कुतुबमीनार भी इन दिनों लगातार चर्चा में है। यहाँ पर हिन्दू मंदिरों के साक्ष्य लगातार मिलते आ रहे हैं। परन्तु अब एक जो समाचार निकल कर आ रहा है वह बहुत ही सुखद एवं हैरान करने वाला है। दैनिक जागरण के अनुसार कुतुबमीनार परिसर में कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के एक स्तम्भ में एक प्रतिमा है, जिसकी पहचान करने का कई वर्षों से प्रयास किया जा रहा था। परन्तु अब जाकर उसकी पहचान सामने आई है और पुरातत्वविद धर्मवीर शर्मा के अनुसार यह प्रतिमा नरसिंह भगवान और भक्त प्रह्लाद की है।
क़ुतुबमीनार के विषय में बच्चों को बार बार यही पढ़ाया जाता है कि इसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था। परन्तु जब एनसीईआरटी से सूचना के अधिकार के माध्यम से यह प्रश्न किया गया था कि यह जानकारी कहाँ से प्राप्त हुई तो उन्होंने किसी भी प्रकार की जानकारी होने से इंकार कर दिया था।
जहाँ एक ओर क़ुतुबमीनार को लेकर कई दावे हैं तो मस्जिद को लेकर भी मुस्लिम पक्ष के दावे हैं। परन्तु इस बात को शिक्षाविद भी मानते हैं कि यह मस्जिद और अढाई दिन का झोपड़ा दोनों ही हिन्दू मंदिरों के अवशेषों से बनी हैं।
इसी के विषय में आगरा विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफ़ेसर ए एल श्रीवास्तव द्वारा लिखी गयी किताब THE SULTANATE OF DELHI में यह लिखा गया है कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने यह मस्जिद हिन्दू मंदिरों को तोड़कर बनवाई थी।

और पिछले दिनों ही क़ुतुबमीनार से गणेश प्रतिमाओं को हटाने की बात केंद्र सरकार की संस्था राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण ने की थी, तो पहले तो उसका विरोध हुआ था और फिर न्यायालय से भी इस पर रोक लग गयी थी।
गणेश प्रतिमा तो वहां पर है ही, परन्तु स्तम्भों पर बनी प्रतिमा का पता नहीं चल पा रहा था। अब जाकर पता चला है कि यह भक्त प्रहलाद और भगवान नरसिंह की है। इस प्रतिमा की पहचान करने वाले धर्मवीर शर्मा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) में क्षेत्रीय निदेशक रहे हैं, उनका दावा है कि यह मूर्ति आठवीं-नौवीं सदी में प्रतिहार राजाओं के काल की है। इसे वर्षों से पहचानने की कोशिश की जा रही थी, काफी दिनों के प्रयास के बाद अब पुरातत्वविद ने इस मूर्ति की पहचान की है।
यह भी दावा किया जा रहा है कि यह प्रतिमा 1200 वर्ष पुरानी है तथा कहीं न कहीं यह राजा भोज के समय की है। उन्होंने कहा कि यह नरसिंह भगवान की दुर्लभतम प्रतिमा है अन्य कहीं इस तरह की मूर्ति नहीं मिलती है।
यह भी विडंबना ही है कि आज जब हिन्दू समाज एक ओर ज्ञानवापी में अपने महादेव की लड़ाई लड़ रहा है तो वहीं क़ुतुबपरिसर में दुर्लभ प्रतिमाओं की पहचान हो रही है!
और फिर भी भारत का इतिहास मुग़ल वास्तुकला से भरा हुआ। जबकि यदि देखा जाए तो उस आक्रमण के दौर की अधिकाँश इमारतें उन्होंने मन्दिरों को तोड़कर ही बनाई हैं। उसके बाद भी उस पक्ष की निर्लज्ज हंसी हैरत में डालती है!
Hamari Sar- Jami Par,
Hamko Mitane Aaye,
Kitne Hee,Mugal,Turk,Ujbek,Irani,
KABREN Unn Sabki Bann Gayee,
Nahee Bacha Koi Dene-Wala PANI.