गुजरात के पंचमहाल जिले में स्थित प्रसिद्ध महाकाली मंदिर के ऊपर बनी दरगाह को उसकी देखरेख करने वालों की सहमति से हस्तांतरित करने के पश्चात उसका पुननिर्माण करवाया गया, और कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगभग 500 साल बाद मंदिर के शिखर पर भगवा पताका फहराई। इस उपलक्ष पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आज सदियों बाद पावागढ़ मंदिर में एक बार फिर से मंदिर के शिखर पर ध्वज फहरा रहा है। यह शिखर ध्वज केवल हमारी आस्था और आध्यात्म का ही प्रतीक नहीं है, यह इस बात का भी प्रतीक है कि सदियां बदलती हैं, युग बदलते हैं, लेकिन आस्था का शिखर शाश्वत रहता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आज भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गौरव के चिन्ह फिर से स्थापित किये जा रहे हैं। आज नया भारत अपनी आधुनिक आकांक्षाओं के साथ-साथ अपनी प्राचीन पहचान को भी जी रहा है, उन पर गर्व कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने देवी माँ से आशीर्वाद माँगा, ताकि वह अधिक ऊर्जा के साथ, और अधिक त्याग और समर्पण के साथ देश के जन-जन का सेवक बनकर उनकी सेवा कर सकें। उनका जो भी सामर्थ्य है, उनके जीवन में जो कुछ भी पुण्य हैं, वह सब देश की माताओं-बहनों के कल्याण के लिए, देश के लिए समर्पित करते रहे।
कहाँ है पावागढ़ मंदिर?
यह मंदिर गुजरात के पंचमहल जिले की पावागढ़ पहाड़ियों पर स्थित है, इसे महाकाली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ की विशेष बात यह है कि यहां दक्षिणमुखी काली मां की मूर्ति है। यह मंदिर पावागढ़ की ऊँची पहाड़ियों के बीच लगभग 550 मीटर की ऊंचाई पर है। पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत प्राचीन गुजरात की राजधानी चंपानेर से होती है। यहां 1,471 फुट की ऊंचाई पर ‘माची हवेली’ नामक स्थान है, यहाँ से महाकाली मंदिर तक जाने के लिए रोपवे की सुविधा भी है। यहां से पैदल मंदिर तक पहुंचने लिए श्रद्धालुओं को लगभग 250 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं।
इस स्थान को पावागढ़ क्यों कहते हैं?
यह एक प्राचीन शक्तिस्थल है, इस स्थान पर अत्यधिक ऊंचाई होने के कारण चढ़ना अत्यंत दुरूह होता था। चारों ओर गहरी खाइयों होने के कारण यहाँ हवा का वेग भी अत्यधिक तेज हुआ करता था, इसलिए इसे पावागढ़ कहते हैं। पावागढ़ का अर्थ है ऐसा स्थान जहां पवन का वास हो। पावागढ़ की पहाड़ियों के नीचे चंपानेर नामक नगर है, जिसे महाराज वनराज चावड़ा ने अपने मंत्री के नाम पर बसाया था। पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत चंपानेर से ही होती है।
जानिये क्यों यह मंदिर शक्तिपीठ बना और हिन्दुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रजापति दक्ष द्वारा भगवान् शिव का अपमान करने से क्षुब्ध माता सती ने योग बल द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे। देवी सती की मृत्यु से आक्रोशित और दुखी भगवान्शि शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव नृत्य करते हुए सम्पूर्ण ब्रह्मांड में भटकते रहे। सृष्टि को भगवान् शिव के प्रकोप से बचाने के लिए विष्णु जी ने अपने चक्र से माता सती के मृत शरीर के टुकड़े कर दिये। माता सती के अंग, वस्त्र तथा आभूषण जहां भी गिरे, उन स्थानों को शक्तिपीठ कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पावागढ़ पर माता सती का वक्षस्थल गिरा था। जगतजननी माता सती के वक्षस्थल गिरने के कारण इस जगह को अत्यंत पवित्र और पूजनीय माना जाता है। यहां दक्षिण मुखी काली देवी की मूर्ति है, जिसकी दक्षिण रीति यानि तांत्रिक पूजा की जाती है।
पावागढ़ का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्त्व भी है। यह मंदिर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी के समय का है। इसको शत्रुंजय मंदिर’ भी कहा जाता है, और ऐसा माना जाता है कि मां काली की मूर्ति स्वयं ऋषि विश्वामित्र ने ही स्थापित की थी। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम के पुत्र लव और कुश के अलावा बहुत से बौद्ध भिक्षुओं ने यहां मोक्ष प्राप्त किया था।
इस्लामिक सुलतान ने मंदिर को तोडा, 500 वर्षो बाद अब पुनर्स्थापित हुआ
मंदिर के शिखर को लगभग 500 वर्ष पहले इस्लामिक सुल्तान महमूद बेगड़ा ने नष्ट कर दिया था, और वहां एक दरगाह बना दी थी। अब जा कर इस मंदिर और इसके शिखर का पुनर्निर्माण किया गया है। हिंदू मान्यता के अनुसार खंडित शिखर पर कभी भी ध्वजा नहीं चढ़ायी जाती है। अब मंदिर का पुनर्निर्माण हो चुका है, सोने से बना हुआ मां महाकाली का शिखर भी तैयार कर दिया गया है, और दरगाह को भी अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया गया है। इसी कारण प्रधानमंत्री मोदी ने इस शक्तिपीठ मंदिर के दर्शन किये और वहां 500 वर्ष बाद फिर से भगवा पताका फहराई।