हाल ही में बुल्ली बाई और सुल्ली एप के नाम पर मुस्लिम लड़कियों को लेकर लिब्रल्स एवं मुस्लिम एक्टिविस्ट ने बहुत हंगामा किया था कि महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी हो रही है और अपराधी पकडे जाने चाहिए। हम भी मानते हैं कि यह गलत था और अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए! परन्तु जो आरोपी पकडे गए, उनके आधार पर जैसे हिंदुत्व को और धर्मपरायण हिन्दुओं को कठघरे में खड़ा कर दिया गया।
सबसे मजेदार तो यह है कि समूचे विश्व में एक विचारधारा जो अपनी मजहबी कट्टरता के कारण अपनों का ही खून बहा रही है, और जिस कट्टरता की यौन हिंसा की कहानियां यजीदी लडकियां अभी तक सुना रही हैं, उस विचारधारा पर बात करने से न केवल भारतीय कथित लिबरल अपितु मुस्लिम एक्टिविस्ट भी डरते हैं, परन्तु बुल्ली बाई और सुल्ली एप बनाने वालों के आधार पर हिन्दू धर्म को बदनाम करने के साथ ही आरफा खानम शेरवानी ने तो यहाँ तक कह दिया था कि मुस्लिम महिलाओं के बलात्कार की कल्पना की जा रही है और मुस्लिम जीवन का हर पहलू खतरे में है:
परन्तु जब मुस्लिम लड़कियों को असली में बेचे जाने या मौलवी द्वारा किए गए बलात्कार की बात आती है तो इन सभी एक्टिविस्ट पर कोई असर नहीं पड़ता है। दो ऐसे मामले आए, जिनमें मुस्लिम लड़कियों पर अत्याचार करने वाले मुस्लिम ही थे, तो इन सभी एक्टिविस्ट ने कितना शोर मचाया, वह भी देखना होगा।
हैदराबाद में चौदह साल की बच्ची को सैय्यद अल्ताफ अली ने 3 लाख रूपए में खरीदने की कोशिश की, लड़की के घरवालों सहित नौ लोग हिरासत में लिए गए
25 जनवरी को टाइम्स ऑफ इंडिया में एक समाचार प्रकाशित हुआ। जिसमें लिखा था कि मुम्बई में एक 61 वर्षीय ट्रेवल एजेंसी के मालिक को हैदराबाद की एक 14 साल की लड़की को खरीदने के आरोप में हिरासत में लिया गया। मीडिया के अनुसार सैय्यद अल्फाफ अली ने अपनी बीवी को छ साल पहले तलाक दे दिया था और अपनी देखभाल के लिए किसी की तलाश में था।
अली को यह चौदह साल की लड़की ऑटो ड्राइवर अकील अहमद के माध्यम से मिली थी।
इस बच्ची की माँ, नानी और छ और लोगों को शनिवार की रात को बालापुर से गिरफ्तार कर लिया गया, जब वह समझौते को अंतिम रूप देने जा रहे थे। स्थानीय लोगों ने पुलिस को सूचित क्या।
मीडिया के अनुसार अली उनसे पहले भी मिला था, मगर चूंकि उसकी अम्मी ने 5 लाख रूपयों की मांग की थी। सौदा 3 लाख रूपए में फाइनल हुआ था। परिवार में कुछ आर्थिक समस्या आने पर लड़की के घर वालों ने उसे बेचने का निर्णय लिया था।
इस मामले में 9 लोगों को हिरासत में लिया गया है, जिनमें 2 आदमी और 7 औरतें शामिल हैं। सैयद अल्ताफ अली, अकील अहमद, जरीना बेगम, शबाना बेगम, शमीम सुल्ताना, नसरीन बेगम, जाहैदा बेगम, अर्शिया बेगम और चांद सुल्ताना। इन सभी को पॉस्को अधिनियम के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया है।
परन्तु रविवार को हुई इस घटना के विरोध में अभी तक कोई आवाज़ नहीं आई है कि लड़कियों को इस तरह बेचा जाना नहीं चाहिए।
अभी हाल ही में अफगानिस्तान में भी बच्चों को बेचे जाने की घटनाएँ सामने आई थीं। जिनमें देखा गया था कि जहाँ एक ओर लोगों ने गरीबी के चलते अपनी बच्चियों को बेचा था, शादी कर दी थी तो वहीं कुछ परिवारों ने तालिबान के सत्ता सम्हालने के बाद कुछ अफगानी महिलाओं और लड़कियों को उनके परिवार ने शादी के बहाने विदेशों में भेजा था।
मैनपुरी में एक आठ वर्षीय बच्ची के साथ मस्जिद के इमाम ने किया बलात्कार
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में एक आठ वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार का मामला सामने आया है। इस घिनौने काम को और किसी ने नहीं बल्कि मस्जिद के ही इमाम ने किया है। मीडिया के अनुसार आठ साल की बच्ची के साथ जब इमाम ने बलात्कार किया तो उसके यौनांगों से खून आने लगा। इस पर उसने बच्ची को छोड़ तो दिया, परन्तु उसने उसे कसम खिलाई कि वह किसी से कुछ नहीं कहेगी।
जब वह बच्ची घर पहुँची तो उसने घर में इस घटना के विषय में बता दिया। बच्ची के साथ हुई इस घटना को देखकर आक्रोशित घर वालों ने पुलिस में जाकर रिपोर्ट लिखाई तथा उसके बाद पुलिस ने इमाम को हिरासत में ले लिया है और बच्ची को मेडिकल के लिए भेजा गया।
मैनपुरी के किशनी क्षेत्र में घटी यह घटना और ऊपर हैदराबाद में घटी दूसरी घटना, दोनों में ही पीड़िता मुस्लिम बच्चियां हैं, और दोनों ही बच्चियों के साथ अन्याय हुआ है। हैदराबाद वाली घटना में बच्ची को उसके घर वाले ही बेचे दे रहे थे तो वहीं मैनपुरी में किशनी में मस्जिद के इमाम ने ही बच्ची का यौन शोषण किया, परन्तु छोटी छोटी मैनुफैक्चर्ड घटनाओं पर शोर मचाने वाले सभी मुस्लिम एक्टिविस्ट और लिब्रल्स चुप हैं।
जब आरोपी मुस्लिम होता है, तो वह चुप्पी साध लेते हैं। ऐसे में यह समझ नहीं आता है कि वह एक्टिविस्ट क्या मुस्लिम लड़कियों को मात्र हिन्दुओं पर निशाना साधने के लिए एक माध्यम के रूप में प्रयोग करते हैं और उनके बहाने से वह भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साध कर अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति करते हैं? यह प्रश्न इसलिए और प्रासंगिक हो चला है कि एक बार नहीं बार बार यह देखा गया है कि मुस्लिम एक्टिविस्ट अपने ही समाज की लड़कियों के साथ अपने समुदाय द्वारा हो रहे अन्याय पर चुप रहते हैं, ऐसे में क्या यह प्रश्न नहीं होना चाहिए कि वह किस ओर हैं? और वह लड़कियों को क्या मानते हैं?
क्या हैदराबाद में बेची जा रही उस लड़की की पीड़ा उन एप्स पर डाली गयी तस्वीरों से हलकी है कि, बात ही न होगी? प्रश्न तो यह भी है कि आप अन्याय के साथ क्यों खड़े हैं?