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Saturday, April 27, 2024

नसीरुद्दीन शाह ने फिर गाया मुग़ल राग: बोला “अकबर खलनायक नहीं”: परन्तु तथ्य तो अकबर को खलनायक ही बताते हैं नसीर साहब

नसीरुद्दीन शान का गुस्सा एक बार फिर से भड़क गया है और इस बार उन्हें यह दुःख है कि मुगलों को क्यों बुरा लगता है। और उन्होंने यह कहा है कि अकबर खलनायक नहीं है। अकबर खलनायक नहीं है, इसका शोर लगभग सभी सेक्युलर लोग मचाते हैं, मगर सत्यता क्या है, यह इतिहास में दर्ज है ही। हुमायूं का बेटा अकबर जिसने हेमू को मारकर “गाज़ी” खुद को कहलवाया था और हेमू का धड़ टांग दिया था जिससे हिन्दू विद्रोह न कर सकें!

और ऐसा एक नहीं कई पुस्तकों में है।

हालांकि अकबर को दयालु बताने के लिए यह स्थापित करने का कुप्रयास किया गया कि उसने हेमू की हत्या नहीं की, बल्कि बैरम खान ने हेमू का सिर धड से अलग किया था, परन्तु इस बात को इतिहासकार नहीं मानते हैं।

विसेंट ए स्मिथ इससे सहमत नहीं हैं। वह द डेथ ऑफ हेमू इन 1556, आफ्टर द बैटल ऑफ पानीपत (The Death of Hemu in 1556, after the Battle of Panipat) में अहमद यादगार को उद्घृत करते हुए लिखते हैं कि “किस्मत से हेमू के माथे में एक तीर आकर लग गया। उसने अपने महावत से कहा कि वह हाथी को युद्ध के मैदान से बाहर ले जाए। मगर वह लोग भाग न पाए और बैरम खान के हाथों में पड़ गए। इस प्रकार बेहोश हेमू को बालक अकबर के पास लाया गया, और फिर उससे बैरम खान ने कहा कि अपने दुश्मन को अपनी तलवार से मारे और गाजी की उपाधि धारण करे। राजकुमार ने ऐसा ही किया, और हेमू के गंदे शरीर से उसका धड़ अलग कर दिया।”

डे लेट (De Laet) की पुस्तक में भी यही विवरण प्राप्त होता है। डच में लिखी गयी पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद स्मिथ ने दिया है जो इस प्रकार है “ हेमू के सैनिक अपने राजा को हाथी पर न देखकर भागने लगे और मुगलों ने अधिकार कर लिया। और बैरम खान ने हेमू को पकड़ कर अकबर के सामने प्रस्तुत किया। अकबर ने अली कुली खान के अनुरोध पर अचेत और आत्मसमर्पण किए हुए कैदी का सिर तलवार से काट दिया और फिर उसके सिर को दिल्ली के द्वार पर लटकाने का आदेश दिया।”

https://www.jstor.org/stable/25189451

इस्लामिक जिहाद, अ लीगेसी ऑफ फोर्स्ड कन्वर्शन, इम्पीरियलिज्म एंड स्लेवरी में (Islamic Jihad A Legacy of Forced Conversion‚ Imperialism‚ and Slavery) में एम ए खान अकबर के विषय में लिखते हैं “बादशाह जहांगीर ने लिखा है कि मेरे पिता और मेरे दोनों के शासन में 500,000 से 6,00,000 लोगों को मारा गया था। (पृष्ठ 200)

इतना ही नहीं हिन्दुओं के विषय में यह कहा जाता है कि जिस घर में डोली जा रही है, वहीं से अर्थी आए, तो हिन्दुओं में तो अधिक नहीं दिखता है, परन्तु इतिहासकारों एवं तथ्यों के आलोक में यह अवश्य दिखाई देता है कि अकबर, जिसने हरम को एक सुव्यस्थित शुरुआत दी, उसने यह नियम अवश्य बनाया था कि जो महिला उसके हरम में आ गयी, वह अब वहीं पर अपनी मौत तक रहेगी।

