spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
37.5 C
Sringeri
Friday, March 29, 2024

तो कबीर खान ने माना कि उनके “राजनीतिक दुराग्रह” ने ही बजरंगी भाईजान में “चिकन और ब्राह्मणों का” धर्म भ्रष्ट होने वाला गाना लिखवाया?

सलमान खान की एक फिल्म आई थी, बजरंगी भाई जान, जिसकी कथित रूप से बहुत प्रशंसा हुई थी, और इंसानियत की जीत आदि आदि इस फिल्म को कहा गया था। परन्तु यह फिल्म पूरी तरीके से एक एजेंडा संचालित फिल्म थी और वह उस एजेंडा को पोषित करती थी कि हिन्दू और मुख्यतया ब्राह्मण ही सबसे असहिष्णु होते हैं। यह उस एजेंडे के चलते बनाई गयी थी कि हिन्दू ही पक्षपात करने वाले होते हैं।

जब से वह बच्ची को लेकर घर आता है, तब से ही एजेंडा अपने पूरे चरम पर होता है। और उसमें एक गाना भी है जिसमें एक भक्त जो शाकाहारी है, और जो मुर्गे के मांस के लालच में अपना धर्म भ्रष्ट भी कर सकता है और कर रहा है। पशुओं का खून बहाकर उसे खाने वाले प्यार का प्रतीक बन गए थे और जो भूल से भी कीटों को न मारें, वह क्रूरता का प्रतीक! यही होता ही एजेंडा!

और ऐसी जो भी फ़िल्में बनती हैं, वह मनोरंजन के माध्यम से यही विकृतता आम जनता में और विशेषकर बच्चों में डालने का प्रयास करती है, वह भी तब जब देश में वातावरण कुछ एजेंडा चालक बिगाड़ रहे हों। क्या आपको लगता है कि ऐसी फिल्मों में गाने यूंही बन जाते हैं? या फिर एक सुनियोजित षड्यंत्र होता ही है? क्या ब्राह्मणों और हिन्दुओं के प्रति घृणा जानबूझकर डाली जाती है? ऐसे कई प्रश्न हैं और यह प्रश्न अब बजरंगी भाई जान बनाने वाले कबीर खान के एक इंटरव्यू से उठते हैं।

क्या कहा था कबीर खान ने?

कबीर खान ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा कि “नियत ही सब कुछ होती है!” उसके बाद कबीर खान कहते हैं कि “मेरे लिए फिल्म की राजनीति ही सब कुछ है। मैंने बार बार लोगों को यह कहते हुए सुना है कि हमें राजनीति में कोई रूचि नहीं है या फिर हम गैर राजनीतिक हैं।”

फिर कबीर खान का कहना था कि “इंसान के रूप में आप गैर राजनीतिक नहीं हो सकते हैं। हम जिस प्रकार से अपने चरित्रों को ढालते हैं, वह हमारी राजनीति को बताता है। जो भी हमारे चरित्र बोलते हैं, वह हमारी राजनीति को ही तो बताते हैं। आप अपनी फिल्म के हर शॉट और हर शब्द में अपनी राजनीति ही बताते हैं।”

फिर वह अपनी बात की प्रमाणिकता सिद्ध करने के लिए यह कहते हैं कि “बजरंगी भाईजान में जो चिकन वाला गाना था, वह इसलिए लोकप्रिय हुआ क्योंकि उसमें करीना और सलमान ने बहुत अच्छा डांस किया था, परन्तु वही सबसे ज्यादा राजनीतिक था क्योंक वह बीफ बैन के समय आया था। यह गाना मूलत: यह कहता है कि यह चौधरी ढाबा है, जो भारत का प्रतीक है, जिसमें आधा मेन्यु शाकाहारी है और आधा मांसाहारी, तो जो आपको खाना है वह साथ बैठकर खाइए और जाइए! यही आपको राजनीति में होना चाहिए!”

कबीर खान का कहना है कि फिल्मों की आयु लम्बी होती है

कबीर खान द्वारा यह सत्य स्वीकारने पर कि यह अपमानजनक गाना उन्होंने अपनी राजनीति को ध्यान में रखते हुए लिखा है, तो आइये देखते हैं कि गाने के बोल क्या थे?

कबीर खान यह कहते हैं कि यह सबसे अधिक राजनीतिक गाना था और इसने अधिक असर इसलिए किया क्योंकि बच्चों ने इसे बहुत पसंद किया, तो हमें देखना चाहिए कि उस गाने में आखिर है क्या?

