किसी भी देश के लिए सुदृढ़ विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर उसकी महत्ता ही संसार में उसका यश स्थापित करती है। हम एक ऐसे संसार में रह रहे हैं, जहां कई शक्ति केंद्र हैं, और हमारे देश के लिए जहां एक ओर यह बहुत आवश्यक है कि विश्व के सभी शक्तिशाली देशो के साथ तालमेल बनाये रखे, तो वहीं इसे भी ध्यान में रखना होता है कि हमारे किसी कदम से कहीं हमारे ही देश का अहित तो नहीं हो रहा है।
परंपरागत तौर पर भारत की विदेश नीति काफी रक्षात्मक तरीके की रही है! स्वतंत्रता के उपरान्त से ही हम गुटनिरपेक्ष आंदोलन का समर्थन करते रहे, और इसके कारण हमें कई बार कई विषयों पर हानि भी उठानी पड़ी। कई विषय ऐसे थे जिनमें हमारी पूर्व सरकारें पश्चिम देशो का समर्थन नहीं प्राप्त कर पाती थी। कश्मीर और आतंकवाद जैसे विषयों पर हम पाकिस्तान की उग्र कूटनीति के आगे फीके पड़ जाया करते थे तो वहीं व्यापार सम्बन्धो पर भी हमारी कमजोर विदेश नीति के दुष्प्रभाव के चलते पाकिस्तान को अमेरिका और यूरोप के देशो से अच्छे व्यापार समझौते मिल जाया करते थे।
परन्तु वर्ष 2014 में जब से प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी, उन्होंने विदेश नीति पर ठोस कदम उठाने आरम्भ किये, और परम्परागत निर्बल विदेश नीति के स्थान पर एक सबल विदेश नीति पर बल दिया! श्रीमती सुषमा स्वराज जी ने अपने कार्यकाल में विदेश मंत्रालय में अभूतपूर्व परिवर्तन किये। इनके कार्यकाल में भारत ने ढेरो बचाव अभियान चलाये, हजारो भारतीयों को विभिन्न देशों में उत्पन्न संकटों से सुरक्षित बचा कर लाया गया, दुनिया के बड़े मंचो पर उन्होंने भारत के दृष्टिकोण को मजबूती से रखा और नित नए सोपान प्राप्त किये।
सुषमा स्वराज जी की असमय मृत्यु के बाद एक बड़ा प्रश्न खड़ा हो गया था कि अब विदेश नीति को कौन संभालेगा। तभी सरकार ने डॉ एस जयशंकर को विदेश मंत्री बनाने की घोषणा की, जो 2015 से भारत के विदेश सचिव के रूप में नियुक्त थे, और कम ही लोगो को ऐसा अनुमान भी था कि वे एक दिन वह केन्द्रीय मंत्री के पद पर पहुंच जाएंगे। कुछ ही वर्षों में डॉक्टर जयशंकर ने भारत के साहसिक पक्ष को दुनिया के सामने ला दिया है। उनकी व्यक्तिगत शैली मुखरता, आत्मविश्वास और आत्म-विश्वास से यह विश्वास होता है कि उनमे गलत को गलत कहने का साहस है, और पिछले कुछ समय में उनके वक्तव्यों ने जनता के बीच उनकी छवि एक महामानव सरीखी बना दी है।
जयशंकर ने दशकों से चली आ रही वर्जनाओं को तोड़ा है, उन्होंने पाखंडी पश्चिम और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के प्रभुत्व को बेनकाब करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा। रूस-यूक्रेन के विषय पर उन्होंने भारत के संतुलित दृष्टिकोण को पूरे विश्व के सम्मुख दृढ़ता से प्रस्तुत किया तो वहीं पश्चिम के देशो के दोगले आचरण पर करारा प्रहार भी किया। रूस से तेल खरीदने वाले और भारत को रूस से सम्बन्ध तोड़ने का सन्देश देने वाले पश्चिमी देशो को उन्ही की धरती पर जा कर कठोरता से अपनी बात समझाना और अपना दृष्टिकोण उनके सम्मुख रखना एवं साथ ही विश्व को भारत की आवश्यकताओं से अवगत कराने का काम जैसा जयशंकर जी ने किया है, वह अब तक सहज रूप से असंभव ही लगता था।
जब जयशंकर अमेरिका गए, तब संयुक्त राज्य अमेरिका ने उन्हें भारत के कथित बुरे मानवाधिकार रिकॉर्ड के मुद्दे पर घेरने का प्रयास किया था। पहले भारतीय नेतृत्व ऐसे मुद्दों पर चुप ही रहता था, लेकिन इस बार तेवर एकदम अलग थे, जयशंकर ने साफ़ कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और वो भी अमेरिका के मानवाधिकार के मुद्दों पर गहरी नज़र रखता है, और साथ ही उन्होंने एक दिन पहले एक भारतीय सिख पर हुए हमले को उठा कर इंगित किया कि आगे से अमेरिका इस मुद्दे पर सोच समझ कर बोले, अन्यथा जवाब देना भारत भी अच्छे से जानता है।