आर नाथ “प्राइवेट लाइफ ऑफ द मुगल्स ऑफ इंडिया” में मुगल की हरम व्यवस्था को विस्तार से लिखते हैं। उन्होंने लिखा है कि हालांकि हरम शब्द अरबी शब्द हराम (कुछ पवित्र या निषिद्ध) या पारसी शब्द : हरेम (अभ्यारण्य) से लिया गया है, परन्तु उन्होंने यहाँ पर संस्कृत शब्द हर्म्य का भी उल्लेख किया है। जिसका अर्थ होता है महल।

इसीमें सबसे अकेला या सुरक्षित स्थान होता था रनिवास! जहाँ पर बाहर के किसी भी व्यक्ति का आना वर्जित था।  यहाँ पर केवल मर्द में बादशाह ही आ सकता था। यहाँ तक कि बड़े होते बेटे भी वहां  पर नहीं आ सकते थे। अर्थात शहजादों का हरम में आना मना था।

अकबर ने बनाए थे नियम

बाबर और हुमायूं के हालांकि चार चार से अधिक बीवियां थीं, और कई रखैलें भी थीं, परन्तु उनके जीवन में स्थायित्व का अभाव था, इसलिए वह एक स्थान पर हरम नहीं बना पाए थे। एक संस्थान के रूप में हरम की स्थापना अकबर के समय में हुई थी और उसीके अधीन यह ऐसे काम करता था जैसे कोई सरकारी विभाग करता है।

इस पुस्तक में लिखा है कि “सबसे रोचक बात यह है कि अकबर एक औरत से जीवन भर के लिए निकाह करता था, जैसे हिन्दू जीवन भर साथ का वचन देते हैं और उसने कभी तलाक नहीं दिया था। उसके हरम में आने वाली औरत हमेशा के लिए हरम में आती थी। और यहाँ तक कि बादशाह की विधवाओं को भी दोबारा शादी करने की अनुमति नहीं थी और बादशाह के मरने के बाद उन्हें विधवा के रूप में शेष जीवन सोहागपुर नामक महल में बितानी होती थी।”

अकबर को नई नई लडकियां चाहिए थीं

इसी में वह आगे लिखते हैं कि अकबर को नई नई लडकियां चाहिए होती थीं और वह हर औरत, जिसपर उसका दिल आ जाता था, जिसमें अब्दुल वासी की खूबसूरत बीवी भी शामिल थी, जिसका तलाक अकबर ने करवा दिया था।

और अब्दुल वासी की खूबसूरत बीवी के सम्बन्ध में अलबदांयूनी क्या लिखता है वह भी देखना चाहिए। अल-बदाऊंनी (१५४० – १६१५)  ने मुन्तखाब-उत-तवारीख (Muntakhab–ut–Tawarikh) में पृष्ठ 59 पर लिखा है कि

““और इसी स्थान पर (मथुरा के आसपास) बादशाह ने अमीरों के साथ शादियों के माध्यम से रिश्ते बनाने का सोचा। दिल्ली पर सबसे पहले चर्चा की गयी और कव्वालों एवं हिजड़ों को उन अमीरों के हरमों में से लड़कियों को चुनने के लिए भेजा गया। और फिर शहर में आतंक छा गया।”

“आगरा के सरदार शेख बादाह की एक बहू थी। जिसका शौहर जिंदा था, मगर जो बहुत सुन्दर थी। एक दिन बादशाह की नज़र उस पर पड़ी और अकबर ने आगरा के सरदार के पास एक सन्देश भेजा कि वह उसकी बहू से निकाह करना चाहता है। और यह मुगल बादशाहों में नियम है कि अगर किसी बादशाह ने किसी औरत पर शारीरिक सम्बन्ध बनाने/निकाह करने के लिए निगाह डाल दी तो उस औरत के शौहर को हर हाल में अपनी बीवी को तलाक देना होगा। जैसा सुलतान अबू सैद और मीर चोबन और उसके बेटे दमश्क ख्वाजा की कहानी में दिखाया गया है। फिर अब्दुल वासी ने यह आयत पढ़ी “खुदा की धरती बहुत चौड़ी है। इस संसार के मालिक के लिए यह दुनिया बहुत संकुचित नहीं है।” और फिर उसका शौहर अपनी बीवी को तीन बार तलाक बोलकर दक्कन में बीदर चला गया और उसकी बीवी अकबर के हरम में आ गयी।

