पाकिस्तान से ब्लेसफेमी अर्थात पैगम्बर की बुराई का एक चौंकाने वाला निर्णय आया है। वहां पर एक महिला को पैगम्बर की बुराई करने पर फांसी की सजा सुना दी गयी है। मामला इस्लामी कट्टरता का है, जिसके विषय में बोलने से परहेज किया जाता है। परन्तु पकिस्तान में यह बहुत आम बात है और पाठकों को याद होगा कि कुछ ही समय पहले एक आठ वर्षीय हिन्दू बच्चे पर भी यह आरोप लगा था और उसके बहाने से मंदिर में तोड़फोड़ कर दी गयी थी।
अब मामला आ रहा है कि एक महिला ने अपने व्हाट्सएप पर कुछ ऐसे मेसेज भेजे जिनसे पैगम्बर मोहम्मद का अपमान हुआ है।
हालांकि यह मामला 2019 का है, परन्तु वहां की अदालत ने अब निर्णय दिया है जिसके कारण यह प्रकाश में आया। मीडिया के अनुसार 26 वर्षीय अनिका अतीक की दोस्ती फारुक से ऑनलाइन हुई थी। और दोनों में अच्छी दोस्ती थी। परन्तु बाद में बात बिगड़ गयी और कहा जाता है कि जिसके बाद अनिका ने फारुक को व्हाट्सएप पर कुछ ऐसा भेज दिया जिसे पैगम्बर का अपमान माना गया।
इस फैसले को लेकर एक्स मुस्लिम अहमद मुस्तफा कन्जू ने अपना गुस्सा व्यक्त करते हुए कहा कि
“पैगम्बर निंदा? यह अब 2022 आ गया है, इससे आगे क्या होगा? क्या लोगों को यूनिकोर्न्स का अपमान करने के लिए भी सजा दी जाएगी!”
इस निर्णय पर लोगों ने यह भी कहा कि पाकिस्तान में कुछ बहुत ही कड़े ब्लेसफेमी के क़ानून हैं और नियमित आधार पर फांसी की सजा सुनाई जाती है। अधिकतर मामलों में ब्लेसफेमी की रक्षा करने वाले ही लोगों को बिना किसी मुक़दमे के मार डालते हैं
हाल ही में भीड़ ने श्रीलंका के नागरिक को इसी आरोप में पीट पीट कर मार डाला था। और उससे भी पहले एक थाना जला दिया था। पाकिस्तान में पैगम्बर निंदा के मामले लगातार प्रकाश में आ रहे हैं और इस बहाने व्यक्तिगत साजिशों को सुलझाने की भी बातें सामने आती रहती हैं।
हालांकि इस मामले में मीडिया के अनुसार अतीक ने अदालत से कहा कि शिकायत करने वाले ने मजहबी कोण इसलिए डाला है क्योंकि उसने उसके साथ बहुत अधिक “फ्रेंडली” होने से इंकार कर दिया था।
डीडब्ल्यू की रिपोर्ट के अनुसार अनिका ने कहा कि फारुक उसके साथ दोस्ती में कुछ अधिक चाहता था, और जब उसने ऐसा करने से इंकार कर दिया तो फारुक ने उसे पैगम्बर की बुराई की मामले में फंसाने की चाल चली।
मीडिया के अनुसार अनिका को इस मुक़दमे के दौरान कोई भी विशेष कानूनी मदद नहीं दी गयी। ईसाई महिला आसिया बीबी का मुकदमा लड़ने वाले सैफुल मालूक ने कहा कि “डिफेन्स के वकील ने पूरे मुक़दमे के दौरान उसे सही से डिफेंड नहीं किया और यहाँ तक कि जब अदालत की कार्यवाही हो रही थी, तो उसके कथित अपराध को स्वीकार भी कर लिया, इसलिए उसे सजा दी गयी।”
पाकिस्तान में लम्बे समय से इस कानून में बदलाव की मांग की जा रही है। पिछले ही वर्ष पाकिस्तान के इस क़ानून पर अमेरिका की एक रिपोर्ट का कहना था कि इस क़ानून का दुरूपयोग अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला करने के लिए किया जाता है।
वर्ष 2020 की यूनाइटेड स्टेस द्वारा अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर रिपोर्ट ने यह कहा था कि पकिस्तान में जो ब्लेसफेमी का कानून है, उसके कारण अहमदिया समुदाय, हिन्दू धर्म आदि सभी को निशाना बनाया जाता है।
बीबीसी की एक रिपोर्ट भी यही कहती है कि पाकिस्तान का संविधान अहमदिया लोगों को मुस्लिम नहीं मानता है। और इसी में यह लिखा था कि पाकिस्तान की टेलीकम्युनिकेशन ऑथोरिटी ने अहमदिया समुदाय की वेबसाईट को बंद करने का निर्देश दिया था और लिखा था कि ”इस बात पर ध्यान दिया जाए कि अहमदिया या कादियानी ना ही अपने आप को सीधे या परोक्ष रूप से मुसलमान कह सकते हैं और ना ही अपने धर्म को इस्लाम कह सकते हैं।”
