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Saturday, April 27, 2024

चैट-जीपीटी – एक ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ वाला टूल जो ‘हिन्दुओं के प्रति भेदभाव’ की प्रवृत्ति के कारण भविष्य में बन सकता है एक बड़ा खतरा

टेक्नोलॉजी दिन प्रतिदिन हमारे जीवन को प्रभावित करती जा रही है। हम लोग तकनीक के इतनी अभ्यस्त हो चुके हैं कि सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक, लगभग हर कार्य में इसका उपयोग करते हैं। हमारा जीवन एक प्रकार से सूचना तकनीक पर निर्भर होता जा रहा है, ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि अगर तकनीक ही हमारे विरुद्ध काम करने लग जाए तो हमारा क्या होगा?

अब सूचना तकनीक “कृत्रिम बुद्धिमत्ता” (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) की ओर बढ़ रही है, और ऐसा ही एक नया तकनीकी टूल है ओपनएआई का चैट-जीपीटी। ओपनएआई के संस्थापक हैं दुनिया के सबसे लोकप्रिय और विवादित व्यक्तियों में से एक एलन मस्क। यह टूल 30 नवंबर 2022 को शुरू किया गया और पांच दिनों के भीतर ही दस लाख से अधिक उपयोगकर्ताओं को ने इस पर पंजीकरण कर के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की दुनिया में तूफान ला दिया है। चैट-जीपीटी एक संवाद आधारित चैटबॉट है, जो सामान्य मानव भाषा को समझ कर उत्तर देता है।

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के अनुसार यह टूल 175 बिलियन मापदंडों का लाभ उठाता है, और अभी तक इसका परीक्षण 570 गीगाबाइट्स टेक्स्ट पर किया जा चुका है। इसका अर्थ यह है कि इस टूल ने बहुत ही बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण किया है और अब यह इतना समझदार हो चुका है कि वाक्य में आगे आने वाले शब्द का भी सही अनुमान लगा सकता है। यह किसी भी विषय पर लेख लिख सकता है, एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद कर सकता है, सामंजस्यपूर्ण वाक्यों का निर्माण कर सकता है और मानवों की तरह शब्दों का उत्पादन कर सकता है।

यह टूल मानव भाषा को समझ कर और अपने पिछले संवाद से सीख कर अपने बौद्धिक समझ को लगातार बढ़ाता रहता है। यही एक कारण है कि इस टूल का उपयोग अत्यंत तेजी से बढ़ रहा है, वहीं इसका भविष्य भी बड़ा उज्जवल है। ऐसा माना जा रहा है कि यह आने वाले समय में दुनिया के सबसे प्रचलित सर्च इंजन गूगल की उपयोगिता को समाप्त कर देगा, क्योंकि गूगल जहां खोजकर्ता को विषय विशेष से सम्बंधित परिणाम ही दिखाता है, वहीं चैट-जीपीटी उपयोगकर्ताओं के प्रश्नो के उत्तर देता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसके उत्तरों की गुणवत्ता लगातार बढ़ती रहती है, क्योंकि यह अपने पिछले उत्तर से सीखता है, और उस सीख को अपनी अल्गोरिथम में जोड़ता जाता है।

लेकिन यही चतुरता इस टूल की सबसे बड़ी समस्या भी है। क्या हो अगर यह किसी ख़ास धर्म या सामाजिक समूह के प्रति पक्षपात करने वाले लोगों द्वारा प्रभावित कर दिया जाए? क्या हो अगर इसका उपयोग करने वाले मनुष्य किसी विचारधारा के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित हों? क्योंकि यह तो निश्चित है कि इस टूल द्वारा उपयोग किए गए डेटासेट पर उन क्षेत्रों और व्यक्तियों की विचारधारा का प्रभाव पड़ सकता है, जहां से अर्जित किया गया है।

क्या हो अगर इस टूल द्वारा किसी ख़ास धर्म और उनके देवी देवताओं के प्रति द्वेषपूर्ण विचारधारा प्रचारित हो? क्या ऐसा हो सकता है कि इस टूल द्वारा संसाधित किये गए डेटासेट में ही ऐसी गड़बड़ी हो कि यह एक धर्म का तो सम्मान करे, वहीं दूसरे धर्म और उनके देवी देवताओं का मजाक उड़ाए, उनका अपमान करे?

