कुछ ही महीनों पहले दिल्ली की सीमा पर लगभग एक वर्ष तक धरना देने वाले पंजाब के किसान एक बार फिर से सड़कों पर उतर आये हैं। किसानों ने अपनी विभिन्न मांगों को लेकर पंजाब के मोहाली में सिंघु बॉर्डर जैसी परिस्तिथि उत्पन्न कर दी है। बीते मंगलवार को पंजाब के अलग अलग हिस्सों से हजारों किसानो ने राजधानी चंडीगढ़ की ओर कूच किया, इनका ध्येय था चंडीगढ़ में धरना करना और सरकार को अपनी मांगें मानने पर बाध्य करना।
हालांकि पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार ने किसानों को मोहाली में ही रोक दिया । इसके पश्चात किसान चंडीगढ़-मोहाली सीमा के पास धरने पर बैठ गए हैं, और सिंघु बॉर्डर की ही तरह किसान कई महीनों तक रुकने के लिए जरूरी सामान ले कर आये हैं। किसान राशन, बिस्तर, पंखे, कूलर, बर्तन, रसोई गैस सिलेंडर और अन्य सामान लेकर मोहाली के गुरुद्वारा अंब साहिब में एकत्रित हुए। इसके अतिरिक्त हजारों ट्रैक्टर-ट्रॉली, बसों और अन्य वाहनों का जमावड़ा भी मोहाली में लग चुका है।
मोहाली पुलिस द्वारा अवरोध उत्पन्न किये जाने के बाद किसान सड़क के बीचोंबीच अपने वाहन खड़े करते हुए धरने पर बैठ गए। किसानों ने सिंघु बॉर्डर की ही तरह वहां खाना पीना बनाना भी शुरू कर दिया था। विरोध प्रदर्शन की वजह से पुलिस को वाईपीएस चौक के पास चंडीगढ़-मोहाली रोड पर आने वाले ट्रैफिक को वैकल्पिक रास्तों से भेजना पड़ा।
क्या है किसानों की मांग?
किसानों ने मांग की है कि सरकार उन्हें 10 जून से धान की बुवाई की अनुमति दे, इसके अतिरिक्त मक्का और मूंग के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए अधिसूचना भी जारी की जाए। किसान राज्य सरकार से बिजली लोड को बढ़ाने पर लगने वाले शुल्क को 4,800 रुपये से घटाकर 1,200 रुपये करने, 10-12 घंटे बिजली आपूर्ति और बकाया गन्ना भुगतान जारी करने की भी मांग कर रहे हैं।
पंजाब सरकार को चेतावनी देते हुए किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल ने कहा कि अगर मुख्यमंत्री भगवंत मान बुधवार तक प्रदर्शनकारियों के साथ उनकी शिकायतों के निपटारे के लिए बैठक नहीं करते, तो वो बैरिकेड तोड़कर आगे बढ़ते हुए चंडीगढ़ की ओर कूच करेंगे।
किसान नेताओं ने पंजाब सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि, “यह पंजाब में हमारे संघर्ष की शुरुआत है और यह तब तक जारी रहेगा जब तक कि हमारी मांगें पूरी नहीं की जातीं। अभी तक केवल 25 प्रतिशत किसान ही यहां आए हैं, कल और आएंगे, यह हमारे लिए करो या मरो की लड़ाई है।” इन मांगों के अतिरिक्त किसान प्रत्येक क्विंटल गेहूं पर ₹ 500 का बोनस भी चाहते हैं, उनके अनुसार अभूतपूर्व गर्मी की स्थिति के कारण गेहूं की उपज में गिरावट आई है।
किसानों की मसीहा ‘आम आदमी पार्टी’ का किसान विरोधी चेहरा
पिछले ही साल तक किसानों की मसीहा बनी आम आदमी पार्टी ने पहली बार किसानों के गुस्से का सामना किया है, और वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गयी है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने किसानों के आंदोलन को अनुचित और अवांछनीय बताया। उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शन करना किसानों का अधिकार है, लेकिन ऐसे मुर्दाबाद-मुर्दाबाद कहना शोभनीय नहीं लगता।
वहीं पंजाब पुलिस ने भी अपनी दंगा रोधी पुलिस को किसानों का सामना करने के लिए तैनात कर दिया। हालांकि मुख्यमंत्री ने कहा कि वह बातचीत के लिए तैयार हैं , साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार किसानों के साथ बातचीत के लिए उनके दरवाजे खुले हैं लेकिन भूजल के और कम होने को रोकने के उनके संकल्प को नहीं तोड़ सकते।
किसानो के गुस्से के आगे सरकार झुकी – सारी मांगे मानी गयी
ताज़ा समाचार के अनुसार पंजाब सरकार ने किसानों की कई मांगों को मान लिया है, जिसके बाद राज्य के किसानों ने चंडीगढ़-मोहाली सीमा पर बुधवार को अपना प्रदर्शन समाप्त कर दिया। इससे पहले 20 से अधिक किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने पंजाब भवन में मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ लंबी बैठक की।
भगवंत मान ने किसानों की प्रमुख मांगों को मानते हुए धान की 14 और 17 जून को अलग-अलग बुआई के नये कार्यक्रम की घोषणा की। इस तरह बुआई के लिए क्षेत्रों की संख्या पहले के चार के मुकाबले केवल दो तक सीमित कर दी गयी है । हालांकि सीमा पर बाड़ के पास वाले क्षेत्र को क्षेत्रीय पाबंदियों से अलग रखा गया है और इस क्षेत्र के किसानों को 10 जून से धान बोने की अनुमति दी गयी है।
मांगे तो मान ली, लेकिन क्या पंजाब सरकार इसे पूरा कर पाएगी?
जाब सरकार ने आनन् फानन में किसानों का धरना ख़त्म करने के लिए मांगें तो मान ली हैं, लेकिन इन्हे पूरा कर पाने की उनकी क्षमता संदेहास्पद है। पंजाब की सबसे बड़ी समस्या है सरकार के पास धन का अभाव होना, और यही कारण है कि सरकार बनने के पश्चात भगवंत मान दिल्ली आये थे और केंद्र सरकार से 1 लाख करोड़ की सहायता देने का आग्रह किया था।
यहाँ स्पष्ट है कि पंजाब सरकार की हालत खस्ता है और यही कारण है कि धरना समाप्त होने के दुसरे ही दिन भगवंत मान फिर से दिल्ली पहुंच गए। यहाँ उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मंत्रणा की और किसानों के मामले पर उनसे सहायता का आग्रह किया।
हालांकि केंद्र सरकार इस मामले में पंजाब सरकार की ज्यादा सहायता नहीं कर पाएगी, क्योंकि कृषि राज्य का विषय है, और राज्य सरकार को ही इस विषय पर निर्णय लेने और धन का उपयोग करने का अधिकार होता है। कुलमिलाकर यह कह सकते हैं कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने कुछ समय के लिए इस विषय को ठन्डे बस्ते में डाल दिया है, लेकिन ये समस्या पंजाब सरकार को रह रह कर परेशान करती ही रहेगी।