सोशल मीडिया पर हिन्दू धर्म के विषय में बार-बार अभियान चलाए जाते हैं और जैसे ही कोई पर्व सामने आता है, उस समय तो यह अभियान और भी तेज हो जाता है। हिन्दुओं के पर्वों को कोसा जाता है, और करवाचौथ पर तो जैसे बाढ़ ही आ जाती है।
एक प्रकार से पर्व को नकारने की ही तैयारी होने लगती है कि यह आरम्भ ही दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे फिल्म के साथ हुआ था। या फिर उसे पंजाबी त्यौहार बताया जाने लगता है, अर्थात हर पर्व को ही जैसे अपमानित करने का ठेका लिया जाने लगा। एक बात और समझ में नहीं आती है कि यदि पति और पत्नी के प्रेम का यह पर्व आम हिन्दू महिलाएं मनाती हैं, तो उसमें समस्या क्या है?
हालांकि इस बार यह बहुत ही हैरानी भरा रहा कि लिब्ररल्स की ओर से न ही पिछले कुछ वर्षों जितना विरोध आया बल्कि इस बार लिबरल पत्रकार संजुक्ता बासु ने जिस प्रकार से करवाचौथ के बहाने इस बात पर निशाना साधा कि कथित लिब्ररल सेक्युलर फेमिनिस्ट जो करवाचौथ का मजाक बेवकूफ पितृसत्ता वाले पर्व के रूप में उड़ाती हैं और बुर्का और हिजाब को चॉइस बताती हैं, यह बहुत बड़ी हिपोक्रेसी है!
लोगों ने भी इस झगड़े की तस्वीरें साझा कीं
जहाँ हमने देखा था कि कैसे कुछ सेक्युलर अभिनेत्रियों ने करवाचौथ का उपहास उड़ाया था, वहीं करवाचौथ मनाती कई अभिनेत्रियों का वीडियो भी साझा हो रहा है, जिसमें रवीना टंडन से लेकर बबिता, शिल्पा शेट्टी आदि हैं
कटरीना कैफ की तस्वीरों ने पूरे इंटरनेट पर जैसे कब्जा ही कर लिया था
सिन्दूर से पूरी भरी हुई मांग में कटरीना का सौन्दर्य पूरी तरह से हिन्दू लोक का सौन्दर्य दिख रहा था। कटरीना की इस तस्वीर को कई लोगों ने रीट्वीट किया
नेहा कक्कड़ की भी तस्वीरें साझा की गईं
वरुण धवन एवं नताशा की भी तस्वीरें वायरल हुईं
प्रीति जिंटा ने भी इस पर्व को मनाया और उनकी तस्वीरें भी वायरल हुईं उन्होंनें ट्वीट किया और लिखा कि हम दोनों ही एक दूसरे को आदर देते हुए समझ रहे हैं और एक दूसरे के पर्वों का सम्मान कर रहे हैं
परन्तु इन्टरनेट पर सबसे रोचक एक ट्वीट रहा जिसने करवाचौथ के विषय में कई ऐसी बातें की, जिन्हें करना चाहिए और वह भी बहुत रोचक तरीके से! एनएचएसएफ (यूके) नामक हैंडल ने लिखा कि करवाचौथ एक ऐसा पर्व है जिस पर न जाने कब से चर्चा हो रही है, इस पर बहसें हो रही हैं और कई प्रश्न उठते हैं, जिनके उत्तर हम सभी को देने चाहिए!
यह हैंडल है नेशनल हिन्दू स्टूडेंट फोरम का! इस हैंडल ने कई तस्वीरें साझा कीं, जिनमें आधुनिक तर्कों को करवाचौथ के विमर्श से काटा गया है
इसमें एक बात बहुत स्पष्ट लिखी है कि यह एक क्षेत्रीय पर्व है, विशेषकर उत्तर भारत और पंजाबी हिन्दुओं का, जो अब धीरे धीरे हर जगह फ़ैल गया है।
इस हैंडल में बहुत ही सरल तरीके से समझाया गया है कि अगर किसी को यह पर्व नहीं मनाना है तो वह न मनाए, इतनी स्वतंत्रता हिन्दू महिलाओं को है
परन्तु हिन्दू महिलाओं की यह स्वतन्त्रता उन महिलाओं को नहीं दिखती है, जो मजहब में निकाह कर चुकी हैं। लोग करीना कपूर या फिर रत्ना पाठक शाह से करवाचौथ के विषय में पूछते ही क्यों हैं? क्या मजहब में हिन्दू व्रत करने की अनुमति है? नहीं! तो फिर ऐसी अपेक्षा क्यों की जाती है!
यह पर्व पति और पत्नी के प्रति परस्पर प्रेम और आदर का पर्व है, जिसे हर वर्ग मनाना पसंद करता है। यह प्रेम का पर्व है, पूजा करने से कैसे पति और पत्नी में असामनता आ सकती है? हर पर्व के बहाने हिन्दू धर्म को नीचा दिखने का प्रयास किया जाता है, और यह प्रयास किया जाता है कि इसे न मनाया जाए! जबकि हो उसका विपरीत रहा है, बाजार इस बात का साक्षी है और सोशल मीडिया पर छाई तस्वीरें इस बात की साक्षी हैं।
करवाचौथ में रंग है, यह रंग उत्साह के, प्रेम के, आदर के, विश्वास के हैं! इसमें किसी का खून नहीं है, इसमें कोई भड़काऊ नारा नहीं है और न ही कुर्बानी है! फिर ऐसा क्या है कि लोग इस पर्व का विरोध करते हैं! दरअसल जिन लोगों ने परिवार को पूरी तरह से तोड़ने का प्रयास अकादमिक विमर्शों में किया है, वह पर्वों को नहीं तोड़ पाए क्योंकि ये पर्व लोक पर्व है। जो जहाँ गया, वहां पर अपना पर्व ले गया!
हो सकता है कि उसकी कोई रीति बदल गयी हो, परन्तु मूल भावना वही रही, उसने मूल भाव को रखते हुए अपने भीतर कुछ परिवर्तन कर दिए, जैसे उत्तर भारत में सगरी नहीं खाई जाती है, पूजा भी चाँद देखने के बाद होती है, अर्थात निर्जल व्रत होता है, परन्तु पंजाब की ओर सगरी का प्रचलन है!
पति अपनी पत्नी के प्रति एक कृतज्ञता से भर उठता है, यह प्रेम की कृतज्ञता है, वह यह सोचकर ही रोमांचित हो उठता है कि इस पूरे ब्रह्माण्ड में कोई ऐसा है जो उसके लिए उपवास पर है, उसके लिए स्वयं की देह को कष्ट दे रहा है और वह इसी प्रेम के वशीभूत होकर अपने घर की लक्ष्मी को और भव्य बनाने के लिए अपनी जेब से बढ़कर कुछ खरीदने का प्रयास करता है!
यदि पति अपनी पत्नी के लिए प्रेम से कुछ खरीदता है तो लिब्रल्स को समस्या क्या है? वह किसी का गला नहीं काट रहा, वह किसी को गाली नहीं दे रहा, वह अपनी पत्नी के लिए, अपने प्रेम के लिए कुछ ले ही तो रहा है, बाजार में योगदान ही तो कर रहा है!
हिन्दुओं के पर्वों ने ही अर्थव्यवस्था, मूल्यों आदि का विस्तार किया है, और इन मूल्यों के शत्रु कथित प्रगतिशील ही हैं!