धीरे धीरे हर जनपर्व एवं जन आयोजन से हिन्दू पहचानों को मिटाने का सिलसिला जारी है। ऐसा प्रतीत होता है कि पहचान मिटाने का जो अभियान और हिन्दू चेतना को समाप्त करने का आन्दोलन मुगल एवं अंग्रेज काल में आरम्भ हुआ, वह अभी तक चल रहा है और अब तो आधुनिकता एवं समग्रता के नाम पर और भी तेजी से चल रहा है।
पोंगल जैसे पर्व से हिन्दू पहचान छीनने का प्रयास किया गया और अब जल्ली कट्टू जिसे चाहकर भी कथित पशुप्रेमी नहीं रोक पाए या फिर कहें कि हिन्दू-विरोधी रोक नहीं पाए तो अब नए अभियान आरम्भ हो गए हैं। जल्लीकट्टू एक ऐसा आयोजन है जिसके साथ लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं। जल्लीकट्टू का आयोजन पूरे तमिलनाडु में पोंगल पर्व के साथ किया जाता है।
परन्तु चूंकि इस पर प्रतिबन्ध और फिर इस आधार पर मनाए जाने की अनुमति के मध्य कि इस आयोजन को पशुओं एवं मानव दोनों के ही लिए सुरक्षित बनाया जाएगा, सरकारी हस्तक्षेप बढ़ने लगा है और यह निश्चित है कि जिस भी हिन्दू आयोजन में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ता है, वह आयोजन शनै: शनै: अपनी सांस्कृतिक मृत्यु को प्राप्त होने लगता है या क्षरण होने लगता है। ऐसा ही कुछ जल्लीकट्टू के साथ हो रहा है।
जल्लीकट्टू जो पूरी तरह से हिन्दू पर्व है, जो मंदिर के मैदानों में आयोजित किया जाता है और जिसमें मंदिर के बैलों को ही सबसे पहले छोड़ा जाता है। बैलों की पूजा देवता स्वरुप में होती है और इस समारोह में भाग लेने से पहले उन्हें पुजारी या फिर घर के बड़े लोग आशीर्वाद देते हैं कि वह विजयी हों। अर्थात यह पूरी तरह से धार्मिक आयोजन है। इसमें बैलों को कुमकुम, चंदन, हल्दी आदि का टीका लगाया जाता है और उन्हें मट्टू पोंगल के अवसर पर माला एवं नई धोती भी पहनाई जाती है।
जहाँ पर भी जल्लीकट्टू का आयोजन होता है वहां पर त्रिपुंड या उर्ध्वपुंड होते हैं, और यह इस आधार पर कि किस मंदिर के परिसर में यह आयोजित हो रहे हैं। अर्थात जल्लीकट्टू के बैलों के पालनपोषण से लेकर उनके दौड़ने के मैदान तक सारा स्वरुप धार्मिक ही है।
परन्तु जैसे ही इस आयोजन में सरकारी हस्तक्षेप आया, वैसे ही इसके स्वरुप को लेकर आपत्तियां उठने लगीं और इनदिनों ईसाई धर्मांतरित, जो ईसाई और हिंदू सिद्धांतों दोनों में विश्वास रखते हैं और प्राचीन काल से चली आ रही रीति-रिवाजों और परंपराओं को नहीं छोड़ सकते हैं, उन्होंने ईसाई पुजारियों से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद जल्लीकट्टू का आयोजन शुरू कर दिया है। इनमें कोई भी हिन्दू पहचान नहीं है। यही वजह है कि जल्लीकट्टू प्रशिक्षण केंद्र के सदस्य कुमकुम, चंदन या हल्दी का इस्तेमाल नहीं करने के निर्देश का विरोध करते हैं।
उन्होंने मदुरै में एक विरोध प्रदर्शन किया और जिला कलेक्टर को एक याचिका प्रस्तुत की जिसमें अधिकारियों को हिंदू पहचान मिटाने से रोकने की मांग की गई थी। उनकी याचिका में कहा गया है, “हम जल्लीकट्टू आयोजनों के लिए घर में पूजा और उनकी भी पूजा करने के बाद बैल लाते हैं। हम उन्हें देवताओं की तरह मानते हैं और उन्हें कार्यक्रम स्थल पर लाने से पहले विभूति, चंदनम, कुमकुम और हल्दी लगाते हैं।
“इसी तरह, हम वापस बैलों का स्वागत उसी धूमधाम से करते हैं जैसे कोई योद्धा का स्वागत करता है। (हिंदू) विशेषताओं वाला एक बैल पूर्ण राजचिह्न में एक देवता की तरह है। लेकिन अधिकारी इन भावनाओं की अवहेलना करते हैं और कहते हैं कि बैलों को अनुमति तभी दी जाएगी जब ऐसे सभी प्रतीकों को मिटा दिया जाएगा, जिसमें उनके गले में बंधी घंटी, कपड़ा (सम्मान के निशान के रूप में जोड़ा गया) और उनके सींगों पर प्रतीक शामिल हैं। उनकी पहचान मिटाना गलत है। जल्लीकट्टू के आयोजनों में ऐसा नहीं होना चाहिए। कलेक्टर इसे सुनिश्चित करें।
अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए, जल्लीकट्टू के बैलों के प्रशिक्षकों ने विरोध के दौरान सांडों के गले में बंधी हुई घंटियां पहनी थीं। ऐसा प्रतीत होता है कि हिंदू पहचान समाप्त करने के जो निर्देश थे, वह मौखिक ही थे। यह स्पष्ट नहीं है कि क्या इस आदेश को हिन्दू-विरोधी डीएमके सरकार ने दिया था या फिर अधिकारियों का वह वर्ग जो क्रिप्टो है या फिर नौकरशाह, जिन्होनें अपने ही आप यह निर्देश लागू कर दिए थे। लेकिन निश्चित रूप से, खेल मंत्री और सीएम के बेटे उदयनिधि स्टालिन सहित डीएमके मंत्रियों द्वारा अलंगनल्लूर, पलामेडु और अवनियापुरम कार्यक्रमों में भाग लेने वाले अधिकांश बैल तिलक और माला के बिना थे, अर्थात उनमें कोई भी हिन्दू पहचान नहीं थी।
जैसा कि विदेशी वित्त पोषित गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से जल्लीकट्टू को पूरी तरह से समाप्त करने का प्रयास विफल रहा, ऐसा लगता है कि चर्च ने इसकी हिंदू पहचान को मिटाने के लिए कदम उठाया है और यदि यह चलता रहा तो धीरे-धीरे खेल सफल होगा और इस प्रकार, हिंदू परंपरा विलुप्त हो जाएगी।
हरियाणा के पशुतस्कर जल्लीकट्टू के बैल चुराने पहुंचे, पकडे गए और एक पुलिस कर्मी पर गाड़ी भी चढ़ाई
ऐसा नहीं है कि जल्लीकट्टू को केवल हिन्दू पहचान के खोने के खतरे से ही जूझना पड़ रहा है। उसके सामने एक और खतरा है। उसके सामने यह भी खतरा है कि वह जिनपर आधारित है अर्थात बैल, क्या वह सुरक्षित हैं? क्या वह कसाइयों की दृष्टि से सुरक्षित हैं?
अभी तक ऐसा नहीं था कि उन्हें चुराने का प्रयास किया गया हो, परन्तु इस बार बहुत ही हैरानी का समाचार है कि उन्हें चुराने का प्रयास किया गया और उन्हें चुराने के लिए कोई आसपास का व्यक्ति नहीं बल्कि हरियाणा से पांच मुस्लिम गए थे।
मदुरै के बाहरी इलाकों में पशु चोरी के कई मामलों की शिकायत लोग कर रहे थे। कई स्थानों से लोगों ने जल्लीकट्टू के बैलों के चोरी होने की शिकायत दर्ज कराई थी। पुलिस इन चोरों की तलाश कर रही थी और फिर सब इन्स्पेक्टर धवामानी जो डिंडीगुल रोड पर चेक पोस्ट पर ड्यूटी पर थे, उनके पास सूचना आई कि चुराए हुए पशुओं के साथ एक मिनी ट्रक मदुरै के रस्ते की और जा रहा है।
दो और पुलिस कर्मियों के साथ उन्होंने ट्रक को रोकने का प्रयास किया तो उन पर ट्रक चढाने का प्रयास किया गया।
उन्होंने इन चोरों के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई और उसके बाद पता चला कि यह कार्य करने वाले नासिर, आर इरफ़ान, जे ज़ुनैर, आर शकील और ए हकमुद्दीन है और ये सभी हरियाणा से हैं। ये पूरा का पूरा गिरोह मदुरै और आसपास के जिलों से पशु चुराता था और फिर उन्हें केरल में कसाई घर में काटने के लिए लेकर जाता था। तमिल मीडिया के अनुसार उन्होंने जल्लीकट्टू के बैलों को भी तस्करी के लिए चुराया था।
जब इस अपराध के विषय में पता चल चुका है कि यह अपराध किस मानसिकता के लोगों ने किया है और मुस्लिमों ने किया है तो भी तमिल मीडिया की रिपोर्ट में उन्हें उत्तर भारतीय कहकर संबोधित किया गया है! इन शब्दों से कहीं न कहीं पहले से ही उत्तर भारतीयों के प्रति घृणा का विस्तार होगा एवं साथ ही इस अपराध का मजहबी स्वभाव छिप जाएगा!