैशन माने जूनून का काम होती हैं और यह पैशन होता है लोगों को कहानी बताने का और ऐसे चरित्रों को सामने लाने का, जिनसे आप पहले कभी नहीं मिले हों। शमशेरा ऐसे ही प्यार का परिणाम है, जो हम सबने मेहनत से हासिल किया है। यह वह सपना है जो हम स्क्रीन पर लाये।

शमशेरा को लोगों ने नफरत दी है; कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्होनें यह देखी भी नहीं! मुझे यह देखकर दुःख हो रहा है कि लोग हमारी मेहनत का सम्मान नहीं कर रहे हैं!”

संजय दत्त कह रहे हैं कि वह करण के साथ हमेशा खड़े रहेंगे। चाहे सफलता हो या असफलता!

संजय दत्त ने भी नफरतों की बात की।

परन्तु न ही संजय दत्त और न ही करण मल्होत्रा यह बताने में सक्षम हो पा रहे हैं कि आखिर उन्होंने जो पूरे हिन्दू समाज के प्रति घृणा का प्रदर्शन किया, वह क्यों किया? उसका क्या कारण है? नफरत आपने दी है, हिन्दुओं ने बस आपकी उस नफरत का प्रतिकार किया है और यह करना उसका अधिकार है, उस अधिकार को कथित रचनाशीलता के नाम पर आप छीन नहीं सकते!

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