लद्दाख में कारगिल में मुस्लिम अब बहुसंख्यक हो चुके हैं, और उस बहुसंख्यक क्षेत्र में वह किसी भी अन्य पंथ का धार्मिक स्थल नहीं बनने देंगे। इसी मंशा के साथ मुस्लिम समूह उस शान्तियात्रा का विरोध कर रहे हैं, जो कारगिल में बौद्ध मठ के निर्माण के लिए बौद्ध भिक्षु निकाल रहे हैं। उनकी एक ही मांग है कि कारगिल में उस स्थान पर बौद्ध मठ का निर्माण हो, जहाँ पर पहले बौद्ध मठ था।
धर्मगुरु चोस्कयोंग पालगा रिनपोछे अपने अनुयाइयों के साथ इस यात्रा को कर रहे हैं और वह उस स्थान पर बौद्ध मठ के निर्माण के लिए पत्थर रखना चाहते हैं, जो पहले बौद्धों की ही थी और जिस भूमि के प्रयोग का अधिकार जिहादियों के दबाव में आकर सरकार ने वर्ष 1969 में बदल दिया था।
बौद्ध मठ के निर्माण के लिए 31 मई से यात्रा का आरम्भ हुआ, तभी से यह चर्चा में है। परन्तु अब 14 जून को जब वह कारगिल पहुँचने वाली है, तो इसके विरोध में कट्टर इस्लामिस्ट खुलकर सामने आ गए हैं।
बौद्ध कारगिल में एक मठ का निर्माण इसलिए करना चाहते हैं कि जिससे उनके पास पूजा का एक स्थान हो, परन्तु मुस्लिम इसे एक राजनीतिक मंशा से उठाया गया कदम बता रहे हैं।
इकजुट जम्मू पार्टी के अध्यक्ष एडवोकेट अंकुर शर्मा ने कारगिल डेमोक्रेटिक अलाइंस का पत्र साझा किया है। जिसमें मुस्लिम समूहों की ओर से यह आशंका व्यक्त की गयी है कि “राजनीति से प्रेरित एक यात्रा जिसे शान्तियात्रा का नाम दिया जा रहा है, वह कारगिल की ओर आ रही है, और जिसका एक ही उद्देश्य है कि इस क्षेत्र की शांति में बाधा पहुंचाई जाए।”
केडीए ने कहा कि धर्मगुरु चोस्कयोंग पालगा रिनपोछे इस मामले में तीसरा पक्ष हैं, जिनका कारगिल में गोम्पा के निर्माण में कुछ भी लेना देना नहीं है, अत: इस शान्तियात्रा की अनुमति न दी जाए।
परन्तु एक बात समझ में नहीं आती है कि कट्टर इस्लामिस्ट तत्वों को तब ही शांति भंग होने की आशंका क्यों होती है, जब कोई दूसरा समुदाय अपने धार्मिक अधिकारों की बात करता है? जैसे ही महादेव की बात ज्ञानवापी में आई, वैसे ही उन्हें यह लगने लगा कि हिन्दू शांतिभंग कर रहे हैं। हिन्दुओं को चुप रहना चाहिए।
अब जब कारगिल में बौद्ध उसी भूमि पर मठ बनाने के लिए शान्तियात्रा निकाल रहे हैं, तो उन्हें इसमें भी लग रहा है कि शांतिभंग होगी! यह कैसी शांति है?
जब इस शान्तियात्रा का विरोध कट्टर इस्लामिस्ट कर रहे थे, तो उसी मध्य लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन (एलबीए) की कारगिल शाखा के पदाधिकारियों ने शांति पद यात्रा पर चर्चा करने के बाद सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया कि वह पद यात्रा को बिना शर्त समर्थन देंगे।
इस बैठक में एलबीए की युवा इकाई, महिला इकाई और गोबा एवं कारगिल शाखा के अंतर्गत सभी गावों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था और बैठक में कहा गया कि समूचा बौद्ध समुदाय आठवें चोसक्योंग पलगा रिंपोछे के नेतृत्व वाली शांति पद यात्रा का समर्थन करता है। एलबीए का युवा विंग इस पूरे आयोजन का संचालन अपनी ही देखरेख में करेगा।
इसी बैठक में आईकेएमटी कारगिल, और इस्लामिया स्कूल कारगिल के प्रमुखों द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषणों की भी आलोचना की गयी, क्योंकि वह जनता को उकसाने के लिए और संघ शासित लद्दाख में कानून व्यवस्था को भंग करने के लिए ही दिए गए थे। इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि यात्रा के संचालन के लिए जिला और यूटी प्रशासन का पूरा सहयोग दिया जाएगा जिससे यह यात्रा निर्विघ्न पूर्ण हो सके।
विवाद क्या है?
15 मार्च 1961 को जम्मू कश्मीर सरकार ने कारगिल में मोंज़ा में 2 कनाल भूमि बौद्धों को दी थी जिससे वह वहां पर बौद्ध मठ एवं सराय बना सकें। जो आदेश उस समय जारी किया गया था, उसके अनुसार उस भूमि पर धार्मिक भवन का निर्माण किया जा सकता था!

परन्तु इस निर्णय के उपरान्त जम्मू और कश्मीर सरकार पर जिहादी तत्वों का दबाव बढ़ने लगा और वर्ष 1969 में जिहादी तत्वों के सम्मुख आत्मसमर्पण करने के बाद सरकार ने उस भूमि के प्रयोग के अधिकार को बदल दिया और कहा कि अब उस भूमि पर मात्र आवासीय एवं व्यावसायिक निर्माण किया जा सकेगा, हर प्रकार के धार्मिक प्रयोग पर रोक लगा दी गयी। उसके बाद से ही वहां के बौद्ध लगातार अपने पूजा स्थान के निर्माण के अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

अब इस आदेश का विरोध करने के लिए जो शंतियात्रा निकाली जा रही है, उसका विरोध कट्टर इस्लामिस्ट तत्व कर रहे हैं, और हर स्थान पर अल्पसंख्यक का कार्ड खेलने वाले बौद्धों को वहां पर उनका अधिकार नहीं दे रहे हैं, जहाँ पर वह बहुसंख्यक हैं! अल्पसंख्यक बौद्ध समाज पर कट्टर इस्लामिस्ट तत्वों द्वारा हो रहे इस अत्याचार पर मीडिया का मौन भी बहुत कुछ कह रहा है कि उनके लिए कथित अल्पसंख्यक हैं और बुद्ध को मानने वाली पिछड़ी फेमिनिस्ट के लिए बुद्ध के प्रति प्रेम मात्र हिन्दुओं से घृणा का एक हथियार है और कुछ नहीं!