कर्नाटक में हिजाब का प्रकरण अब एक हिंसक मोड़ लेता जा रहा है। वहां पर बजरंग दल के एक 26 वर्षीय कार्यकर्ता हर्ष की शिवमोगा में लगभग रात को नौ बजे चाकू मारकर हत्या कर दी गयी। एएनआई के एक ट्वीट के अनुसार शिवमोगा में एक बजरंग दल के कार्यकर्त्ता की कथित रूप से चाकू मार कर हत्या कर दी गयी और शहर में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गयी है:
वहीं कुछ हैंडल का कहना है कि हर्ष की हत्या हिजाब प्रकरण में विरोध करने के कारण हुई है। यह कहा जा रहा है कि हर्ष की फेसबुक प्रोफाइल में हिजाब का विरोध कर भगवा शाल डाले हुए फोटो लगी हुई है।
ऐसे एक दो और हैंडल ने दावा किया कि वह सह्याद्री कॉलेज में हिजाब का विरोध कर रहा था। एक गरीब घर का हिन्दू युवक हर्ष को शिवमोगा में बहुत ही निर्दयता से मौत के घाट उतार दिया गया।
हर्ष की फेसबुक प्रोफाइल से यह पता चलता है कि वह एक गर्व करने वाला हिन्दू था और वह हिंदुत्व की विचारधारा का समर्थक था,
ऐसा नहीं है कि यह पहला हमला हुआ है। इससे पहले भी सोशल मीडिया पर हिजाब का विरोध करने पर माँ बेटे पर चाकू से हमला किया जा चुका है।
11 फरवरी 2022 को राज्य के दावणगेरे जिले में रहने वाले एक 25 वर्षीय युवक सोशल मीडिया पर हिजाब के विरोध में स्टेटस लगाया तो रिपोर्ट के अनुसार 25 वर्षीय नवीन और उसकी 60 वर्षीय माँ सरोजअम्मा पर कट्टर मुस्लिमों की भीड़ ने हमला किया और उन दोनों को घायल कर दिया।
गंभीर रूप से घायत माँ और बेटे को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
उसी तरह एक इस्लामिक भीड़ ने कथित तौर पर हिजाब पर प्रतिबंध का समर्थन करने के लिए हिंदू युवक दिलीप मालागिमाने को इसलिए चाकू मार दिया कि उसने इस विरोध को अपने व्हाट्सएप स्टेटस लगाया था। यह घटना बुधवार को दावणगेरे जिले के मालेबेन्नूर शहर में हुई, जहां 300 कट्टर इस्लामियों की भीड़ ने शहर के गिगाली सर्कल में एक स्टोर चलाने वाले दिलीप पर हमला किया।
रिपोर्ट के अनुसार, कट्टरपंथी मुस्लिमों ने दिलीप को उसकी दुकान से घसीटे जाने के बाद बेरहमी से पीटा था। यहां तक कि जब पीड़ित को बचाने के लिए मौके पर पहुंची तो गुस्साई भीड़ ने पुलिस अधिकारियों के साथ हाथापाई की और उन पर हमला किया। भीड़ के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है और उनमें से कुछ को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। पूरे हरिहर तालुक जहां मालेबेन्नूर शहर स्थित है, में शुक्रवार रात तक निषेधाज्ञा लागू कर दी गई थी।
सोशल मीडिया पर पोस्ट के कारण ही गुजरात में किशन की जान गयी थी
दूसरों को सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने वाले यह कट्टर इस्लामी मात्र फेसबुक पोस्केट लिए ही जान ले लेते हैं। इसका एक और बड़ा उदाहरण है कि गुजरात का किशन भरवाड, जिसकी हत्या हाल ही में कर दी गयी थी क्योंकि उसने अपने भगवान को श्रेष्ठ बता दिया था। परन्तु यह लोग यह नहीं बता पाते हैं कि यदि हिन्दुओं द्वारा भगवान श्री कृष्ण को अल्लाह या जीसस से बढ़कर बताना अपमानजनक है तो दिन में न जाने कितनी बार लोगों को अल्लाह-ओ-अकबर सुनाना हिन्दुओं के धार्मिक अधिकारों का हनन नहीं है?
सहिष्णुता का पूरा उत्तरदायित्व हिन्दुओं पर ही है
ऐसा प्रतीत होता है कि जो शब्द सेक्युलरिज्म संविधान में लगाया गया, उसकी लाज बचाने का पूरा उत्तरदायित्व मात्र हिन्दुओं पर ही है क्योंकि वह ही एकमात्र वर्ग है जो स्वयं पर हुए अत्याचारों का विरोध भी नहीं कर सकता है, वह दोनों ही अब्रह्मिक मजहबों से यह नहीं कह सकता है कि जबरन धर्मांतरण न करो, वह लव जिहाद में फंसने वाली लड़कियों की पीड़ा भी नहीं बता सकता है और न ही वह अपने साथ हुए बौद्धिक छल का प्रतिकार कर सकता है, क्योंकि जैसे ही कोई ऐसा करता है वैसे ही पूरी हिन्दू सभ्यता पर प्रश्न चिन्ह लगने लगते हैं और कहा जाने लगता है कि हिन्दू संस्कृति तो सभी को समाहित कर लेती है।
परन्तु वह यह नहीं बताते हैं कि एक समय के बाद हर कोई थकता है और उसे यह पता चलता है कि कैसे शब्दों के जाल में उसे फंसाया जा रहा है। उसे दिखता है कि अख़लाक़ की मौत पर आंसू हैं, परन्तु किसी गौ रक्षक की मौत पर नही, जिनकी हत्या पशु तस्कर करते हैं? वह यह देखता है कि पालघर के साधुओं के खून पर भी चुप्पी है और अब जब हिजाब का प्रकरण चल रहा है उस समय भी तमिलनाडु की लावण्या की मौत पर चुप्पी है और हिजाब पर शोर?
क्या पहनने का अधिकार जीवन के अधिकार से बढ़कर है? क्योंकि अल्लाह के नाम पर पर्दे को जायज ठहराने वाली लडकियां कभी भी लावण्या के साथ नहीं आईं और न ही कट्टर इस्लाम को दिल से चाहने वाला फेमिनिज्म सामने आया।
इसलिए लोग अब थक गए हैं इस झूठे वोकिज्म से, इस झूठी प्रगतिशीलत से।
वह अपने साथियों की रक्तरंजित देह देखकर कुपित हैं और हतप्रभ हैं, क्रोधित हैं। मगर दुर्भाग्य की बात यही है कि अभी तक उनकी लाशें भी कहीं विमर्श पैदा नहीं कर पाई हैं! जितना कथित रूप से बुर्के ने कर दिया है!