हिन्दी पट्टी का फेमिनिज्म एजेंडा मुद्दों में सबसे आगे रहता है। परन्तु वह एक नंबर का झूठा फेमिनिज्म है। यह वेटिकन से कितना संचालित है, वह इससे पता चलता है कि सिस्टर लूसी जो न्याय न मिलने के चलते भूख हड़ताल पर हैं, वह कहीं पर भी विमर्श का हिस्सा नहीं हैं। और उनके साथ ऐसा क्या हुआ है, जो वह भूख हड़ताल पर हैं? इसका कारण भी विमर्श में नहीं है!
कौन हैं सिस्टर लूसी?
सिस्टर लूसी वह नाम हैं, जो उस अन्याय का विरोध कर रही हैं, जिसके विषय में लोगों का संज्ञान कम ही जाता है। सिस्टर लूसी ने उन ननों के समर्थन का पाप किया है, जिन्होनें अपने यौन उत्पीडन का विरोध किया था। यह यौन उत्पीडन किया गया था बिशप फ्रैंको मुलक्क्ल द्वारा, जिसे केरल के एक न्यायालय ने इस आधार पर आरोपों से बरी कर दिया है क्योंकि अभियोजन पक्ष उनके विरुद्ध प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सका था।
हालांकि एसआईटी की अगुआई करने वाले आईपीएस अधिकारी ने इस निर्णय पर हताशा व्यक्त करते हुए कहा था कि वह निराश हैं एवं सरकार की अनुमति के बाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी जाएगी।
फ्रैंको मुलक्क्ल पर एक दो नहीं बल्कि चार ननों ने आरोप लगाए थे एवं उनका साथ दिया था, सिस्टर लूसी ने। सिस्टर लूसी को रोमन कैथोलिक चर्च के अंतर्गत एफसीसी ने वर्ष 2019 में निष्कासित कर दिया था, और उन्हें कान्वेंट खाली कर देने का नोटिस दिया था। सिस्टर लूसी ने इस निर्णय के विरुद्ध अपील की थी, जो अस्वीकार हो गयी थी। मार्च 2020 में दूसरी अपील भी अस्वीकार हुई थी और फिर जून 2021 में वेटिकन ने यह कहते हुए अपील ठुकरा दी थी कि वह कई मामलों में सही उत्तर नहीं दे पाईं जैसे उनके पास ड्राइविंग लाइसेंस है, वह कार खरीद रही हैं, और वह किताब प्रकाशित करा रही हैं।”
उस समय सिस्टर लूसी ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा था कि उनकी बात सुने बिना ही उन्हें डिसमिस किया है!
उस समय भी हमने प्रश्न किया था कि क्या सिस्टर लूसी की आवाज़ सुनी जाएगी? क्या विश्व का कथित सबसे प्रगतिशील रिलिजन अपने रिलिजन की औरतों को न्याय दिला पाएगा? या फिर उनके रिलिजन की रिलीजियस औरतें इसी तरह शोषण का शिकार होती रहेंगी?
अब ऐसा लगता है कि जैसे उनके रिलिजन की फीमेल को कभी न्याय नहीं मिलेगा क्योंकि रोमन कैथोलिक चर्च से निष्कासित सिस्टर लूसी फिर से चर्चा में हैं, परन्तु यह ध्यान रखना है कि वह विमर्श में नहीं हैं। सिस्टर लूसी को स्थानीय अदालत ने मननथावड़ी के एक कान्वेंट में रहने की अनुमति दी थी। अदालत ने कहा था था कि वह तब तक वहां पर रख सकती हैं, जब तक बिशप के विरुद्ध मुकदमा चल रहा है।
मगर अब सिस्टर लूसी ने यह आरोप लगाया है कि उनके साथ इस कान्वेंट में भी भेदभाव हो रहा है, और उनका उत्पीडन हो रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें फ्रिज का प्रयोग नहीं करने दिया जा रहा है, और न ही उन्हें प्रार्थना कक्ष का प्रयोग करने दिया जा रहा है, उन्हें उचित भोजन भी नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले चार वर्षों से इस कान्वेंट की एक भी नन ने उनके साथ बात नहीं की है।
अब उन्होंने परेशान होकर यह हड़ताल की है। उन्होंने कहा कि
“मैं आज कॉन्वेंट के बाहर अपना अनशन शुरू कर रही हूं। यहां कॉन्वेंट अधिकारियों और सिस्टर्स ने मुझे इसके लिए मजबूर किया। यहां बहुत मुश्किल है। यहां की सिस्टर्स ने पिछले 4 वर्षों में मुझसे बात नहीं की है। वे मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे मैं एक शरणार्थी हूं। । वे अदालत के आदेशों के खिलाफ व्यवहार कर रहे हैं। मेरी मांगें एकदम साफ़ हैं। मेरे साथ एक इंसान की तरह व्यवहार करें। सिस्टर्स को न्याय दिखाना चाहिए।”
फेमिनिस्टों का यूनिवर्सल सिस्टरहुड का नारा कहाँ चला जाता है?
हिन्दी पट्टी का फेमिनिज्म एक बार फिर से विफल हुआ है। कहने के लिए यह सब यूनिवर्सल सिस्टरहुड का नारा लगाती हैं, अर्थात दुनिया भर की औरतों एक हो जाओ, परन्तु वह उन महिलाओं के लिए क्यों नहीं खड़ी होती हैं, जो उनके एजेंडे में फिट नहीं बैठती हैं या फिर कहा जाए कि उनके विमर्श के मालिक आदमियों के एजेंडे में फिट नहीं बैठती हैं। यह देखना बहुत ही रोचक है कि मुलक्कल के खिलाफ यह मामला आज से नहीं चल रहा है, बल्कि कई वर्षों से चल रहा है, ननों ने बहुत ही हिम्मत के बाद यह कदम उठाए थे, परन्तु आज सिस्टर लूसी अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार को लेकर भूखहडताल पर हैं, मगर फेमिनिस्ट इस कारण मौन हैं कि कहीं बिशप फ्रैंको मुलक्क्ल के विरुद्ध आवाज उठाने से उन्हें भाजपाई या हिन्दू न समझ लिया जाए एवं हिन्दू समझे जाने के चलते कहीं उन्हें उनके नव बौद्ध तथा वामपंथी आलोचक ख़ारिज न कर दें एवं उन्हें विश्वविद्यालयों एवं महा विद्यालयों के मंचों पर स्थान न मिले!
इसलिए सिस्टर लूसी के साथ कभी भी वह फेमिनिज्म नहीं आएगा, जो “यूनिवर्सल सिस्टरहुड” की पट्टी पढाता है!