13 दिसंबर को जब काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर को जनता के लिए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने समर्पित किया तो उन्होंने औरंगजेब का नाम लिया। शायद यह पहली बार किसी प्रधानमंत्री द्वारा प्रथम अवसर है, जब उस आततायी का नाम लिया गया है। वह आततायी क्यों है? इसका प्रमाण उस समय का लिखा गया इतिहास देता है और साथ ही टूटे हुए मंदिर और काशी में मंदिर तोड़कर बनाई गयी मस्जिद भी उसके अत्याचारों को चीख चीख कर बताती है।
फिर भी आज तक किसी भी प्रधानमंत्री ने औरंगजेब की क्रूरता का उल्लेख मंच से नहीं किया था! काशी विश्वनाथ मंदिर को उसने तुडवाया था, और मस्जिद का निर्माण करवाया था। यह बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि एक ओर तो प्रगतिशील खेमा सिखों के साथ खड़ा होता है, परन्तु वह सिखों के गुरु तेग बहादुर का सिर काटने वाले औरंगजेब के साथ भी खड़ा होता है। वह औरंगजेब को पीर बताने में ही नहीं बल्कि उसके द्वारा किए गए हर कुकृत्य को अपनी लेखनी से व्हाईटवाश करने के लिए तैयार हो गए हैं।
जैसे ही प्रधानमंत्री मोदी ने यह कहा कि “जब जब कोई औरंगजेब आता है, तभी शिवाजी आते हैं!” यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को इसलिए भी तोड़ा था क्योंकि वह उस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था, जो उसका शिवाजी महाराज ने किया था!
क्या किया था शिवाजी महाराज ने?
शिवाजी महाराज के साथ जयसिंह ने संधि की थी और इसी संधि में बंधकर शिवाजी महाराज आगरा आए थे। औरंगजेब ने चाल चलते हुए उन्हें आगरा में कैद कर लिया था। शिवाजी के पास और कोई नहीं था और वह अकेले थे। परन्तु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी और अत्यंत कुशल योजना बनाते हुए वह औरंगजेब की कैद से भाग निकले थे।
दरअसल इसे भाग निकलना कहना गलत होता। कहना यही होगा कि वह औरंगजेब और उसकी सेना को परास्त करके गए थे। एक अकेले व्यक्ति ने इतने बड़े साम्राज्य को आईना दिखा दिया था। एक धर्मनिष्ठ हिन्दू ने यह दिखा दिया था कि यदि आत्मविश्वास हो तो बड़ी से बड़ी शक्ति को पराजित किया जा सकता है।
आगरा से पलायन कहकर इस जीत को नीचा दिखाया है
जब जब इतिहास में यह उल्लेख आता है, तब अंग्रेजी में यह लिखा जाता है कि “एस्केप फ्रॉम आगरा” और हिंदी में लिखा जाता है कि वह औरंगजेब की कैद से भागने में सफल हुए, या फिर औरंगजेब के चंगुल से भागने में सफल हुए। परन्तु क्या यह मात्र इतनी ही छोटी घटना थी? यदि यह इतनी छोटी घटना होती तो क्या औरंगजेब इस घटना का गुस्सा हिन्दुओं के मंदिरों पर निकालता? क्या ऐसा संभव था कि किसी छोटी घटना का गुस्सा वह मंदिरों पर निकाले और मंदिरों को नष्ट कर दे?
