दिल्ली में अभी तक सुन्दर नगरी में हुई हत्या का मामला शांत भी नहीं हो पाया था कि एक बार फिर से एक और हत्या से दिल्ली दहल गयी है। बजरंग दल के कार्यकर्ता नितेश की हत्या भी कट्टर इस्लामिस्ट तत्वों ने कर दी है, हालांकि पुलिस का कहना है कि यह मार पिटाई की घटना है, इसमें साम्प्रदायिक कोण न खोजा जाए!
पच्चीस वर्षीय हिन्दू युवक, जो शादीपुर में रहता था, उसके साथ तीन मुस्लिम युवकों उफिजा, अदनान और अब्बास ने मारपीट की, जिसके चलते उसके सिर पर चोट आई और वह बेहोश हो गया। उसे अस्पताल लेजाया गया, परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ और उसकी मृत्यु इलाज के दौरान ही हो गयी।
उसके साथ उस समय दो और दोस्त थे, आलोक और मॉन्टी। जिनमें से आलोक अभी भी अस्पताल में है।
मगर मारपीट हुई क्यों थी?
अब प्रश्न उठता है कि आखिर मारपीट हुई क्यों थी? नितेश और उसके दोस्तों के साथ ऐसी हिंसक मारपीट कि जिसमें नितेश की हत्या तक हो जाए, किस कारण हुई थी। नितेश की हत्या हुई थी कि उसने रणजीत नगर निवासी उफिजा, अदनान और अब्बास नामक तीन बाइकर्स से यह कह दिया था कि हॉर्न धीरे बजाएं। इस बात को लेकर उन्होंने नितेश और दोस्तों को गाली दी, जिसके चलते झगड़ा हुआ और फिर नितेश के सिर में बहुत गहरी चोटें आईं और उसके कारण उसकी मृत्यु हो गयी।
इस विषय में सीसीटीवी फुटेज भी सामने आई है कि किस प्रकार उसके साथ हाथापाई हुई।
नितेश के परिवार में उसकी माँ और उसका छोटा भाई है। रविवार अर्थात 16 अक्टूबर, उसकी मृत्यु के एक दिन बाद उसके परिवारवालों एवं दोस्तों ने पटेल नगर मेट्रो स्टेशन के पास उसका शव रखकर हंगामा किया और उसका अंतिम संस्कार करने से इंकार कर दिया। मगर पुलिस के समझाने पर वह लोग माने और उसका अंतिम संस्कार किया गया।
पुलिस ने किसी भी साम्प्रदायिक कोण से इंकार किया है
दिल्ली पुलिस ने बिना अधिक समय गंवाए इस घटना के विषय में कहा कि इस घटना में कोई भी साम्प्रदायिक कोण नहीं है। यह अजीब विडम्बना है कि चाहे लव जिहाद की कोई घटना हो या फिर इस प्रकार की हिंसा की कोई घटना, उसे सामान्य क़ानून एवं हिंसा का मामला माना जाता है और इस प्रकार से एक वृहद समस्या को सामान्य बताकर ही प्रस्तुत कर दिया जाता है।
यहाँ इस बात पर कोई बात नहीं करता है कि आखिर एक वर्ग विशेष के लोगों का यह दुस्साहस कैसे हो जाता है कि वह सड़क पर अपने अनुसार ही हॉर्न बजाना चाहता है, वह अपने अनुसार ही कार्य करना चाहता है? कैसे एक वर्ग विशेष को क़ानून का डर नहीं है, पकडे जाने का डर नहीं है? यह आम जनता भी पूछती है कि आखिर ऐसा क्या है?
तभी वह सड़क पर उतरकर प्रश्न पूछती है कि आखिर ऐसा क्यों? लोगों ने सड़क बंद की और नारे लगाए
नितेश हम शर्मिंदा हैं, तेरे क़ातिल ज़िंदा हैं-
हिन्दुओं की जब हत्याएं मुस्लिमों द्वारा होती हैं तो इसे यही कहकर सामान्य बताने का प्रयास किया जाता है कि यह तो पुरानी रंजिश है, या फिर यह आम तौर पर होने वाली क़ानून की समस्या है! इस बात को जोर जोर से प्रचारित किया जता है कि यद्यपि यह दो समुदायों का मामला है, परन्तु इसमें साम्प्रदायिक कोण न देखा जाए!
जहां तक संभव हो, वहां तक यही प्रयास किया जाता है कि दोषी हिन्दू ही लगे।
जब लव जिहाद के मामले में हत्या की बात सामने आती है तो लड़की का लड़के के साथ अफेयर था, इसे बार-बार दोहराया जाता है, जिससे कहीं न कहीं अवचेतन में यही लगता है कि यदि लड़की का अफेयर है तो उसके मारा जा सकता है! जैसा हाल ही में झारखण्ड में अंकिता की हत्या के मामले में देखा था। यह प्रश्न पूछने वाले कम ही होते हैं कि यदि प्यार करती भी थी तो क्या उसे मार डाला जाएगा?
अंकिता की मृत्यु के बाद अजीबोगरीब तस्वीरें साझा की गईं जो यह जबरन स्थापित करने के लिए थीं कि अंकिता और शाहरुख प्यार करते थे! कट्टर तत्वों को सजा से बचाने का यह दृष्टिकोण क्या कहलाता है, समझ नहीं आता!
इसी प्रकार जब दिल्ली दंगे हुए थे तो महीनों से चले आ रहे दंगों की तैयारी को एक तरफ करते हुए, कपिल मिश्रा के भाषण को ही दोषी ठहरा दिया गया था।
लव जिहाद का मामला हो, उसमे साम्प्रदायिक कोण नहीं है, निकिता तोमर जैसी लडकियां शिकार हो रही हैं, परन्तु उसमे कोई साम्प्रदायिक कोण नहीं है, नितेश जैसे युवक क्षणिक क्रोध में मारे जा रहे हैं, परन्तु जैसे ही पुलिस यह कहती है कि “घटना में कोई भी साम्प्रदायिक कोण नहीं है!”
वैसे ही सेक्युलर मीडिया जैसे यह घोषणा ही कर देता है कि नहीं यह तो साम्प्रदायिक घटना नहीं है! घटना की जड़ में जाए बिना ही ऐसा कैसे घोषित किया जा सकता है?
परन्तु ऐसा होता है, और जब ऐसा होता है तो कहीं न कहीं समस्या जस की तस रहती है और मीडिया का मुख दूसरी घटनाओं की ओर मुड जाता है!