बाहरी घुसपैठ – एक भीषण समस्या

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घुसपैठ

झारखंड हमेशा से ही भारत का एक अत्यंत संभावनाशील क्षेत्र रहा है लेकिन इसे लगातार उपेक्षा का सामना करना पड़ा है। बिहार का हिस्सा रहने के दौरान, स्थानीय नेताओं ने एक अलग राज्य की वकालत की, उनका मानना था कि इससे स्थानीय मुद्दों को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित किया जाएगा और विकास में वृद्धि होगी। लेकिन स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है।

एक और समस्या जिसने बहुत गंभीर रूप ले लिया है वह है जनसांख्यिकीय परिवर्तन। जनजातीय समुदायों की आबादी घट रही है, जबकि मुस्लिम आबादी बढ़ रही है। खासकर संथाल परगना में मुसलमानों की आबादी में काफी इज़ाफ़ा हुआ है। 2011 की जनगणना के अनुसार, जनसंख्या में हिंदू 67.95%, मुस्लिम 22.73% और आदिवासी 28.11% थे। वहां हिंदुओं और आदिवासियों की आबादी तो घट रही है लेकिन मुसलमानों की बढ़ती जा रही है।

संथाल परगना प्रमंडल में 5 जिले हैं: गोड्डा, देवघर, दुमका, साहेबगंज और पाकुड़, जिसमें पाकुड़ और साहेबगंज इस समस्या से अधिक प्रभावित होते दिख रहे हैं। पाकुड़ जिले में मुस्लिम आबादी 35.87% और साहेबगंज जिले में 34.61% है. विशेषज्ञों के अनुसार 2050 तक ये दोनों जिले मुस्लिम बहुल हो जाएंगे।

1991 की जनगणना के अनुसार मुसलमानों की जनसंख्या 18.25% थी जो बढ़कर 22.73% हो गई। जबकि 1991 में हिंदुओं की आबादी 79.75% थी, जो 2011 में गिरकर 67.95% हो गई। यही हाल आदिवासियों का भी है। वहां की जनसंख्या 1991 में 31.8% से घटकर 2011 में 28.11% हो गई। ये सभी आंकड़े 2011 के हैं, अब 2024 चल रहा है। इन 13 वर्षों में निश्चय ही और भी बदलाव आया होगा।

लेकिन सोचने वाली बात ये है कि हालात ऐसे क्यों बने? इसके लिए समय में थोड़ा पीछे जाने की जरूरत है।

तो यह साल 1971 की बात है, जब पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हिंदुओं का नरसंहार हो रहा था। हिंदू अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग गए। वहां से न केवल हिंदू बल्कि मुसलमान भी आए। उस समय बांग्लादेशी मुसलमानों का एक बड़ा समूह पश्चिम बंगाल, बिहार और असम चले गया। झारखंड की पश्चिम बंगाल से लंबी सीमा थी। 1970 के दशक में यहां की सत्ताधारी पार्टी और बाद में उसकी उत्तराधिकारी पार्टी ने इन लोगों को अपने वोट बैंक के लिए साधना शुरू कर दिया और इनका पलायन बिना किसी समस्या के जारी रहा।

उस समय उनकी जनसंख्या मात्र 8% थी; जो बढ़कर 27% हो चुकी है और इनमें से 90% बांग्लादेशी मुसलमान हैं और केवल 10% ही भारतीय हैं। कुछ समय पहले, एक स्थानीय राजनेता ने कहा था कि एक पूरा माफिया है जो इन बांग्लादेशियों को मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड आदि प्रदान करता है।

ये बाहरी लोग हैं; उनकी संस्कृति और हमारी स्थानीय आदिवासी संस्कृति में भारी अंतर है। ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जिनमें मुस्लिम लड़कों ने अपनी पहचान बदलकर स्थानीय आदिवासी लड़कियों से शादी की है साथ ही वहां पर बलात्कार जैसी गंभीर घटनाएं भी हुई हैं।

इसके अलावा, ये बाहरी लोग अक्सर उनके पिता या भाइयों को पैसे या शराब का लालच देकर स्थानीय लड़कियों से शादी करते हैं। कुछ मामलों में, ये पुरुष बिना विवाह के महिलाओं के साथ रहना शुरू कर देते हैं।

वर्तमान में, झारखंड में दो प्रमुख कानून हैं: छोटा नागपुर टेनेंसी अधिनियम और संथाल परगना टेनेंसी अधिनियम।ये अधिनियम गैर-आदिवासियों को भूमि के हस्तांतरण पर रोक लगाकर आदिवासी भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए हैं। लेकिन घुसपैठियों ने इससे निपटने का तरीका भी ढूंढ निकाला है, और वो उपाय है वहां रहने वाली लड़की से शादी कर लो। इस तरह वे जमीन के वास्तविक मालिक बन जाते हैं। ऐसे में धीरे-धीरे जमीन खिसकती जा रही है। साथ ही आदिवासियों को भी उनके बहुविवाह पर कोई आपत्ति नहीं है।

इस तरह उनकी आबादी बढ़ती जा रही है। आने वाले समय में राज्य की राजनीति में भी उनका प्रभाव बढ़ने की संभावना है। इसके अलावा झारखंड में ईसाई धर्मांतरण भी एक समस्या है।

प्रदेश में जहां-जहां इनकी आबादी बढ़ी है, वहां-वहां आपराधिक गतिविधियों में भी वृद्धि हुई हैं। उदाहरण स्वरुप सरस्वती पूजा के दौरान गोलियां चलने की घटना हुई और श्रीरामनवमी और शिवरात्रि के दौरान दंगे भी हो चुके हैं। राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध 31% बढ़े हैं वहीं आदिवासियों के ख़िलाफ़ अपराध में 12% वृद्धि हुई हैं। रेप के मामलों में भी इज़ाफ़ा हुआ है। साल 2020 में एक 16 साल की लड़की के साथ 9 लोगों ने रेप किया था। 2020 में ही 35 साल की आदिवासी महिला से 17 लोगों ने रेप किया साथ ही 2022 में देवघर में 15 साल की लड़की से रेप की घटना हुई।

चुनाव नजदीक आने के साथ, मतदाताओं के लिए एक जिम्मेदार सरकार चुनना महत्वपूर्ण है। प्रभावी समाधान के बिना, भविष्य में ये मुद्दे हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं।

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