नहीं! दरअसल यह उसके या कहें उसने जो इस्लाम धारण किया था, उसके मुंह पर एक बाद बहुत बड़ा तमाचा था। औरंगजेब की सेना उस समय की सबसे बड़ी सेना थी, कहा जाता है कि उसका गुप्तचर विभाग बहुत चौकस रहा करता था और उसकी क्रूरता तो जगजाहिर थी ही। और उसने खुद को मुस्लिमों में सबसे पाक और पवित्र घोषित किया था, आलमगीर कहा करता था। फिर ऐसे में उसे “परास्त” करके कोई चला जाए। यह उसकी सहनशीलता से परे था।
वर्ष 1666 में शिवाजी द्वारा मुंह की खाने के बाद मंदिरों को तोड़ने के फरमान जारी किए थे
जब वर्ष 1666 में शिवाजी ने औरंगजेब को परास्त कर दिया, और वह स्वयं ही नहीं निकले अपितु अपने बेटे को भी मथुरा में एक परिवार में छोड़ गए थे, जिसने कानों कान भनक भी नहीं होने दी थी। तो यह हार मात्र औरंगजेब की हार नहीं थी, यह उसकी पूरी व्यवस्था की हार थी, जिसमें उसका गुप्तचर विभाग शिवाजी के बेटे संभा जी का भी पता नहीं लगा पाया था।
इसी हार के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए उसने काशी और मथुरा सहित कई मंदिर तोड़ने का फरमान जारी कर दिया था।
लिब्रल्स किन्तु परन्तु के साथ इसे स्वीकारते हैं
काशी में बाबा विश्वनाथ के मंदिर चीख चीख कर उस विध्वंस की कहानी कहते हैं। उसके लिए किसी भी खुदाई की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह ऊपर ही स्पष्ट दिख रहे हैं। यही कारण है कि लिब्रल्स इसे नकार नहीं पाते हैं कि औरंगजेब ने इन मंदिरों को नहीं तोड़ा था। हाँ, वह एक नया सिद्धांत लेकर आते हैं और यही हमारे बच्चों को उनकी पाठ्यपुस्तकों में पढ़ाया जा रहा है। और वह यह कि औरंगजेब ने कुछ मंदिरों को छोड़कर एक भी मंदिर नहीं तोड़ा था, बल्कि केवल नए मंदिरों पर रोक लगाई थी।
और यह मंदिर क्यों तोड़े थे? इसका कारण लेखक और विचारक और कथित इतिहासकार यह देते हैं कि काशी का मंदिर और मथुरा का मंदिर इसलिए तोड़ा गया था क्योंकि इन दोनों ही मंदिरों के बहाने हिन्दू सशक्त हो रहे थे और कभी भी सत्ता को चुनौती दे सकते थे।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के परवेज़ आलम एक शोधपत्र में लिखते हैं कि बनारस का मंदिर इसलिए औरंगजेब ने नहीं तुड़वाया था क्योंकि वह हिन्दुओं से नफरत करता था, बल्कि इसलिए तुडवाया था क्योंकि ब्राह्मण संगठित हो रहे थे और उन्होंने शिवाजी का साथ दिया था। बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण अकबर के समय राजा मानसिंह ने कराया था और उन्हीं के परिवार के राजा जय सिंह ने शिवाजी की सहायता की थी, जिस कारण औरंगजेब को अपमान सहना पड़ा था, इसलिए क्रोध में आकर औरंगजेब ने उस मंदिर को तुड़वा दिया।
इसी प्रकार मथुरा के मंदिर के लिए भी यह यही कहानी बताते हैं कि जाट एकत्र हो रहे थे और व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह कर रहे थे। इसलिए मंदिर तुडवा दिया। राजस्थान में भी वही मंदिर तोड़े गए जिन्होनें औरंगजेब के प्रति वफादारी नहीं दिखाई!
ऐतिहासिक तथ्य और भी कुछ कहते हैं
ऐतिहासिक तथ्य यही कहते हैं कि काशी के मंदिर को तुड़वाने का कारण पूरी तरह से धार्मिक था। मासिर-ए-आलमगीरी में लिखा है कि बनारस में ब्राह्मण काफ़िर अपने विद्यालयों में अपनी झूठी किताबें पढ़ाते हैं और जिसका असर हिन्दुओं के साथ साथ मुसलमानों पर भी पड़ रहा है।
आलमगीर जो इस्लाम को ही फैलाना चाहते थे, उन्होंने सभी प्रान्तों के सूबेदारों को आदेश दिए कि काफिरों के सभी विद्यालय और मंदिर तोड़ दिए जाएं और इन काफिरों की पूजा और पढाई पर रोक लगाई जाए!
फिर उसी वर्ष अर्थात 1669 में आगे आकर पृष्ठ 66 पर लिखा है कि यह रिपोर्ट किया गया कि बादशाह के आदेश से उसके अधिकारियों ने काशी में विश्वनाथ मंदिर तोड़ दिया!
उसके उपरांत महारानी अहल्या ने मंदिर बनवाया था।
और अब उसका विस्तार प्रधानमंत्री मोदी एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी के कार्यकाल में हुआ है!
औरंगजेब के विरुद्ध हर प्रमाण उपलब्ध होने के बावजूद सेक्युलर का उसके प्रति प्यार अनूठा ही है!