इन दिनों एक भजन “हर हर शंभू” सभी के दिलों पर छाया है, ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह शासन कर रहा है, हर कोई इस भजन का दीवाना है क्योंकि इसे गाया ही इतने मगन होकर, इतने भावविभोर होकर है कि यह छोटे बच्चों से लेकर वृद्ध पीढ़ी तक सभी के हृदय में महादेव की भक्ति प्रवाहित कर देता है। यही कारण है कि 5 मई 2022 को अपलोड किए गए गए इस वीडियो को 7 करोड़ से अधिक लोग देख चुके हैं,

यह तो आधिकारिक रूप से रिलीज किए गए गाने का आधिकारिक आंकड़ा है, परन्तु इस भजन को जिस जिस ने भी अपलोड किया है, वहां पर भी किसी के 15 लाख, तो किसी के 20 लाख व्यूज़ हैं, तो किसी के द्वारा अपलोड किए गए इस भजन को 60-70 लाख तो कहीं एक करोड़ के लगभग व्यूज़ हैं। लोग दिनों दिन इस भजन के दीवाने हुए जा रहे हैं। परन्तु इस भजन की दीवानगी कम होने का नाम नहीं ले रही है। हालांकि इस भजन को लेकर विवाद भी हुए थे और अभी भी इसे नीचा दिखाने के लिए तरह तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। इसका कारण क्या हो सकता है? अभिलिप्सा पांडा के शेष भजन भी लाखों में सुने जाते रहे हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि यह स्थापित गायिका हैं, एवं भक्ति ओढ़ी हुई नहीं है बल्कि यह सहजता से विकसित हुई भक्ति है, यह संस्कारों में व्याप्त भक्ति है!
अभिलिप्सा पंडा की उम्र मात्र 21 वर्ष है और वह तब से संगीत सीख रही हैं जब वह मात्र 4 वर्ष की थीं। वह 8 अलग अलग भाषाओं में गाने गाती हैं, अभिलिप्सा पांडा को उनकी नानी ने मन्त्र सिखाए थे और फिर अभिलिप्सा ने मन्त्रों को एक सुर में गाया तो उनके परिवार को उनकी कला की पहचान होने लगी एवं उसी के उपरान्त उनकी संगीत की यात्रा का आरंभ हुआ। इतना ही नहीं वह ब्लैक बेल्ट भी हैं!
अर्थात जो अभिलिप्सा ने गाया है, उसमें वर्षों की भक्ति एवं नानी के सिखाए हुए मन्त्रों से उत्पन चेतना का प्रभाव है, तभी जो भी उनके भजनों या कहें मन्त्रों को सुनता है तो वह मंत्रमुग्ध होकर रह जाता है। और जब वह गाती हैं तो भाषा का भेद हट जाता है, रह जाता है तो संगीत और भारत की संस्कृति! उनका कल्कि अवतार भजन जो ओड़िया भाषा में है, उसे भी 17 लाख से अधिक बार देखा जा चुका है। वह अद्भुत गाती हैं, वह उस भाषाई राजनीति की दीवार को अपने संगीत से तोड़ती हैं, जिसे बार-बार वामपंथी मीडिया उठाता है।
कल्कि अवतार की अवधारणा पूरे हिन्दू धर्म में है। और वह इस प्रकार के गीत और संगीत से हिन्दू धर्म की एकात्मता को प्रदर्शित करती हैं! उनके भजन सुनते समय श्रोता मंत्रमुग्ध होकर उसी अवधारणा में बंधकर रह जाता है, जो उनकी वाणी से प्रवाहित हो रही होती है।
क्या यही कारण था कि जैसे ही उनका “हर हर शंभू” भजन और भी अधिक लोकप्रिय होने लगा, तो पहले तो उस वीडियो पर स्ट्राइक करके उस वीडियो को यूट्यूब से रीमूव कराया गया और यह कहा गया कि यह धुन चोरी की है और अच्युता गोपी जी की धुन चुराई है? हालांकि इस भजन में गायक जीतू शर्मा ने वीडियो जारी कर यह कहा कि कृष्ण भक्त अच्युता गोपी जी ने स्वयं ही अपनी धुन को लेकर अनुमति दी थी। अत: बाद में यह वीडियो वापस आ गया।
अब यह वीडियो लोकप्रियता के तमाम आयाम स्थापित कर रहा है। परन्तु मीडिया ने इसमें भी खेल करने का प्रयास किया एवं इस गाने के मूल स्वामियों को ही जैसे इस भजन का श्रेय देने से वंचित करने का षड्यंत्र ही जैसे कर दिया।
