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Friday, March 29, 2024

सफ़दर हाशमी और वामपंथी पाखण्ड

आज का दिन वामपंथ के दोगलेपन और वामपंथी विचारधारा की सत्ता लोलुपता को आईना दिखाने के लिए बहुत बड़ा दिन है क्योंकि आज के दिन जन्मदिन होता है एक ऐसे व्यक्ति का, जिसने अपना सारा जीवन वामपंथ के लिए बलिदान कर दिया। उन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि कथित वामपंथी मूल्यों वाली जनसेवा के लिए स्वयं को समर्पित किया और कांग्रेसियों के हाथों अपनी जान गंवाई, और आज वही वामपंथी, जिनके लिए उन्होंने कांग्रेसियों के लिए प्राण गंवाए, उसी कांग्रेस के साथ वामपंथी दल गलबहियां कर रहे हैं!

वामपंथी दल, इस दुनिया में स्वयं को सर्वाधिक बुद्धिमान, सर्वाधिक मूल्यों का पालन करने वाले एवं सर्वाधिक मानवतावादी बताते हैं। वह बताते ही नहीं हैं, अपितु घोषित भी करते हैं। स्वयं को विचारों का सरगना बताते हैं एवं यह प्रमाणित करने का कुप्रयास करते हैं कि वह विचारों के लिए अपने प्राणों का भी बलिदान दे सकते हैं एवं ऐसे कुछ नाम वह गिनाते हैं, जिनमें सफ़दर हाश्मी मुख्य हैं।

सरदार हाश्मी, एक ऐसे युवक जिन्होनें सैंट स्टीफेंस से अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक किया था और फिर उन्हें नौकरी भी मिल गयी। उन्हें सूचना अधिकारी की नौकरी प्राप्त हो गयी थी, परन्तु वह वामपंथी मूल्यों के प्रति आकर्षित थे एवं यही कारण था कि उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी थी और वामपंथी मूल्यों के लिए जीवन समर्पित कर दिया था। एवं आप लोगों की आवाज़ बुलंद करने के लिए नुक्कड़ नाटक आदि को ही अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य बना लिया था।

सफ़दर हाश्मी, एक ऐसी आवाज़ जिसने आम जनता में यह बताने का प्रयास किया कि आप अपनी आवाज उठा सकते हैं और उन्हें शायद सुना जाए! परन्तु क्या वह स्वयं ही ऐसी आवाज नहीं बन गए जिन्हें भुनाया तो कांग्रेस और वाम दोनों ही दलों ने, और समय समय पर सपा,राजद आदि सभी दलों ने, पर सुना नहीं।  सुनना और भुनाना दो अलग अलग मापदंड हैं और दोनों ही निर्लज्जता के मापदंड हैं, जिस पर वामदल और कांग्रेस दोनों ही खरे उतरते हैं।

यदि सफ़दर हाश्मी जीवित होते तो आज अपना 67वां जन्मदिन मना रहे होते। मगर वह आज जीवित नहीं है। पर वह आज जीवित क्यों नहीं हैं और उनके प्रिय दल ने उनके साथ क्या किया, यही समझना महत्वपूर्ण है। सफ़दर हाश्मी, वामदलों के स्वार्थ को सबसे बेहतर तरीके से बताने के लिए पर्याप्त हैं।  जो मानवता वादी दल, इंसानियत की बातें करने वाले और अपने विचारों पर बलिदान होने वाले वामदल अपने साथी और कार्यकर्त्ता के प्रति कितने कृतघ्न हैं, यह हमें सफ़दर हाश्मी की कहानी से पता चलेगा।

34 वर्षीय सफ़दर हाश्मी, गाज़ियाबाद, साहिबाबाद में सीपीआई (एम) के उम्मीदवार रामानंद झा के समर्थन में नुक्कड़ नाटक का आयोजन कर रहे थे। और उस नाटक का नाम था ‘हल्ला बोल’। उस समय सुबह का ही समय था, दस या ग्यारह बजे का समय होगा जब सफ़दर हाश्मी पर कांग्रेस की ओर से उम्मेदवार रहे मुकेश शर्मा ने हमला कर दिया। यह हमला साधारण हमला नहीं था, यह जान से मारने के लिए किया गया हमला था।  कहा जाता है कि मुकेश शर्मा ने उन्हें नाटक बंद कर रास्ता देने के लिए कहा, पर सफ़दर हाश्मीने इंकार कर दिया और कहा कि प्रतीक्षा करें। इतना सुनते ही कांग्रेस के मुकेश शर्मा ने उन पर हमला किया और घायल कर दिया और तीसरे ही दिन उनका देहांत हो गया।