जयशंकर ने एक बार और दिल जीत लिया जब उन्होंने अमेरिकी मीडिया से कहा कि उन्हें भारत के बजाय, यूरोप से रूस से तेल खरीद पर सवाल करना चाहिए, भारत जितना तेल महीनो में खरीदता है, उतना तो यूरोप दोपहर में ही खरीद लेता है। जयशंकर के इस उत्तर की चर्चा दुनिया भर के मीडिया में हुई।
इसी प्रकार के एक और वक्तव्य में उन्होंने ब्रिटिश विदेश सचिव लिज़ ट्रस से कहा कि भारत को रूस के साथ अपनी तेल व्यवस्था पर शर्मिंदा नहीं होना चाहिए, क्योंकि भारत रूस से काफी कम मात्रा में तेल खरीदता है, वहीं पश्चिम देशो का अधिकतर तेल रूस के माध्यम से ही आता है।
पिछले ही दिनों रायसीना डायलॉग के दौरान उन्होंने “नियम-आधारित व्यवस्था” पर एक शानदार वक्तव्य दिया । उनसे बार-बार यूक्रेन-रूस संकट पर भारत के मत को साफ़ करने को कहा जा रहा था, वहीं ये भी आरोप लगाया गया कि भारत नियम-आधारित व्यवस्था को कमजोर कर रहा है। जयशंकर ने साफ किया कि नियम-आधारित व्यवस्था को एशिया में भी चुनौती दी जा रही थी लेकिन तब पश्चिम ने भारत को “अधिक व्यापार करने” की सलाह दी, कम से कम भारत वही सलाह यूरोप को नहीं दे रहा है।
ये सीधा सीधा चीन द्वारा 2 साल पहले एलएसी पर घुसपैठ का एक संदर्भ था। साथ ही साथ उन्होंने पाकिस्तान पर भी निशाना साधा था, कि कैसे इन दिनों देशो द्वारा भारत में आतंकवाद का प्रयोजन करने और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा करने के बावजूद भी पश्चिम हमेशा भारत को ही सहकारी और व्यापार-आधारित संबंधों में शामिल होने की सलाह देता रहा है।
जयशंकर यहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा कि यूरोप में जो हो रहा है, वह पिछले 10 वर्षों से अफगानिस्तान में हो रहा था, पश्चिम ने अफगान लोगों को तालिबान के भरोसे छोड़ दिया और चीन की बढ़ती आक्रामकता के खिलाफ भी कुछ नहीं कहा। यूरोप और अन्य पश्चिम देशो को आज भारत की याद तभी आयी है जब वे स्वयं खतरे में पड़े हैं।
एस जयशंकर पश्चिम के पाखंड को उजागर करने की अपनी अद्भुत क्षमता के लिए जाने जाते हैं। पिछले ही दिनों उन्होंने ब्रिटैन को भारत में
उसके उपनिवेशवाद के काले इतिहास के बारे याद दिलाया। उन्होंने खुल कर कहा कि ब्रिटैन ने भारत से लगभग 45 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य की सम्पदा लूटी।
जयशंकर जी की आदत है कि वे बिना लाग लपेट और बिना किसी अपराधबोध के अपनी बात रखते हैं। उन्होंने कहा है कि भारत को अब अपने कार्यों के लिए पश्चिम का अनुमोदन प्राप्त करना बंद कर देना चाहिए। पिछले 75 वर्षों में, भारत ने एक संपन्न लोकतंत्र बनकर एक वैश्विक उत्तरदायित्व का निर्वहन किया है और अगले 25 वर्षो में भारत को इस पर ध्यान देना चाहिए कि वह बाहरी परिस्थितियों का लाभ कैसे उठा पायेगा। उनके अनुसार इस बहु-ध्रुवीय दुनिया में, भारत को दूसरों को खुश करने की परवाह करने के बजाय अपने स्वयं के हितों की सुरक्षा करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए ।
डॉक्टर जयशंकर एक अत्यंत मंजे हुए राजनयिक हैं, और उन्हें सरकार का वरदहस्त भी मिला हुआ है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की “आँख में आँख” डाल कर बात करने की नीति का अक्षरशः पालन किया है, और अंतरास्ट्रीय मंचो का प्रयोग देश के मजबूत नेतृत्व और बढ़ती साख को प्रदर्शित करने में किया है। उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि अब पश्चिम देशो ने लगभग हर मुद्दे और हर संकट पर भारत की सलाह लेना शुरू कर दिया है।
इस समय दुनिया एक संक्रमण काम से निकल रही है, हर रोज यहाँ नए समीकरण बन रहे हैं, नए ध्रुव बन रहे हैं, पुराने बिगड़ रहे हैं । आज हम ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जहाँ अगर सशक्त नेतृत्व ना हो तो हम भी नेपथ्य में जा सकते हैं। सौभाग्य से हमारे पास प्रधानमंत्री मोदी जी जैसे नेता हैं, वहीं विदेश मंत्री के रूप में डॉक्टर जयशंकर जैसे उत्तम राजनयिक हैं, जिनके लिए देश का हित हमेशा सर्वोच्च होता है, और अपनी वाक्पटुता और ज्ञान की वजह से वो देश को कहीं झुकने नहीं देते।