नबी की शान में नज़्म गाने वाली “कलाकार” फ़रमानी नाज़ को शिव भक्त घोषित करके उनका ही भजन बताने का षड्यंत्र रचा

इस भजन की लोकप्रियता इतनी रही कि इसे एक मुस्लिम गायिका फ़रमानी नाज ने गाया। मीडिया में यह समाचार आया कि फरमानी नाज को यह भजन गाने के कारण उलेमाओं की धमकी मिल रही है, उन्हें कथित रूप से मौलाना धमकी दे रहे हैं। और जैसे ही यह समाचार मीडिया में आया वैसे ही मीडिया चैनल्स में होड़ लग गयी कि कौन फ़रमानी को बड़ा शिव भक्त बताता है और उन्हें ही लगभग इस गाने का मूल स्वामी बताने लगे। बार बार मीडिया में आने लगा कि फ़रमानी का गाया हुआ “हर हर शंभू!” जबकि गाया किसने था अभिलिप्सा ने, मन्त्रों को बचपन से सुरों में साधने का श्रम और अभ्यास किया है अभिलिप्सा ने, तभी उनकी आवाज सधी हुई है एवं यह स्पष्ट होता है कि वह मन्त्रों को जी रही हैं।
परन्तु यह बात फ़रमानी के साथ नहीं है क्योंकि उन्होंने संस्कृत के मन्त्र कंठबद्ध नहीं किया है और उन्होंने मात्र एक कलाकार होने के नाते गाया है और यही कारण है कि उन्हें समय भी लगा और चूंकि यह श्रावण माह चल रहा है और श्रावण में महादेव को सुनने के लिए लोग उत्सुक होते हैं, तो उनका गाना भी लोकप्रिय हो गया, क्योंकि लोगों के मस्तिष्क में अभिलिप्सा के भजन की मूल धुन घूम रही थी। ऐसे में मीडिया का यह दृष्टिकोण कल्पना से परे था कि अभिलिप्सा के गाने को उन्होंने न जाने किस दृष्टि से फ़रमानी का प्रमाणित करने का कुप्रयास किया।
वहीं कुछ यूजर्स का यह कहना है कि फ़रमानी ने यह कहा है कि उन्हें यह गाना अच्छा लगा तो उन्होंने गा दिया, परन्तु फ़रमानी का यह बताना कि जैसे वह शेष फिल्मों के गाने गाती हैं, यह “गाना” उन्होंने अभिलिप्सा का लिया है भी मीडिया के इस जाल में फंस गया और लोगों के सामने उनकी स्वीकारोक्ति नहीं आ पाई।
हालांकि सोशल मीडिया पर मीडिया द्वारा किए गए इस दुराग्रह पूर्ण व्यवहार का प्रतिकार हुआ एवं लोगों ने यह मीडिया को याद दिलाया कि असली गायिका कौन है और फ़रमानी ने अभिलिप्सा का गाया हुआ ही भजन गया है!
वहीं अति उत्साही हिन्दू फ़रमानी नाज को लेकर इतने उत्साहित थे कि वह यह तक कहने लगे कि फ़रमानी हिन्दू धर्म में आ रही है और चूंकि एक फर्जी आईडी से ट्वीट किया गया था कि वह हिन्दू धर्म अपना रही हैं, परन्तु फ़रमानी नाज ने ट्वीट करके कहा कि ऐसा कुछ नहीं है और जो वीडियो उन्होंने twitter पर जारी किया है उसमें उन्होंने कहा है कि वह हिन्दू नहीं बनने जा रही हैं तो वहीं 1 मिनट 47 सेकण्ड पर वह यह कह रही हैं कि उन्हें न ही धमकी मिली हैं, न ही किसी ने कोई बात कही है और न ही फतवा जारी हुआ है
फिर फ़रमानी ने मीडिया में उन समाचारों का खंडन क्यों नहीं किया जब उन पर टीवी बहसें हो रही थीं कि उनसे उलेमा खफा हैं, क्योंकि भजन गाना इस्लाम के खिलाफ है। फ़रमानी नाज ने यह निजी बात बार-बार क्यों बोली कि हम लोग गरीब लोग हैं बिना बताए शौहर ने छोड़ दिया था और हम गाकर ही परिवार चला रहे हैं। हम कभी यह सोचकर नहीं गाते कि हम किस धर्म से हैं। हम कलाकार हैं।
यदि अब फ़रमानी स्वयं यह स्वीकार कर रही हैं कि उन्हें कोई धमकी नहीं मिली तो फिर उन्होंने मीडिया में आकर अपनी निजी ज़िन्दगी का रोना क्यों रोया?