आपको हमारे प्रश्न थोड़े अजीब लग रहे होंगे, लेकिन दुर्भाग्य से यह सत्य है।

इस टूल का उपयोग करते हुए हमें कुछ आपत्तिजनक व्यवहार देखने को मिला है। हमने पूछा कि राम पर कोई मजाक बताया जाए, जिस पर इस टूल ने उत्तर में एक एक छोटा सा परिहास व्यक्त कर दिया। हमने उत्सुकता हुई, हमने पूछा कि भगवान् राम पर कोई मजाक बताया जाए। हमने देखा कि इस टूल ने प्रतिउत्तर में भगवान् राम और सीता माता पर एक मजाक हमारे सामने रख दिया। हमने यही व्यवहार भगवान् श्रीकृष्ण पर भी देखा, जहां इस टूल ने मक्खन पर एक मजाक हमारे सामने रख दिया।

हमने सोचा कि इस टूल से कुछ और प्रश्न करते हैं। हमने पूछा कि क्या मोहम्मद के ऊपर कोई मजाक है? यहाँ आप शब्दों पर ध्यान दीजिये, हमने एक नाम लिखा है, किसी देवी देवता या पैगम्बर के बारे में कोई शब्द नहीं लिखा है। दुनिया में लाखों लोग होंगे जिनका नाम मोहम्मद होगा। लेकिन जानते हैं इस टूल ने उत्तर में क्या लिखा?

हमें उत्तर मिला कि “किसी धार्मिक मान्यता और आराध्य के विरुद्ध मजाक करना अपमानजनक होता है। हमें सभी धर्मों का समान आदर कर पूरी संवेदनशीलता से व्यवहार करना चाहिए।

यही उत्तर हमें तब भी मिले जब हमने जीसस और गुरु नानक के बारे में किसी प्रकार का मजाक जानने का प्रयत्न किया। यहाँ हम साफ़ करना चाहेंगे कि हमारा ध्येय किसी भी धर्म या मजहब का मजाक उड़ाना नहीं था, हम यह जानना चाहते थे कि कथित रूप से सभी धर्मों का सम्मान करने की सलाह देने वाला यह टूल हिन्दू धर्म और देवी देवताओं के प्रति इतना पक्षपाती और असंवेदनशील कैसे हो सकता है।

हम तो सभी धर्मों और मजहबों का सम्मान करते हैं, लेकिन क्या यह टूल ऐसा कर रहा है? एक धर्म के देवी देवताओं का मजाक उड़ाया जा रहा है, वहीं दूसरों के देवी देवताओं का सम्मान किया जा रहा है, ऐसा दोमुहा व्यवहार क्यों है? वहीं यह बात भी सत्यापित हो जाती है, कि जो मजहब और रिलिजन ‘सर तन से जुदा’, ब्लासफेमी, और बेअदबी की कट्टर भावना रखते हैं, उनके प्रति इसका व्यवहार अत्यंत संवेदनशील है।

हालाँकि, हम यहाँ यह भी जोड़ना चाहेंगे कि श्रीकृष्ण के बारे में बनाया गया मज़ाक विशेष रूप से हिंदुओं के लिए अपमानजनक नहीं था, वहीं श्री राम पर बनाया मजाक अस्पष्ट है। लेकिन यह इस तथ्य का सत्यापित कर देता है कि यह टूल हिंदू संवेदनाओं को बिल्कुल भी नहीं समझता है। या तो इसका डेटासेट हिंदू भावनाओं और संवेदनाओं की अवहेलना करता है, या फिर यह उन स्रोतों पर निर्भर हो सकता है जो हिंदूफ़ोबिक हों या कट्टर हिंदू विरोधी हों।

क्या हो सकता हिन्दुओं के प्रति इस पक्षपात का कारण?

यदि हम तकनीकी पक्ष की बात करें, तो ऐसे एआई निर्माणों में सांस्कृतिक पूर्वाग्रह अपरिहार्य हैं, भले ही वे प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) पर आधारित हों। चूंकि चैट-जीपीटी का यूरोसेंट्रिक और अब्राहमिक सांस्कृतिक परिदृश्य वाले वातावरण में विकसित किया गया है, यह सामान्य रूप से उन संस्कृतियों के प्रति झुकाव रखने वाला होगा जिनसे जिनसे यूरोप और अमेरिका परिचित हैं – उदाहरण के लिए ईसाई और इस्लामिक विचारधारा वाले लोग। यह हिंदू धर्म और संवेदनाओं के प्रति दयालु नहीं होगा, जैसा कि हमने इसका उपयोग करते हुए पाया।

इसके रिलीजियस कारण भी हो सकते हैं

मानवता और ग्रह के भविष्य के लिए अपने साझा हितों और लक्ष्यों पर चर्चा करने के लिए बड़ी तकनीकी कंपनियों और दुनिया के तीन सबसे बड़े एकेश्वरवादी धर्मों का प्रतिनिधित्व करने वाले धार्मिक नेताओं का एक साथ आना बड़ी ही असामान्य सी बात है। बड़ी ही आश्चर्यजनक बात है कि कुछ वर्षों पहले ‘एआई एथिक्स’ के लिए माइक्रोसॉफ्ट और आईबीएम द्वारा रोम में पोप की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए थे।

