भारत एक अनोखा देश है, जो कहने को तो हिन्दू बहुल है, लेकिन धर्मनिरपेक्षता के नाम पर उन्ही का सबसे ज्यादा अपमान किया जाता है। चाहे हिन्दू धर्म के विपरीत बातें करना हो, या उनकी आस्था का मज़ाक उड़ाना हो, सब बड़ी ही बेशर्मी से किया जाता है।
ऐसी ही एक घटना तिरुवनंतपुरम के प्रसिद्द श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर में घटी। जहां आंध्र प्रदेश से आये ईसाई समूह ने मंदिर सुरक्षा को धत्ता बताते हुए मंदिर के प्रांगण के अंदर ही मोमबत्तियां जलाकर क्रिसमस मनाया। यह घटना रविवार को हुई जब विजयवाड़ा से कुचुपुडी नृत्य करने वाला एक दल वहां आया और मंदिर परिसर में एक नृत्य कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति मांगी। इस दल का नेतृत्व विजयवाड़ा के मूल निवासी रामचंद्रमूर्ति कर रहे थे, उन्होंने ही रविवार को मंदिर में नृत्य कार्यक्रम करने के लिए बुकिंग कराई थी।
प्राप्त जानकारी के अनुसार हिंदू इन नेम ओनली (हिनो) मंदिर प्रबंधकों ने विजयवाड़ा से आये इस ईसाई दल को तुलाभारा मंडपम के पास एक क्षेत्र प्रदान किया। आपकी जानकारी के लिए बता दें, तुलाभारा एक प्राचीन हिंदू प्रथा है जिसमें एक व्यक्ति को एक वस्तु (जैसे अनाज, फल, या अन्य वस्तुओं) के साथ में तौला जाता है, और उस व्यक्ति के वजन के बराबर की वस्तु को भगवान / भगवती को चढ़ाया जाता है।
अनुमति मिलने के पश्चात इन ईसाइयों ने कलाकारों का वेश धारण किया और इसे बाद इन्होने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया था। इन्होने नृत्य शुरू करने से पहले मंडपम के चारों और मोमबत्तियां जला दी। यह देखते ही मंदिर परिसर में उपस्थित हिन्दू भक्तों ने इस पर आपत्ति जताई। तुरंत ही सुरक्षाकर्मियों को बुलाया गया। सुरक्षाकर्मियों ने वहाँ पहुंचते ही मोमबत्तियां बुझाईं, लेकिन तब तक विवाद शुरू हो चुका था, भक्त यह कह रहे थे कि मंदिर परिसर में इस प्रकार से मोमबत्ती जलाकर उनकी परम्पराओं को तोडा गया।
पाठकों को जानकारी के लिए बता दें, केरल के मंदिरों के अंदर मोमबत्तियां भी ले जाने की अनुमति नहीं है। मंदिर सुरक्षा विभाग को यह जांच करनी चाहिए कि यह लोग ऐसी वस्तुएं कैसे ले आये, यह सुरक्षा में बड़ी भारी चूक हुई है। संदेहास्पद रूप से, मंदिर तंत्री हिंदू भक्तों द्वारा लाए जाने वाले पूजा के सामानों का भी निरीक्षण करता है। कड़ी सुरक्षा जांच के पश्चात ही भक्त उच्च सुरक्षा वाले श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। स्थानीय भक्तों ने बड़ा ही गंभीर आरोप लगाया है कि मंदिर के अधिकारियों ने जानबूझकर इन लोगों को उल्लंघन की अनुमति दी थी।
प्राप्त जानकारी के अनुसार जब इस घटना पर विवाद बढ़ने लगा, तो सुरक्षा विभाग के लोगों ने आरोपी ईसाईयों को सही ठहराने का प्रयास किया और यह बताया कि उन्होंने मोमबत्तियाँ नहीं बल्कि कुछ और तत्व जलाया था। इस तरह के वक्तव्यों से यह स्पष्ट है कि दाल में कुछ तो काला है और कहीं ना कहीं सुरक्षाकर्मियों की इसमें किसी स्तर पर मिलीभगत अवश्य है। भक्तों ने अनुष्ठान के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए विरोध किया और यह भी बताया कि मंदिर के अंदर और बाहर लगे कई सीसीटीवी कैमरे सुचारु रूप से काम नहीं कर रहे हैं।
भक्तों ने आरोप लगाया कि मंदिर प्रबंधन के कई लोग मतांतरित या नास्तिक हैं, लेकिन वह हिंदू नाम रखते हैं, ऐसे में उनकी धर्म के प्रति निष्ठा पर संदेह होना बड़ा ही प्राकृतिक है। ऐसे लोगों के प्रबंधन और व्यवस्था में होने से इस प्रकार की घटनाएं देर-सवेर होनी ही थी। हमने केरल और आंधप्रदेश में ऐसे ढेरों उदाहरण देखे हैं, जहां मतांतरित लोग गरीबों के लिए दिए गए आरक्षण को अनैतिक रूप से हड़पने और मंदिरों की सम्पत्तियों पर कब्ज़ा करने के लिए अपने हिन्दू नामों को बनाये रखते हैं।
ऐसे में एक बड़ा ही महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है, कि जब सरकार मंदिरों के अंदर हिंदू रीति-रिवाजों और परंपराओं की रक्षा नहीं कर सकती है, तो वह उन्हें प्रबंधित करने पर जोर क्यों देते हैं? चर्च और मस्जिदों को लेकर तो कोई सरकार इतनी तत्परता नहीं दिखाती। अब समय आ गया है कि हिन्दू मंदिरों का प्रबंधन हिन्दुओं को ही दिया जाए, तभी इस प्रकार के अधर्म रुक पाएंगे।