देववाणी कहे जाने वाले वेदों का अध्ययन कालान्तर में स्त्रियों के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था। ऐसा क्या रहा होगा वेदों में? या ऐसा कुछ नहीं रहा होगा? क्या वेदों का अध्ययन स्त्रियों की चेतना से सम्बंधित है? ऐसे कई प्रश्न बाद में स्त्रियों के मस्तिष्क को मथते होंगे। या उन्होंने अब मथना बंद कर दिया है। एक कालखंड में तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार रचे गए वेदों की विषयवस्तु से परे यह तो ज्ञान होना ही चाहिए कि वेदों में में स्त्रियाँ कितनी थीं? किन किन ऋषिकाओं का कितनी ऋचाओं को रचने में योगदान था। ऐसे प्रश्न आते ही स्त्रियों को वेदों की तरफ लौटना होगा। जब वह वेदों की तरफ लौटेंगी तो पाएंगी कि एक बार पुन: स्त्रियों के रचे गए सूक्त उनकी प्रतीक्षा में हैं। वह चाहते हैं कि उन पर बात हो, उन पर चर्चा हो।
आज जिस प्रकार स्त्रियाँ रच रही हैं, उस समय भी रचा करती थीं। उस समय भी पति किसी कारणवश या अहंकार के वशीभूत होकर त्याग दे तो स्त्री सभी देवों द्वारा प्रायश्चित कराकर कहलवाती थी कि देखो मेरा त्याग करना तुम्हारे वश की बात नहीं है। तुम्हें अंतत: आना मेरे ही पास पड़ेगा।
ऐसी ही एक ऋषिका थीं ब्रह्मजाया जूहू, जिन्होनें ऋग्वेद के दशम मंडल के 109वें सूक्त के 7 मन्त्रों/ऋचाओं को लिखा है। कहा जाता है कि वह देवगुरु बृहस्पति की पत्नी थीं, किन्हीं कारणवश या अहंकार वश बृहस्पति ने त्याग दिया। स्वाभिमान रहा होगा तभी मन्त्रों में रोना गिडगिडाना नहीं दिख रहा है। मन्त्रों में यही दिख रहा है कि सभी देवताओं ने बृहस्पति से प्रायश्चित कराया।
तेऽवदन्प्रथमा ब्रह्मकिल्बिषेऽकूपारः सलिलो मातरिश्वा ।
वीळुहरास्तप उग्रो मयोभूरापो देवीः प्रथमजा ऋतेन ॥
(ऋग्वेद दशम मंडल 109 सूक्त, मन्त्र प्रथम)
अर्थात बृहस्पति ने जब अपनी पत्नी का त्याग किया एवं बृह्म किल्विष किया, उसका प्रायश्चित ब्रह्म की संततियों सूर्य, समुद्र, अग्नि ने बृहस्पति का प्रायश्चित कराया।
इन सभी मन्त्रों में एक उल्लेखनीय यह भी है कि स्त्री की तरफ से कतई भी यह याचना नहीं है कि उन्हें स्वीकार किया जाए। हाँ, यह अवश्य है कि उन्होंने दूसरा विवाह नहीं किया और न ही दूसरे पुरुष की तरफ गईं। अत: बार बार इन मन्त्रों में उन्हें शुद्ध बताया गया है।
यह हो सकता है कि आज हम शुद्ध आदि शब्दों पर सहमत न हों, पंरतु जब इन मन्त्रों को पढेंगे तो तत्कालीन कालखंड के अनुसार ही देखा जाएगा। यहाँ पर मैं मन्त्रों की विषयवस्तु पर बल न देकर ऋषि जूहूब्रह्मजाया की विद्वता पर बात करना चाहती हूँ।
यह सभी सातों मन्त्र स्त्री के सम्मान को एक प्रकार से प्रतिस्थापित करते हैं कि यदि पति अपने अहंकार के चलते पत्नी के साथ कुछ अन्याय करता है, जो कि एक प्रकार से समाज द्वारा स्त्री के साथ किया गया अन्याय है तो ऐसे में स्त्री को परिवार में वापस लाने के लिए पूरे समाज को ही एक साथ इस भूल के प्रायश्चित के लिए आना चाहिए।
जूहू के मन्त्र पढने पर एक सचेतन स्त्री परिलक्षित होती है जिसे यह ज्ञात है कि समाज के संचालन के लिए जितना आवश्यक विवाह है उतना ही आवश्यक है स्त्री का स्वाभिमान और पुरुषों के साथ साथ समाज को भी अपनी भूल का अहसास होना।
यह कथा यह बताती है कि हिन्दू समाज में परिवार की महत्ता पर ही बल दिया गया था। बार –बार जो फेमिनिस्ट इस बात पर बल देती हैं कि उन्हें पति की गलती पर परिवार तोड़ देना चाहिए, और वह अपना पूरा प्रयास करती भी हैं। यही कारण है कि ऐसे विवेकी मन्त्रों को वह आम विमर्श में सामने नहीं लाने देना चाहती हैं। वह नहीं चाहती हैं कि वेदों की यह चेतना स्त्रियों में वापस आए, इसलिए यह झूठ फैलाया गया कि स्त्रियों को वेद पढने का अधिकार नहीं था !
कोई भी सजग स्त्री जब इन मन्त्रों का जाप करेगी तो वह स्वयं पर अकारण क्रोधित होने वाले पति या परिवार से यह पूछेगी कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं? या फिर उसके भीतर स्वाभिमान ही जागृत न हो पाए इस लिए ही उसके अध्ययन से शनै: शनै: वेदों को दूर कर दिया गया।
जूहू उसकी स्मृति में है ही नहीं। जूहू वेदों में है, जूहू वेद के मन्त्रों की रचयिता है परन्तु यह दुर्भाग्य है कि उसने जो स्वाभिमान और गौरव अपनी स्त्री जाति को दिया वह गौरव उसे आज प्राप्त नहीं है। क्यों?
जूहू ने अपने मन्त्रों के माध्यम से यह कहा है कि जब तक स्त्री को अहंकारवश त्यागकर आप आगे बढ़ने का प्रयास करेंगे समाज आगे नहीं बढ़ेगा। इसी सूक्त से अंतिम मन्त्र है:
पुनर्दाय ब्रह्मजायां कृत्वी देवैर्निकिल्बिषम् ।
ऊर्जं पृथिव्या भक्त्वायोरुगायमुपासते ॥
वह लिखती हैं कि जब देवताओं और मनुष्यों ने ब्रह्मजाया को बृहस्पति को सौंप दिया और उनके सभी पापों से उन्हें मुक्त किया तभी सभी मनुष्य पृथ्वी के अन्न भंडार का प्रयोग कर सके।
*स्रोत: वैदिक संहिताओं में नारी पुस्तक: लेखिका डॉ मालती शर्मा