माइक्रोसॉफ्ट अपने सॉफ्टवेयर विकास और चैट-जीपीटी निर्माता ओपनएआई के साथ साझेदारी में ‘एआई की नैतिकता’ की प्रतिबद्धता का पालन करता है। यहाँ यह जानना बड़ा महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या ‘एआई की नैतिकता’ के नाम पर कुछ धर्मों पर प्रश्न पूछने पर अघोषित प्रतिबन्ध लगाया जाएगा, वहीं हिन्दू धर्म के प्रति इसी प्रकार का पक्षपात किया जाएगा?

इंफोसिस ने भी किया है चैट-जीपीटी में निवेश

भारत की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनियों में से एक इंफोसिस ने भी चैट-जीपीटी में एक छिपा हुआ निवेश किया था। यह निवेश 2015 में किया गया था, जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंपनी ओपन-एआई अपने शुरूआती चरण में ही थी । उस समय के इंफोसिस के सीईओ विशाल सिक्का ने 2015 में अपने एक ब्लॉग में इस बारे में जानकारी दी थी।

यहाँ यह जानना बड़ा महत्वपूर्ण हो जाता है कि इंफोसिस के संस्थापक नारायणमूर्ति फोर्ड फाउंडेशन से अपने सम्बन्धो के कारण संदेहास्पद स्थिति में हैं। इसके अतिरिक्त भारत के कुछ मीडिया समूह, जो दिन रात हिन्दू धर्म पर आक्रमण करते हैं, उन्हें धन और अन्य सहायता देने का काम भी इंफोसिस कंपनी और उनके संस्थापक करते हैं। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या इस टूल में निवेश करने के पीछे कोई षड्यंत्र है, जिसका हिंदुओं के विरुद्ध दूरगामी दुष्परिणाम होंगे?

क्या हो सकते हैं इस पक्षपाती टूल के खतरे?

आज के युवाओं का टेक्नोलॉजी बड़ी भाति है, और इस प्रकार के टूल युवाओं में ही सबसे ज्यादा प्रचलित हो जाते हैं। कल का हमारे युवा इस टूल पर हिन्दू विरोधी या पक्षपातपूर्ण जानकारी लेंगे, तो उसका उनके मस्तिष्क और विचारधारा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, और धीरे धीरे यह मुख्यधारा का भाग बन जाएगा। हो सकता है कुछ वर्षों पश्चात हमारे ही लोगों को ऐसी पक्षपाती जानकारी और दुर्भावना से प्रेरित ज्ञान से कोई फर्क ही ना पड़ें, और वो इसे ही सत्य मान लें। ऐसे में सोचिये यह हमारे धर्म और समाज का कितना बड़ा नुकसान कर सकता है।

यह हिन्दुओं के लिए बड़ी ही विकट स्थिति है, और इसका एक ही कारण है कि हम “सहन” करते हैं। हमें यही करना सिखाया जाता है और इस बात पर कभी जोर नहीं दिया जाता कि कब और कैसे हमें अपने धर्म के विरुद्ध हो रहे षड्यंत्रों का प्रतिकार करना है। परिणामस्वरूप हम कोई कार्यवाही नहीं करते और अंततः हमारे धर्म का मजाक उड़ाया जाता है और हमारे धार्मिक प्रतीकों का दुरूपयोग भी किया जाता है।

चैट-जीपीटी की घटना कोई अनायास नहीं हैं, इस प्रकार के पक्षपाती व्यवहार हम देखते आये हैं । चाहे अंतराष्ट्रीय राजनीति हो, चाहे ज्ञान और कला का क्षेत्र हो, या टेक्नोलॉजी कम्पनिया हों, हर जगह येन केन प्रकारेण हिन्दू धर्म और देवी देवताओं का अनादर किया जाता है। अगर हिन्दू प्रतिकार करने का प्रयास भी करते हैं तो उन्हें कभी पिछड़ा हुआ बता दिया जाता है, कभी इस्लामॉफ़ोबिक बोल कर उनका मुँह बंद कर दिया जाता है। लेकिन कहते हैं कि अति सर्वत्र वर्जयेत्, अब इन षड्यंत्रकारियों ने भी अति कर दी है, और इनका प्रतिकार करने के लिए हिन्दुओं का अब संगठित होना ही पड़ेगा।

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