पाकिस्तान में हो रहे इन खतरनाक परिवर्तनों से मात्र हिन्दू धर्म को ही खतरा नहीं है बल्कि यह देखने में आ रहा है कि वह भीड़ की मानसिकता के चलते अपने मुस्लिम समुदाय को भी निशाना बना रहा है। अनिका को बचाने के लिए सोशल मीडिया पर अभियान चलाया जा रहा है, परन्तु उसका परिणाम क्या होगा, यह सभी को पता है:
पाकिस्तान में यह क़ानून 1947 से ही है और जनरल जिया उल हक ने इसे 1977 और 1988 के बीच और कठोर बना दिया था, जिसमें कुरआन की बेइज्जती करने वालों को दोषी पाए जाने पर उम्र कैद की सजा का प्रावधान था तो बाद में पैगम्बर मुहम्मद की निंदा के लिए दोषी पाए जाने पर मौत की सजा का प्रावधान कर दिया था।
यह इतना संवेदनशील मामला है कि सरकार इसमें परिवर्तन लाने का ख्याल भी दिल में नहीं ला सकती है। जो इसके नाम पर हत्या करता है उसे नायक बना दिया जाता है, जैसा हाल ही में देखा गया है।
भारत में भी कुछ लोग हैं जो ऐसी ही कट्टरता लाना चाहते हैं। हमने कमलेश तिवारी की हत्या जहाँ पैगम्बर मुहम्मद की आलोचना के नाम पर देखी है तो वहीं स्वर्णमंदिर अमृतसर, कपूरथला गुरूद्वारे एवं किसान आन्दोलन के दौरान गुरुग्रंथ साहिब की “बेअदबी” के नाम पर की गयी हत्याएं भी देखी हैं।
जहाँ हम पाकिस्तान में बढ़ती हुई इस्लामिक कट्टरता के दुष्परिणाम देख रहे हैं, तो वहीं भारत में एक बड़ा कट्टर वर्ग ऐसा है जो अपनी मजहबी पहचान के नाम पर उस मजहबी कट्टरता को आगे बढ़ा रहा है जो पूरे समाज के लिए घातक सिद्ध होगी।
कर्नाटक में हिजाब पहनकर स्कूल आने को लेकर हंगामा हो रहा है
कर्नाटक में मुस्लिम लड़कियों का एक समूह जबरन हिजाब पहनकर स्कूल में आने की बात कर रहा है, और इन्हें भड़काया जा रहा है सफूरा जरगर जैसे लोगों द्वारा, जो हिजाब को मूलभूत अधिकार मानते हुए सोशल मीडिया पर रोष व्यक्त कर रही हैं
क्या मुस्लिम लड़कियों के लिए इस प्रकार का पर्दा जायज है? जो शिक्षा एकसमान मानने की प्रेरणा देती हो, वह उसी शिक्षा से कह रही हैं कि उन्हें परदे में इसलिए बांधा जाए क्योंकि उनका मजहब यह कहता है।
हालांकि कर्नाटक के शिक्षामंत्री ने इसे अनुशासन हीनता बताते हुए यह कहा है कि स्कूलों में हिजाब अनुशासन हीनता है और इसे लागू नहीं किया जाएगा
यह देखना बहुत ही हैरानी भरा है कि जहाँ पाकिस्तान में लोग इस कट्टरता के विरोध में आवाज उठा रहे हैं वही भारत के मुस्लिम एक्टिविस्ट अपनी ही मुस्लिम लड़कियों को उस अँधेरे में धकेल रहे हैं, जहाँ पर पर्दा है और जहाँ पर अँधेरा है!
क्या भारत के मुस्लिम संगठन अपनी ही लड़कियों को मात्र अपनी राजनीति का औजार समझते हैं? क्या शर्जिल उस्मानी जैसे लोग यही चाहते हैं कि उनकी लडकियां पर्दे में रहें और धीरे धीरे वह उसी मध्ययुगीन जमाने में चली जाएँ, जहां से बाहर निकालने के प्रयास शिक्षा कर रही है.
और मुस्लिम समुदाय बेहतर शिक्षा के स्थान पर अपनी लड़कियों को पर्दे में रहने के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दे रहा है, यह और भी अधिक डराने वाला दृश्य है! परन्तु बुद्धिजीवियों का इन सब मौन, यह और भी अधिक भयावह है!
It is surprising that a person is going to the gallows on charge of blasphemy. If anybody does not have faith in Islam, does he or she has no right to live! And it is sad to learn that extremist Muslims groups in India are supporting the PAK court’s verdict and want such inhuman practices to be clamped in India too. India Govt. must ban such extremist organizations and nip them in the bud.