वामपंथी स्वयं को समतामूलक समाज का प्रतिनिधि बताते हैं। कथित समानता की बातें करते हैं, समानता का अर्थ बताते रहते हैं, और हिन्दुओं को नीचा दिखाने के लिए हिन्दू धर्म में तरह तरह के दावे करते हैं, वहीं क्या कोई कल्पना कर सकता है कि कोई राजनेता यह भी कह सकता है कि पैसे नहीं हैं तो स्टेडियम में क्रिकेट मैच न देखें। यह किस प्रकार का उपहास है और वह भी गरीबी का।
यह उस दल द्वारा कहा जा रहा है, जो कथित रूप से सेक्युलर है और जो गरीबों का उद्धारक होने का दावा करता है। केरल, जो कि वामपंथियों एवं कथित प्रगतिशीलों का प्रिय प्रांत तो है ही साथ ही उनकी दृष्टि में ऐसा प्रांत है जहां पर कुछ गलत हो ही नहीं सकता है।
प्रगतिशील लोग केरल की ओर से ऐसे आँखें मूंदे रहते हैं कि जैसे वहां पर सुशासन की गंगा बह रही हो, और वहां पर जो नेता कुछ भी ऐसा बोलते हैं जो समानता पर प्रहार हो या फिर गरीब लोगों का मजाक उड़ाते हुए हो तो कथित प्रगतिशील उसे अनदेखा कर देते हैं। ऐसा ही एक बयान आया है, खेल मंत्री वी अब्दुर्रहीमन का जिसमें उन्होनें कहा है कि जो लोग भूखे हैं, उन्हें क्रिकेट मैच देखने नहीं जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मैंने यह बहस सुनी कि राज्य में टिकट के दाम महंगाई के चलते कम हो जाने चाहिए, तो वह लोग जो भूखे हैं, उन्हें मैच देखने की जरूरत नहीं है।
दरअसल वह तिरुवनन्तपुरम शहर में करियावत्तम ग्रीनफ़ील्ड इंटरनेशनल स्टेडियम में होने वाले भारत और श्रीलंका के बीच एकदिवसीय मैच के लिए टिकटों में की गयी वृद्धि को सही ठहरा रहे थे।
मजे की बात यही है कि पूरे विश्व में वामपंथी दल केवल इसी दुष्प्रचार के चलते जिंदा है कि वह एकमात्र गरीबों के मसीहा है। वह यह दावा करते हैं कि उनकी पार्टी दबे कुचले लोगों की पार्टी है। एकमात्र उनका दल है जो निर्धनता उन्मूलन की बात करता है। अब यदि आदर्श राज्य केरल में गरीबी नहीं है या फिर गरीबी लाइन से नीचे लोग नहीं हैं तो फिर ऐसी बातें क्यों उठीं?
फिर यह भी बात है कि जब वामपंथी दलों की ओर से ऐसे बयान आते हैं तो वह लोग खुद को संवेदनशील बताते हैं, उनकी जुबां से एक भी शब्द नहीं फूटता है। उनके कानों में ऐसे वाक्य आते ही नहीं हैं। ऐसा क्यों होता है? ऐसा क्यों होता है कि केरल की ओर से “संवेदनशील” लोग बहरे होने का नाटक करते हैं।
केरल के खेल मंत्री यहीं नहीं रुके और फिर उन्होनें अपनी असंवेदनशीलता को दोहराते हुए कहा कि जो लोग आलोचना कर रहे हैं (टिकट के बढे हुए दामों की), वह दरअसल ऐसे लोग हैं, जिन्होनें एक भी लाइव मैच को देखने के लिए पैसे नहीं चुकाए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को पैसा तो चाहिए ही, फिर चाहे कुछ भी हो। उनका आशय करों से था। खेल मंत्री ने घोषणा की कि भूखे लोगों अर्थात गरीबों को खेल देखने नहीं जाना चाहिए।
उन्होंने दावा किया कि टैक्स के पैसे (भारत-श्रीलंका मैच से) का इस्तेमाल खेल क्षेत्र में किया जाएगा। मंत्री ने यह भी कहा कि तिरुवनंतपुरम में टैक्स के पैसे से फ्लैट बनाए जा सकते हैं।
यह भी रोचक है कि वामपंथियों ने खाड़ी देशों से प्राप्त धन का उपयोग करके जो अपार्टमेंट बनाए हैं, वे अब विवादों में फंस गए हैं। केरल में कई वर्षों से एक भी नया स्टेडियम नहीं बना है और न ही सरकार की कोई रूचि है कि वह या तो नया बनाए या फिर वह जो स्टेडियम हैं, उनका रखरखाव ही करे। एक नया मुस्लिम मंत्री और एक और घोटाला? ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे अब्दुर्रहीमन ने बदनाम और विवादास्पद मंत्री केटी जलील का स्थान ले लिया है।
मंत्री ने असामान्य रूप से ऊंची कीमतों के बारे में कहा कि पिछले सितंबर में हुए भारत-दक्षिण अफ्रीका मैच के दौरान टिकट दरों में बढ़ोतरी हुई थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि तब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने पूरे पैसे ले लिए थे। भारत ने वह मैच आठ विकेट से बड़े पैमाने पर जीत लिया था।
इस बार राज्य सरकार ने मनोरंजन कर को बढ़ाकर 12 प्रतिशत कर दिया है। पिछले मैच के दौरान यह 5 प्रतिशत था। इसके साथ ही 1,000 रुपये के टिकट पर 120 रुपये और 2,000 रुपये के टिकट पर 260 रुपये अतिरिक्त मनोरंजन कर देना पड़ा। यह 18% जीएसटी के अतिरिक्त है। इसे मिलाकर, एक सामान्य दर्शक द्वारा चुकाया जाने वाला कुल कर 30% तक बढ़ जाता है।
विशेषज्ञों ने बताया कि हम खेलों को इस तरह बढ़ावा नहीं देते हैं। एक साधारण टिकट के लिए 1,000 रुपये और 30% कर एक ऐसे राज्य में एक घोटाला है जहां आधे से अधिक युवा बेरोजगार हैं। 10 जनवरी को गुवाहाटी के बारसापारा स्टेडियम में हाल ही में संपन्न हुए मैच में छात्रों के लिए टिकट की दर सभी करों सहित 475 रुपये थी।
इस मामले पर राजनीतिक विरोध भी हुआ और भारतीय जनता पार्टी के राज्य अध्यक्ष ने अब्दुर्रहीमन के इस वक्तव्य की आलोचना की। उन्होनें कहा कि मंत्री का यह कहना कि केवल अमीरों को ही लाइव क्रिकेट मैच देखा जाना चाहिए, घमंड की सीमा है। उन्होंने कहा कि यह कोई आईपीएल की नीलामी नहीं है कि जिनके पास पैसा हो, केवल उन्हीं को उसमें भाग लेना चाहिए। मंत्री को यह याद रखना चाहिए कि क्रिकेट एक खेल है। सुरेन्द्रन ने मांग भी की थी कि कर को कम किया जाना चाहिए।
हालांकि मैच हो गया है, परन्तु निर्धनों के प्रति यह निष्ठुरता विमर्श का हिस्सा नहीं बन पाई! इस पर विचार होगा क्या?