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Sunday, April 2, 2023

हिन्दुओं की एकात्मकता और पहचान के प्रतीक कांवड़ यात्रा पर जारी है कथित सेक्युलर पत्रकारों का हमला!

सावन आते ही हिन्दुओं के त्योहारों का आरम्भ हो जाता है। श्रावण मास की शिवरात्रि पर महादेव को उनके भक्त जल अर्पण करते हैं और इस जल को लेमे के लिए वह लोग पवित्र नदियों तक जाते हैं, वहां से जल लाते हैं एवं उसके उपरान्त भोलेबाबा को अर्पित करते हैं। वह इसमें किसी जीव की हत्या नहीं करते, किसी का अपमान नहीं करते, वह पैदल ही जल लेकर आते हैं और फिर अपने बाबा पर चढ़ाते हैं।

पिछले कुछ वर्षों से कांवड़ यात्रा में जाने वालों में भी वृद्धि देखी गयी है तो वहीं इस यात्रा के भी विरोध में वृद्धि देखी गयी है, साहित्य के क्षेत्र में पहले ही इस यात्रा को लेकर अजीबोगरीब कहानियाँ लिखी जाती रही हैं और कथित प्रगतिशील पत्रकार तबका एक बार फिर इन्हें बदनाम करने में जुट जाता है। इस बार उन्हें आपत्ति है कि आखिर राज्य सरकार द्वारा कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा क्यों कराई जा रही है जबकि नमाज का विरोध किया जाता है? यह ट्वीट सेक्युलर जमात की सबसे प्रिय पत्रकार बरखा दत्त ने किया था, जिन्हें कारगिल युद्ध के दौरान एक “कुख्यात” भूमिका के लिए जाना जाता है।

उन्होंने लिखा कि वह आम सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक एकत्रीकरण के पक्ष में नहीं हैं, परन्तु यह पक्षपात क्यों?

बरखा दत्त का यह ट्वीट अपने आप में तथ्यों के आलोक में कितना हास्यास्पद है, यह बरखादत्त को स्वयं नहीं पता होगा? सबसे पहले तो यही कि नमाज सप्ताह में एक बार होती है तो वहीं कांवड़ यात्रा वर्ष में एक बार मात्र चार या पंच दिनों के लिए।

और सरकारों द्वारा यदि हिन्दुओं के धार्मिक कार्यों हेतु कुछ व्यवस्थाएं की जाती हैं तो क्या यह तथ्य बरखा दत्त जैसे लोगों को नहीं पता है कि भारत में एकमात्र हिन्दू ही ऐसा समुदाय है जिसके धार्मिक अधिकारों को भी सरकार और न्यायालय ने बंधक बना रखा है? वह न ही अपने मन से त्यौहार मना सकता है और न ही अपने मंदिरों का प्रबंधन कर सकता है? इतना ही नहीं, वह तो यह तक नहीं कह सकता है कि उसके साथ अन्याय हो रहा है या अन्याय हुआ है, या उसके साथ अतीत में भी कुछ हुआ है, वह तो कुछ कह ही नहीं सकता है! उसके सामने विकल्प ही नहीं हैं क्योंकि जैसे ही वह कहने चलता है उसे रेडिकल अर्थात कट्टर, रेग्रेसिव अर्थात पिछड़ा कहा जाने लगता है।

बरखा दत्त जैसे लोग कांवड़ और कांवड़ यात्रा को कोसते हैं, और सामूहिक नमाज के विषय में कुछ कहने से परहेज करते हैं। क्या एक बहुत ही सरल सी बात नहीं पता है इन्हें कि हिन्दू पर्व के नाम पर कब्जा नहीं करते हैं, जबकि विकास के नाम पर उनके धार्मिक स्थलों पर अवश्य कब्जा हो जाता है।

इस ट्वीट पर एक यूजर ने मुम्बई पुलिस रोजों के दौरान इफ्तारी परोसे जाने का वीडियो साझा किया:

सरकारी स्तर पर अभी तक इफ्तार पार्टी हुआ करती थी, तब तक ठीक था, परन्तु अब? राज्य द्वारा हज यात्रा पर दी जा रही छूट स्वीकार्य है, परन्तु कांवड़ पर फूल बरसाए जाने आपत्ति है!

लोगों ने पुलिस द्वारा दी गयी इफ्तार पार्टी की तस्वीरें ट्वीट कीं:

बरखा जैसे लोग यह एकदम भूले हुए हैं कि हिन्दू धर्म के धार्मिक स्थलों का प्रबन्धन सरकार करती है और उन्हें अपने ही आराध्यों के दर्शन के लिए सरकार का मुख कभी कभी ताकना होता है, ऐसे में उनके धार्मिक अधिकारों का क्या? न जाने कितनी प्रतिमाएं बिना पूजा और अभिषेक के रह जाती हैं, उनका क्या? न जाने कितने विग्रह अभी तक अपने पूजन की आस में म्यूजियम आदि में रखे हुए हैं? इनकी कोई गिनती नहीं है, कुतुबमीनार परिसर में भी हिन्दुओं के देव बिना पूजा के पड़े हैं, परन्तु सुध नहीं हैं, और यह सुध मीडिया में तो किसी को नहीं है क्योंकि उनके लिए कभी हिन्दू आवश्यक था ही नहीं! ऐसे में एक यूजर लता ने बरखा दत्त से प्रश्न किया कि

यह कैसे ठीक है कि राज्य मात्र हिन्दू मंदिरों और मठों को ही नियंत्रित करें और मंदिरों का सोना और पैसा हड़प लें मगर मस्जिद, गिरिजा और गुरुद्वारों का प्रबंधन उन्हीं के पास रहे! यह कितना अजीब भेदभाव है?

इशकरण भंडारी ने भी यही प्रश्न किया कि पहले मंदिरों को स्वतंत्र किया जाए, फिर ऐसे प्रश्न किए जाएं:

इस पर लोगों ने उनका ही सरकारी इफ्तार वाला ट्वीट दिखाया जिसमें वह प्रधानमंत्री की इफ्तार पार्टी में जा रही थीं:

वैसे भी अब सावन आने के बाद से ही जैसे जैसे हिन्दुओं के त्यौहार आते रहेंगे, देश में सुप्त पड़ी हिन्दू विरोधी पर्यावरण लॉबी आँखें खोलकर बैठेगी, फेमिनिस्ट आँखें खोलकर उठेंगी और न जाने कितनी संस्थाएं अपनी क्रिसमस और ईद के बाद की अपनी लम्बी बेहोशी की चादर उतारकर फेंकेंगे और कई तरह के अभियान चलाना आरम्भ कर देंगे, जैसे पेटा को याद आएगा कि हिन्दुओं के त्यौहार आ रहे हैं तो डेयरी के खिलाफ कदम उठाना है, मिठाइयों के खिलाफ अभियान चलाना है, और हाँ पटाखे तो हैं ही!

बरखा दत्त का यह ट्वीट आने वाले समय में उस पूरी की पूरी लॉबी द्वारा चलाए जाने वाले अभियानों की शुरुआत है, जो सेक्युलर नींद और सेक्युलर दावत जीम कर बैठी हुई  थी और आँख खोल रही है!

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