भारत में एक बड़ा वर्ग है जो कट्टरता के पक्ष में जाना अपना अधिकार मानता है, उसे देश के जलने से कोई मतलब नहीं है, या फिर हिन्दुओं के मारे जाने से कोई मतलब नहीं है, उसके लिए केवल और केवल कट्टर मुस्लिम आवाजें ही उनकी आवाजें हैं। और हिन्दी के लेखक वर्ग तो पूरी तरह से ही हिन्दू लोक से जुड़े भारत का विरोध करते हैं। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनकी सारी क्रांति काल्पनिक हिन्दू कट्टरता से लड़ने में व्यर्थ हो जाती है और वास्तविक कट्टरता अर्थात इस्लामी कट्टरपंथ के साथ जाकर खड़े हो जाते हैं।
यदि यह दुराग्रह किसी व्यक्ति के प्रति हो तो भी ग्राह्य हो सकता है, परन्तु जब वह दिल्ली को दंगों में धकेलने वाले लोगों जैसे उमर खालिद की रिहाई को लेकर रोना करते हैं, तब क्षोभ से हृदय भर जाता है क्योंकि यह भारत का दुर्भाग्य है कि यहाँ पर कथित रूप से ऐसे बुद्धिजीवी ऐसे लोगों का समर्थन करने के लिए आगे आते हैं, जो भारत की अवधारणा पर ही प्रहार करते हैं। इसी क्रम में नया नाम है इंटरनेश्नल बुकर प्राइज़ जीतने वाली लेखिका गीतांजलि श्री का!
गीतांजलि श्री ने पिछले दिनों उमर खालिद के समर्थन में आयोजित एक कार्यक्रम ने उमर खालिद की रिहाई की बात करते हुए कहा कि अदालत कहती है कि खालिद इतना बड़ा अपराधी है कि उसे जमानत नहीं दी जा सकती है लेकिन अदालत उमर खालिद की जल्द सुनवाई के लिए तैयार नहीं होती। हमारा दुःख और चिंता यह है कि उमर खालिद ही इस अन्याय का शिकार नहीं है, बल्कि कानून के नाम पर कई लोगों के साथ अन्याय हो रहा है।”
मजे की बात यह है कि उमर खालिद के अपराधों को, जिसमें दंगे भड़काने जैसे अपराध भी सम्मिलित है, गीतांजलि श्री ने सवाल पूछने तक सीमित कर दिया है। उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसा देश है, जहाँ पर वैदिक काल से सवाल पूछना परम्परा रही है, और फिर उन्होंने तमाम तरह के हिन्दू संस्कृति के उदाहरण दिए, परन्तु यह उनका केवल एक चेहरा है, क्योंकि यदि उन्हें पता होता कि उमर खालिद को किसी सवाल पूछने के कारण हिरासत में नहीं लिया गया था, जिसके लिए उन्होंने वेदों का सहारा लिया, बल्कि उमर खालिद को आरोपी गुलफिशा के दिए गए बयानों के आधार पर गिरफ्तार किया गया है। उसने साफ कहा है कि उमर खालिद पैसों से मदद करता था और भीड़ को भड़काऊ भाषण देता था, जिससे लोग धरने में जुड़े रहते थे!
मीडिया के अनुसार आरोपी महिला ने उमर खालिद ने यह भी कहा था कि उसके पीएफआई और जेसीसी से अस्छे रिश्ते हैं। उसने कहा था कि
““हम सीक्रेट जगह पर मीटिंग करते थे जिसमे प्रोफेसर अपूर्वानंद, उमर खालिद और अन्य सदस्य शामिल होते थे। उमर खालिद ने कहा था कि उसके PFI और JCC से अच्छे सम्बंध है। पैसों की कमी नहीं है। हम इनकी मदद से मोदी सरकार को उखाड़ फेंकेगे। प्रोफेसर अपूर्वानंद को उमर खालिद अब्बा सामान मानता है।”
इस मामले की सुनवाई के दौरान पता चला था कि गुल को उमर खालिद ने कहा था कि सरकार मुसलमानों के खिलाफ है, भाषण से काम नहीं चलेगा, खून बहाना पड़ेगा!