खैर!
फ़रमानी के पक्ष में मोर्चा खोलकर अभिलिप्सा को ही विमर्श से बाहर निकालने वाली मीडिया कश्मीर में प्रगाश बैंड के लिए क्यों नहीं बोलती?
पाठकों को स्मरण होगा कि कश्मीर में मुस्लिम लड़कियों का एक बैंड बनाया गया था, प्रगाश। जिसकी सभी सदस्यों को आतंकवादियों द्वारा धमकी दी गयी थी। वर्ष 2013 में वह बैंड पूरी तरह से बंद हो गया था और लडकियां अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर चली गईं थीं। परन्तु मीडिया ने उतना शोर नहीं मचाया था और फिर धारा 370 के हटने के बाद और कश्मीर में कथित रूप से स्थिति सामान्य होने के बाद भी ऐसा क्या कारण है कि मीडिया आज तक उस बैंड की लड़कियों के विषय में बात नहीं कर रहा?

न ही वह उत्साही हिन्दू जो अचानक से ही अभिलिप्सा को चोर करार देकर फ़रमानी के समर्थन में आ गए थे, वह भी धारा 370 के हटने के बाद सामान्य हुई स्थितियों में उस बैंड के पक्ष में जाकर खड़े हो रहे हैं? ऐसा क्यों? आपत्ति फरमानी नाज के गाने से नहीं है, फ़रमानी कुछ भी गा सकती है, आपत्ति इससे नहीं है, आपत्ति है उत्साहित होकर उस बच्ची के उस श्रम को उस बाजार से बाहर निकालने का षड्यंत्र रचना जो हिन्दुओं का है, जिसपर अधिकार हिन्दुओं का है और उस बच्ची ने बचपन से हिन्दू मूल्यों एवं संस्कार से भरे हुए जीवन एवं तपस्या से अर्जित किया है। और जिसमें हिन्दू अपने गाढ़े श्रम से अर्जित धन का निवेश करता है कि उसके कानों में जो भजन जाएं वह उनके द्वारा ही गाए हुए हों, जो उन मूल्यों को जीते हों, उन देवताओं का आदर करता हो, उनकी पूजा करता हो! ऐसा करना गलत नहीं है क्योंकि जिस भाव से गायक गाता है, वही भाव श्रोता के हृदय में जाता है, यही कारण है कि अभिलिप्सा का जिया हुआ मन्त्र श्रोता एवं दर्शकों के हृदय में सहज प्रवेश कर जाता है, वह भक्ति के सागर में डुबो देता है!
जिस गाने पर कॉपीराईट को लेकर चोरी का मामला फ़रमानी के विरुद्ध बनता था, उसे मीडिया ने नायिका बनाकर प्रस्तुत कर दिया? नायिका ही नहीं ऐसे तथ्यों पर शिवभक्त जो वह स्वयं नकार रही है, उसका भाई नकार रहा है!
दैनिक जागरण से बात करते हुए उसके भाई ने कहा कि उनकी बहन के खिलाफ कोई फतवा जारी नहीं हुआ है और न ही धमकी मिली है, हाँ उन्हें बिग बॉस में जाने का आमंत्रण अवश्य मिला है।

ऐसे में कई प्रश्न उठते हैं कि क्या फतवे वाला समाचार प्रसिद्धि के लिए गढ़ा गया था? क्या अभिलिप्सा को नीचा दिखाकर इस भजन का स्वामित्व हिन्दुओं से छीनकर एक मुस्लिम के हवाले करने का षड्यंत्र था? क्या हिन्दुओं के भजन के आध्यात्मिक एवं धार्मिक व्यवसाय पर भी इनकी कुदृष्टि है?
या फिर कुछ और ही हो रहा है?
धार्मिक प्रतीकों पर आक्रमण किया गया है?
