आज सिखों के पांचवे गुरु, गुरु अर्जन देव का जन्मदिन है। उनका जन्म 15 अप्रेल वर्ष 1563 को हुआ था। गुरु अर्जन देव के उपरान्त ही सिखों का सैन्यीकरण आरम्भ हुआ था। गुरु अर्जन देव को क्यों मारा गया था, इस विषय में कई लोगों ने बिना सन्दर्भ के कई भ्रामक जानकारियाँ देने का प्रयास किया है, परन्तु यदि जहांगीर की मानी जाए, और उसके द्वारा लिखी गयी तुजुके जहाँगीर को पढ़ा जाए तो उसमें यही प्राप्त होता है कि उसे एक हिन्दू संत “अर्जन देव” द्वारा अपने बागी बेटे खुसरो/खुसरू को मदद देना पसंद नहीं आया।
जहाँगीर ने लिखा है कि
“व्यास नदी के तट पर स्थित गोविन्दमाल में अर्जुन/अर्जन नामक एक hindu”हिन्दू” रहता था, जो एक पवित्र संत जैसे कपड़े पहना करता था। कितने ही सीधे-साधे हिन्दू और कुछ अज्ञानी और मूर्ख मुसलमान भी उसके तरीकों और व्यवहार से आकर्षित हो गए और उसकी पवित्रता के ढोल बजाने लगे थे, उसे गुरु मानने लगे थे और सब और लोगों के झुण्ड उसकी पूजा करने के लिए और उसके प्रति विश्वास करने के लिए आने लगे। इस प्रकार की दुकान चार पुश्तों से चल रही थीं। मुझे कई बार विचार आया कि इस काण्ड को समाप्त कर लूं या इस व्यक्ति को मुसलमान बना लूं!
जब खुसरू इस मार्ग से जा रहा था तो वह व्यक्ति इससे मिला। खुसरू उसके पास ही ठहरा। खुसरू ने बाहर निकलकर उसका अभिवादन किया। इस व्यक्ति ने खुसरू के साथ विशेष व्यवहार किया और उसके ललाट पर केसर का तिलक लगाया। जब यह बात मेरे कानों में पड़ी तो मैंने स्पष्ट रूप से समझ लिया कि खुसरू ने बड़ी मूर्खता की है तो मैंने आदेश दिया कि इस व्यक्ति को मेरे सामने प्रस्तुत किया जाए और उसके मकान और बाल बच्चे मुर्त्जर खान के सुपुर्द कर दिए जाएं एवं उसकी संपत्ति जब्त करके उसका वध कर दिया जाए!”

उस समय जहाँगीर उन सभी का वध कर रहा था जिन्होनें उसके विद्रोही पुत्र खुसरू का साथ दिया था। इसी क्रम में उसने राजू और अम्बा नामक दो और लोगों को दंड दिया था। जिसमें राजू को फांसी दे दी गयी थी और अम्बा चूंकि अमीर था तो उससे दंड लिया गया।
जहाँगीर की आत्मकथा तुजुके जहाँगीरी के अनुसार गुरु अर्जन या अर्जुन देव का वध खुसरू का साथ देने और खुसरू के साथ “हिन्दू” तरीके से व्यवहार करने के लिए किया गया था। गुरु अर्जन या अर्जुन देव सिख इतिहास के प्रथम बलिदानी कहे जाते हैं।
परन्तु उनकी मृत्यु को लेकर जहाँ जहाँगीर पूरी तरह से स्पष्ट है कि चूंकि अर्जन देव नामक हिन्दू ने उसके विद्रोही बेटे खुसरू के साथ हिन्दू तौर तरीके से व्यवहार किया था, उसके मस्तक पर केसर का तिलक लगाया था, इसलिए उसने क्रोधित होकर अर्जन देव का वध कर दिया था। और उसने खुसरो को भी दंड स्वरूप अंधा करवा दिया था। हालांकि उसने बाद में अपने बेटे का इलाज करवाया था, परन्तु उसके आँखों की रोशनी पूरी तरह से वापस नहीं आ पाई थी।
वहीं बाद में सिखों और हिन्दुओं के बीच दूरी लाने के लिए कई प्रसंग ऐसा प्रतीत होता है कि सप्रयास उत्पन्न किए गए जैसे कि हिन्दू खत्री चंदू का प्रसंग!
औपनिवेशिक इतिहासकार मैक्स आर्थर मकौल्फ़ ने अपने सिख धर्म के इतिहास की पुस्तकों THE SIKH RELIGION वोल्यूम 3 में लिखा है कि एक हिन्दू कर्मचारी चंदू शाह की गद्दारी के कारण अर्जुन देव को जहाँगीर के गुस्से का शिकार होना पड़ा था। क्योंकि चंदू अपनी बेटी का विवाह गुरु अर्जुन देव के बेटे के साथ करना चाहता था और उसे सविस्तार उन्होंने लिखा है।
परन्तु छोटी छोटी बातों को भी अपनी किताब में लिखने वाले जहाँगीर ने, जिसने यह तक लिखा है कि उसे राजस्थान में वराह मंदिर पसंद नहीं आया तो उसने मूर्तियाँ तुरंत तुड़वा दीं, जिसने अब्दुल रहीम खानखाना आदि के विषय में भी सविस्तार लिखा है और यहाँ तक कि वह कितनी शराब पीता था, यह तक उसने लिखा है, परन्तु उसने अपनी आत्मकथा में कहीं भी चंदू का उल्लेख नहीं किया है कि वह चंदू से मिला था।
यह कहीं पर भी जहांगीर की आत्मकथा में नहीं है, जिसने गुरु अर्जुन/अर्जन देव को मरवाया, मगर इसे खुशवंत सिंह ने भी अपनी History of the Sikhs में लिखा है, तथा बाद में उन्होंने छोटा सा स्पष्टीकरण दिया है कि ऐसा कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है। और वाकई तत्कालीन किसी भी पुस्तक में ऐसी कोई भी कहानी नहीं है, परन्तु हिन्दुओं और सिखों के मध्य दुश्मनी पैदा करने के लिए इस प्रकार की मन गढंत कहानियां रची गईं।
यहाँ तक कि पारसी से अनूदित दबिस्तान में चंदू प्रकरण का उल्लेख है, परन्तु उसमें भी कोई विश्वनीय स्रोत नहीं बताया गया है। उसमें यह अवश्य बताया गया है कि जहाँगीर ने खुसरो का साथ देने के लिए अर्जुन देव को गिरफ्तार किया और कुछ उनसे धन की चाह की, और दंड के स्वरुप उनका वध करवा दिया।
जहाँगीर की आत्मकथा के अनुसार यह एक विशुद्ध राजनीतिक हत्या प्रतीत होती है जो उसने खुसरो का साथ देने वाले लगभग सभी विद्रोहियों को दंड स्वरुप प्रदान की थी, कईयों को जानवरों की खाल में भरवा दिया था!