कहानी शुरू होती है उसके बाद।  उनके नाम पर एक ट्रस्ट बनाया गया। उस ट्रस्ट में भीष्म साहनी एवं उनकी पत्नी सहित कई अन्य प्रमुख व्यक्ति सम्मिलित थे। इस ट्रस्ट का नाम रखा था सहमत अर्थात सफ़दर हाश्मी मेमोरियल ट्रस्ट। और सहमत ने कांग्रेस के विरुद्ध आन्दोलन आरम्भ किया। परन्तु सबसे मजे की बात यही है कि कथित साम्प्रदायिकता का विरोध करने के लिए सहमत ने कांग्रेस के सामने आत्मसर्पण कर दिया। तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने सहमत को 25 लाख रूपए की पहली किश्त दी थी।

जब अर्जुन सिंह ने यह रकम “सहमत” को दी थी, वह समय बहुत ही अशांत काल था, और उस समय लोग प्रभु श्री राम के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार थे, तो उस समय एक ऐसे आयोजन की प्रस्तावना की गयी जिसमें राम एवं सीता से सम्बन्धित चित्रांकन दिखाए जाएं। और उसमें एक चित्रण ऐसा भी था, जिसमें राम और सीता भाई बहन दिखाए गए थे। उस समय वहां पर इस आयोजन की अनुमति देने से इंकार कर दिया गया, परन्तु अर्जुन सिंह ने यह धमकी दे दी थी कि यदि फैजाबाद प्रशासन द्वारा कार्यक्रम पर कोई बंदिश लगाई गयी तो वह निजी तौर पर अयोध्या जाकर अपनी भी गिरफ्तारी देंगे। और फिर इस कारण ही इस आयोजन को कराने की अनुमति दी गयी थी!

और देखते ही देखते, सहमत का निशाना कांग्रेस न होकर भाजपा हो गयी। सफ़दर हाश्मी का प्रयोग कांग्रेस करने लगी, वही कांग्रेस जिसके नेता ने सत्ता की ठनक में सफ़दर हाश्मी की हत्या की थी,  उसकी गोद में जाकर न केवल सहमत बैठ गया, बल्कि साथ ही वामदलों ने भी कांग्रेस का ही साथ लेना पसंद किया।

जिस दल के लिए सफ़दर हाश्मी ने अपना जीवन बलिदान कर दिया, उसी दल के नेता तमाम तरह के लाभों के लिए कांग्रेस के नेतृत्व के सामने झुक गए थे।  जिस वामदल के मूल्यों और सिद्धांतों के लिए कांग्रेस के प्रत्याशी के हाथों एक युवा जोश ने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था, वही वामदल इन दिनों पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। और एक ओर कांग्रेस है जिसकी अपनी पार्टी के सदस्य वामदलों द्वारा प्रायोजित राजनीतिक हिंसा का शिकार हुए थे, वह पश्चिम बंगाल में वामदलों के साथ चुनाव लड़ रही है और वहीं केरल में दोनों लोग आमने सामने हैं।

ऐसे में पत्रकार सुधीर पचौरी ने सही लिखा था कि “सफदर हाश्मीकी मौत के बाद उसे पीर बनाकर “सहमत” हर तरफ से चढ़ावा बटोर रहा है।” (आउटलुक, 1 जनवरी, 1997)।

30 years since he was killed, Safdar Hashmi Zinda Hai - Telegraph India

वामदलों के लिए युवा अपना जीवन बलिदान कर देते हैं और वह केवल सत्ता और फेलोशिप और नौकरियों के लालच में अपने हर मूल्य को सत्ता के सामने घुटने टिका देते हैं।

वास्तविकता यही है कि वामदल जितना भी मूल्यों की बात कर लें, परन्तु वह केवल और केवल सत्ता के लालची लोग हैं, और उनके लिए व्यक्तिगत स्वार्थ ही मायने रखता है और सफ़दरहाशमी इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं।

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