अंग्रेजों को भारत की संपदा का लुटेरा बताने वाले शशि थरूर संसद में हिन्दी पर क्यों भड़क गए? आखिर ऐसा क्या हुआ जो अचानक से ही उन्हें यह लगने लगा कि हिन्दी दरअसल अपमान है? क्या भाषा के आधार पर आग लगाने की नई तैयारी चल रही है? यह प्रश्न इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि संसद में आम तौर पर हिन्दी में भाषण देने वाले राहुल गांधी ने भाषण अंग्रेजी में दिया था और उन्होंने कहा था कि भारत राष्ट्र नहीं है बल्कि युनियन ऑफ स्टेट अर्थात राज्यों का संघ है।
और जिस प्रदेश का उन्होंने स्वयं को बताया है, अर्थात तमिलनाडु का, जैसा वह एक प्रश्न के उत्तर में कह रहे हैं
वहीं के मुख्यमंत्री ने कहा था कि वह केंद्र सरकार को युनियन गवर्नमेंट कहते रहेंगे क्योंकि यही संविधान में लिखा है। एमके स्टालिन ने कहा था कि उन्होंने इसी शब्द को प्रयोग किया है और वह इसी शब्द को प्रयोग करते रहेंगे क्योंकि उन्होंने कहा कि यह शब्द प्रयोग करना अपराध नहीं है।
यही कारण था कि जब संसद में राहुल गांधी ने इस शब्द का प्रयोग किया तो एमके स्टालिन ने इसका समर्थन करने के लिए राहुल गांधी को धन्यवाद कहा था।
अब आते हैं शशि थरूर द्वारा यह कहे जाने पर कि हिन्दी बोले जाने पर अपमान हुआ है? यह प्रश्न कहाँ से उठा और क्या इसका भी तमिलनाडु से कोई सम्बन्ध है? क्योंकि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री यह कह चुके हैं कि उन्हें हिन्दी भाषा से विरोध नहीं है, उनका हिन्दी भाषा से कोई बैर नहीं है, हाँ वह तमिल भाषा के पक्षधर हैं और तमिल भाषा की कीमत पर हिन्दी थोपे जाने के विरोधी है।
तो ऐसा क्या हुआ कि शशि थरूर को लगा कि हिन्दी भाषा ने अपमान कर दिया। दरअसल तमिलनाडु के पोल्लाची से डीएमके सांसद सुंदरम ने कोयंबटूर से अंतर्राष्ट्रीय उड़ान शुरू होने के सम्बन्ध में सरकार से प्रश्न पूछा था। उन्होंने अंग्रेजी में प्रश्न पूछा था। चूंकि यह प्रश्न नागरिक उड्डयन मंत्रालय से सम्बन्धित था, तो उत्तर ज्योतिरादित्य सिंधिया को देना था और उन्होंने कहा कि ओम्रिकोन संकट के कारण अंतर्राष्ट्रीय फ्लाइट्स प्रभावित हुई हैं। अभी हम एयर बबल की स्थिति में ऑपरेट कर रहे हैं।
इस उत्तर पर तमिलनाडु से सांसद की ओर से कोई आपत्ति नहीं आई। क्योंकि प्रश्न तमिल में नहीं पूछा गया था तो तमिल भाषा का हिन्दी द्वारा अपमान किए जाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है।
फिर तमिलनाडु के ही डिंडिगुल से डीएमके के ही एक अन्य सांसद पी वेलुसामी की तरफ से भी एक प्रश्न पूछा गया। सुन्दरम की तरह वेलुसामी ने भी अंग्रेजी में ही प्रश्न किया। इस पर सुंदरम की तरफ वेलुसामी ने भी सवाल अंग्रेजी में ही पूछे। इस का उत्तर भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हिन्दी में ही देते हुए कहा कि UDAN योजना में हर राज्य के एयरपोर्ट शामिल किए गए हैं, 5 ग्रुप के टेंडर में करीब साढ़े 900 बिड्स लगे थे।
तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इस बात पर आपत्ति जताते हुए कहा कि चूंकि सांसद अंग्रेजी में प्रश्न पूछ रहे हैं तो उत्तर अंग्रेजी में देना चाहिए, हिन्दी में उत्तर क्यों दिया जा रहा है। यह लोगों का अपमान है।
इस पर मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि यदि वह हिन्दी में उत्तर दे रहे हैं, तो वह अपमान कैसे हो गया, जब संसद में अनुवादक उपस्थित है।
यहाँ पर एक बात ध्यान देने योग्य है कि प्रश्न तमिल भाषा में नहीं किए गए थे, तो यह अपमान कैसे हो सकता है, और जब एमके स्टालिन स्वयं कह चुके हैं, कि उन्हें हिन्दी भाषा से कोई बैर नहीं है और न ही उनका विरोध है, और यहाँ पर तमिल भाषा भी नहीं थी दृश्य में तो यह अपमान कैसे हो गया?
प्रश्न यह भी उठता है कि क्या कांग्रेस की ओर से भाषाई राजनीति को आग देने की कोशिश की जा रही है।
जब अपमान की बात आई तो लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कहा कि यह अपमान नहीं है। फिर भी प्रश्न यही उठता है कि जो शशि थरूर अंग्रेजों को भारत की लूट पर लिख सकते हैं, और इस पर उन्हें केवल अंग्रेजी भाषी भारतवासियों से ही नहीं, बल्कि पूरे भारत से वाहवाही मिली थी, भाषाई बंधन से परे जाकर उन्हें प्रशंसा प्राप्त हुई थी, तो ऐसे में जब वह हिन्दी को बोले जाने को अपमान बताते हैं तो यह तो सीधे सीधे हिन्दी का ही अपमान है और यह अपमान और किसी ने नहीं बल्कि शशि थरूर ने किया है।
हाल ही में एनसीईआरटी में भारतीय भाषाओं के व्याकरण पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया था। जिसमें देश के अनेक भाषाविद सम्मिलित हुए थे। दरअसल भाषाओं में कोई भेद है ही नहीं, यह माना ही जाता है कि पृथ्वी कई भाषाओं का घर है। और घर में रहने के लिए आवश्यक है कि सभी एक दूसरे का मान रखें।
परन्तु एक बात और ध्यान देने योग्य है कि जहाँ भारतीय भाषाएँ कहीं न कहीं एक दूसरे से परस्पर मिलती जुलती हैं, तो वहीं अंग्रेजी भाषा का व्याकरण और उसकी संस्कृति अलग है। भाषा को राजनीति में बांधकर नहीं रखा जा सकता है।
इसीलिए कहीं न कहीं ऐसा लग रहा है कि क्या कांग्रेस अब देश में भाषा के स्तर पर प्रदेशों के मध्य विभाजन करने का षड्यंत्र कर रही है? यदि हाँ, तो यह इस कथित राष्ट्रीय पार्टी को स्पष्ट करना होगा कि क्या वह भारतीय भाषाओं के मध्य विभाजन उत्पन्न करके ही अपनी राजनीति को बचाए रखना चाहती है?
जो भी हो, राहुल गांधी के बाद शशि थरूर का अंग्रेजी प्रेम और हिन्दी विरोध शुभ संकेत नहीं है! और भविष्य की राजनीति का कहीं न कहीं संकेत देता है!