अदालत इसलिए जमानत नहीं दे रही है क्योंकि सुनवाई में डीपीएसजी ग्रुप के व्हाट्सएप चैट भी पेश किए गए थे, जिसमें उमर खालिद और कई और लोग सदस्य थे, जिसमें यह भी मेसेज था कि “आग लगवाने की पूरी तैयारी है!”
क्या गीतांजलि श्री उमर खालिद के लिए गुलफिशा को झूठी ठहरा रही हैं, जिन्होनें उमर खालिद समेत कई और लोगों की वास्तविकता बताई है? परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि गीतांजलि श्री भी उसी २००२ गैंग का हिस्सा है, जिनके लिए सारी पीड़ा का आरम्भ २००२ से होता है। वह भी कहीं न कहीं उसी विचार की है, जिसमें गुजरात ही गुजरात भरा हुआ है, जिसमें गुजरात के बहाने हिन्दुओं से घृणा भरी हुई है! उनके जिस उपन्यास को हाल ही में इंटरनेशनल बुकर सम्मान मिला है, उसमें भी यही गुजरात और हिन्दुओं के प्रति घृणा फैलाई जा रही है और वह भी कहाँ, जब वह पाकिस्तान का शायद चित्रण कर रही हैं। वैसे वह भारत को क्या समझती हैं, हम पिछले लेख में बता चुके हैं कि वह मानती हैं कि पाकिस्तान से टूटकर भारत बेकार में ही अलग हुआ था! अर्थात पाकिस्तान मूल देश था और भारत उससे बेकार ही में अलग हो गया था।
वहलिखती हैं
“एक बार उस सड़क पर जो काफिले उस गुजरे जमाने में गुजरते थे, उन पर दंगाई टूट पड़े। दंगाइयों का ये है कि वह मारकाट चीख चिल्लाहट त्यौहार की तरह मनाते हैं, जिसे त्यौहार मचाना कहते हैं (इसी तरह एक हैं गुजरात में, जिससे आप पूछ सकते हैं कि हाँ, तो आज किधर का प्रोग्राम है, और वह कुछ ऐसा जबाव देंगे कि चलो आज साबरमती चलते हैं, और गाड़ी से हम उधर जाएंगे और उनकी मछुआरा आनकेहन जल्दी ही किसी अश्लील हरकत करती जोड़ी को मछली की तरह कांटे पर उठा लेंगी, फिर उन दोनों की बोलती घिघ्गी में बदल देंगे और हमारी मौज हो जाएगी और वह भी मन के इशारे पर चला हुआ दंगा है!”
अर्थात वह भी गुजरात कोसो गैंग की ही एक सदस्य हैं, जिनके लिए भारत फालतू में ही पाकिस्तान से अलग हुआ और गुजरात में दंगे होते हैं।
इसी के साथ वह सेक्युलर विचारधारा वाले विचारक को यह भी शोध करते हुए दिखा रही हैं कि कैसे जैन और बौद्धों पर वैष्णवों के हमलों की स्मृतियाँ खोजकर उन्हें हाल की दूसरी साम्प्रदायिक स्मृतियों के समकक्ष रखने का प्रयास किया जा रहा है।
और साथ ही वह भारत और पाकिस्तान की दोस्ती की तो बात करती हैं, परन्तु पूरे उपन्यास में यह नहीं कहती कि आखिर “पाकिस्तान” की सोच किसकी थी? फिर ध्यान आता है कि वह तो लिखती हैं कि भारत फालतू में ही पाकिस्तान से अलग हुआ था, तो वह पाकिस्तान के प्रति ही प्यार दिखाएंगी न!
तभी वह भारत को तोड़ने वाले उमर खालिद के अपराधों को मात्र सवाल पूछने तक सीमित करती हैं, क्योंकि उनके लिए भारत वही है
“फालतू में अलग होकर बना”