भूक लगी भूक लगी

भूक लगी भूक लगी

ज़ोरों की भूक लगी

मुर्गे की बांग हमें

कोयल की कूक लगी

कोयल की मधुर कूक की उपमा उस विकृत सोच से कर दी है, जो हिंसा के माध्यम से किसी जीव को मारने जा रही है!

चौक चांदनी, चौधरी ढाबा

रात दिन यहाँ शोर शराबा

हे चौक चांदनी, चौधरी ढाबा

रात दिन यहां शोर शराबा

आधा है नॉन वेज

और वेज है आधा

स्पष्ट कीजिये क्या है इरादा

चाहिए नान या रोटी

चाहिए नान या रोटी

मंगलों राम क़सम कष्ट हो जाए

थोड़ी बिरयानी बुखारी

थोड़ी फिर नाली निहारी

ले आओ आज धरम भ्रष्ट हो जाए

अर्थात बच्चो को यह समझाया जा रहा है कि यदि आप मुर्गा नहीं खाते हैं तो आप पाप कर रहे हैं और मुर्गा खाकर आपको अपना धर्म भ्रष्ट करना चाहिए!

लाओ कोफ्ता, लाओ कोरमा

लाओ शोरबा, लाओ सोरमा

सारे उपवास भले नष्ट हो जाए

उपवासों की खिल्ली उड़ाई गयी है और चूंकि यह गाना बच्चों के साथ नाच करते हुए है तो बच्चों के कोमल मस्तिष्क को कबीर खान ने अपनी गंदी राजनीति फैलाने का माध्यम बनाया और बच्चों के माध्यम से धर्म एवं उपवास पर प्रहार करवाया गया!

जरा सोचिये, कि भारत में उन गैर मुस्लिमों को सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने के लिए वह लोग तक आ जाते हैं, जो फिल्म उद्योग में भी दूसरे विचारों को स्थान नहीं देते हैं। परन्तु यह भोजन का अधिकार है! शाकाहारी लोग अपने धार्मिक मूल्यों एवं नैतिक मूल्यों के आधार पर अपने खानपान को सुनिश्चत करते हैं एवं वह शाकाहारी ढाबे पर बैठकर खाते हैं। इसमें क्या समस्या है?

जहाँ आज तक ऐसा कोई भी उदाहरण प्रकाश में नहीं आया है जिसमें शाकाहारियों ने मांसाहारियों को बलात मांसाहार रोकने के लिए कहा हो, परन्तु लव जिहाद के कितने मामले सामने आए जिनमें शाकाहारी हिन्दू लड़कियों को जबरन मांस और यहाँ तक कि गौमांस तक खिलाया गया!

कबीर खान जब अपने मुंह से यह स्वीकार कर रहे हैं कि वह लोग जबरन राजनीति डालते हैं और बिना राजनीति के वह कोई फिल्म नहीं बनाते तो क्या यह आवश्यक नहीं हो गया है कि वह पहले ही बताएं कि यह एक विशेष राजनीतिक विचार के साथ बनी हैं या फिर निर्माता निर्देशक की राजनीति के आधार पर बनी है?

कबीर खान की नियत कभी भी यह नहीं थी कि वह सामंजस्यता की बात कर रहे हैं, बल्कि कबीर खान की नियत थी कि वह हिन्दुओं को बुरा दिखाएं, बजरंगी भाईजान में उस पाकिस्तान में समानता दिखाई गयी है, जिसमें शियाओं तक को मुस्लिम नहीं माना जाता है, हिन्दुओं की तो बात ही छोड़ दी जाए! जिस पाकिस्तान में दिनों दिन हिन्दू लडकियों का अपहरण करके मुस्लिम बना दिया जाता है, उस पाकिस्तान को न्याय प्रिय बताया गया है, और चूंकि कबीर खान नियत की बात करते हैं तो बजरंगी भाईजान के साथ साथ हालिया रिलीज़ फिल्म 83 में भी ऐसी ही नियत बार बार दिखाई थी, जिसमें दंगाग्रस्त क्षेत्र दिखा दिया गया था, मुस्लिम परिवार को पीड़ित दिखा दिया था आदि आदि!

यहाँ तक कि यह तक दिखा दिया गया था कि पाकिस्तानी सेना ने गोलीबारी रोक दी थी जिससे भारतीय सेना मैच इंजॉय कर सके?

यहाँ तक कि फिल्म न्यूयॉर्क में भी इस्लामी आतंकवाद को सही साबित करने का कुप्रयास किया गया था, क्योंकि नियत यही थी। कबीर खान जैसों के लिए सत्य नहीं बल्कि नियत अधिक महत्वपूर्ण है और वह अपनी नियत अर्थात हिन्दू द्वेष को ही हिन्दुओं के सामने परोसकर हिन्दुओं से पैसा कमाते हैं!  

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.