इस पूरे प्रकरण को देखा जाए तो इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं कि “हर हर शंभू” भजन की जो लोकप्रियता है, और उसमे अभिलिप्सा पांडा के स्वर का जो योगदान है वह इसे असाधारण बना रहा है। वह इसे अत्यंत लोकप्रिय बना रहा है, ऐसे में वह एक प्रतीक गढ़ रही थीं, और वह प्रतीक है महादेव जो सृष्टि से पूर्व् से ही हिन्दू धर्म के सबसे बड़े प्रतीक हैं।
वह चन्द्र को धारण किए हैं, वह जटाओं में गंगा को बांधे हुए हैं, वह आदर्श पति, आदर्श पिता हैं एवं वह ऐसे देव हैं जो परिवार की अवधारणा की पुष्टि करते हैं। वह भोले हैं, इतने भोले कि कोई उनकी आराधना बेलपत्री से कर सकता है, और वह सत्य सनातन के प्रतीक हैं। ऐसे में अभिलिप्सा पांडा का यह भजन कांवड़ यात्रा के साथ साथ उसी एकात्मकता का सन्देश दे रहा था, जो कांवड़ यात्रा देती है। कांवड़ यात्रा पर बौद्धिक हमले हमने देखे ही हैं, कि कैसे किए गए, परन्तु यह गाना?
क्या यही कारण था कि इस पर फेक स्ट्राइक करके इसे यूट्यूब से हटवाया गया और फिर बाद में कुछ लोगों द्वारा इसका क्रेडिट ही किसी और को दे दिया जाए ऐसा खेल रचा गया? यद्यपि यह अभी अनुमान हैं और प्रश्न है कि ऐसा हुआ होगा, या ऐसा भी हो सकता है, परन्तु षड्यंत्र कई हो सकते हैं, एवं किसी भी आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।
जो इस गाने के साथ हुआ कि उसका श्रेय ही छीनकर ऐसी पहचान के साथ सम्बद्ध करने का षड्यंत्र रचा गया, जिसमे महादेव सांस्कृतिक एवं धार्मिक रूप से कहीं नहीं हैं, उसे कहीं न कहीं “कल्चरल जीनोसाइड” अर्थ सांस्कृतिक जातिध्वंस की संज्ञा दी जा सकती है, जिसमें एक समुदाय की धार्मिक पहचान को उससे छीनकर उस समुदाय के साथ सम्बद्ध कर दिया जाता है जिसने उस पर आक्रमण किया है और जिसका उस संस्कृति से कोई रिश्ता नहीं है। जैसा हम कई प्रतीकों एवं धरोहरों के साथ भी देखते हैं। जैसे हैदर फिल्म में मार्कंडेय मन्दिर को शैतान का घर बता दिया था!
यह भी हो सकता है कि फ़रमानी ने यह गाना सहज गाया हो और उन्हें यह नहीं पता होगा कि मीडिया उनका ऐसा प्रयोग करेगा, परन्तु अब जब वह स्वयं twitter पर यह कह रही हैं कि उन्हें न ही धमकी मिली और न ही फतवा जारी हुआ तो फिर मीडिया में आई इन बातों का खंडन उन्होंने क्यों नहीं किया और क्यों उन्होंने यह स्वीकार किया कि यह “भजन” दरअसल अभिलिप्सा पांडा का गाया हुआ है।
और मीडिया ने भी बजाय फ़रमानी से यह पूछने के कि उन्होंने बिना अनुमति के अभिलिप्सा पांडा का गाना क्यों गाया, अभिलिप्सा पांडा जिनकी उम्र अभी मात्र 21 वर्ष है, उनसे पूछा कि आपको कैसा लग रहा है जब आपका गाना किसी और के माध्यम से भी लोकप्रिय हो रहा है?
प्रश्न उन उत्साही हिन्दुओं से भी है कि उन्होंने फ़रमानी नाज का समर्थन करने के लिए अभिलिप्सा पंडा और जीतू शर्मा के प्रयासों पर यह कहकर पानी फेरने का कार्य क्यों किया कि उन्होंने अच्युता गोपी जी की धुन चुराई है जबकि जीतू शर्मा यूट्यूब पर यह स्पष्ट कर चुके थे कि उन्होंने अनुमति ली हुई है! क्या यह एक प्रकार की आत्महीनता है? यह कौन सी ग्रंथि है, समझ से परे है!