फिर यह भी लिखा है कि मुगल बादशाह की नज़र पड़ने पर शौहर को अपनी बीवी को तलाक देना होता था, तो वह “कोड्स ऑफ चंगेज़ खान” के अनुसार होता था।

अकबर की अय्याशियों की कहानियां इतनी है कि नसीर साहब आप सुन नहीं सकते हैं और आप कहते हैं कि अकबर को खलनायक न बताया जाए? यह किस मुंह से आप कह सकते हैं? शर्म नहीं आती? शर्म नहीं आती कि उसे खलनायक न समझा जाए जिसने चित्तौड़ में घेरेबंदी करके निर्दोष हिन्दू किसानों की ह्त्या की थी? उसे खलनायक न समझा जाए जिसने अपने संरक्षक बैरम खान की बेवा बीवी से ही निकाह कर लिया था?

उसे खलनायक न समझा जाए, जिससे रानी दुर्गावती का शासन सहन नहीं हुआ और उन्हें असमय ही धरती छोड़कर जाना पड़ा? रानी दुर्गावती अपना शासन ही तो कर रही थीं, फिर ऐसा क्या हुआ कि अकबर से एक हिन्दू स्त्री का शासन करते हुए नहीं देखा गया, क्योंकि अकबर की दृष्टि में स्त्री मात्र उस हरम का हिस्सा होनी चाहिए थी, जो उसने अपनी अय्याशियों के लिए बनाया था और जहाँ पर उसके अतिरिक्त और किसी भी आदमी का सहज प्रवेश वर्जित था!

अकबर खलनायक ही है नसीर साहब, तथ्यों को अपने हिसाब से लपेट कर पेश करने से वह नायक नहीं हो जाएगा! उसे नायक प्रमाणित करने के प्रयास तो न जाने कब से चल रहे हैं, परन्तु तथ्य ऐसे हैं जो दर्ज हैं, जो एक नहीं कई पुस्तकों में दर्ज हैं, जिन्हें उघाड़ उघाड़ कर लोग सामने लाते रहे हैं, इसलिए नसीर साहब चाहे नेटफ्लिक्स पर सीरीज आ जाए या फिर सबसे सुन्दर नायक कहे जाने वाले हृतिक रोशन फिल्म में अकबर बनकर आ जाए,अकबर वही रहेगा, हेमू को मारकर गाज़ी कहलवाने वाला अकबर! हिन्दुओं की स्त्रियों को जबरन अपने हरम में लाने वाला अकबर, अय्याशियों का नया अध्याय लिखने वाला अकबर!

जो प्रवीण राय को अपने दरबार में बुलवा लेता है, क्योंकि उस पर यह सहन नहीं हो पा रहा था कि ओरछा के महाराजा इंद्रजीत की प्रेमिका रायप्रवीण इस सीमा तक सौन्दर्य का प्रतिमान है कि उसे अकबर के अनुसार अकबर के हरम में होना चाहिए था और रायप्रवीण यह कहकर अकबर को दरबार में लज्जा से भरने में सफल हुई थी कि

विनती राय प्रवीण की, सुनिए साह सुजान,

झूठी पातर भखत हैं, बायस-बारी-स्वान”

आप भी प्रयास करके देख लीजिये, परन्तु यह सत्य है कि इस सीरीज के बाद अकबर की और भी छीछालेदर होने वाली है क्योंकि तथ्यों के आलोक में आपका एजेंडा नहीं चलेगा और उसे सोशल मीडिया के युग में लोग तुरंत ही तोड़ने लगेंगे!

इतिहास एजेंडे पर नहीं चलता है, तथ्यों पर चलता है और तथ्य अकबर को खलनायक ही बनाते हैं, इसे स्मरण रख लीजिये!

सीरीज से आप अकबर की अय्याशियाँ और पाप नहीं धो सकते हैं और न ही ऐसे उन हिन्दुओं को अपराधी घोषित कर सकते हैं जो सदियों से मजहबी कट्टरता का शिकार होते आ रहे हैं!

मुगलों की इमेज मेकओवर के दिन चले गए हैं नसीर साहब, एजेंडा अब लोगों की समझ में आ गया है!

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