इन दिनों चुनावों का समय है, स्पष्ट है कि चुनावों के समय नेता कुछ अतिरिक्त संवेदनशील हो जाते हैं। वह बहुत कुछ करना चाहते है, बहुत कुछ कहना चाहते हैं और न जाने कितने दावों को अपने पक्ष में करके बैठ जाते हैं। कभी झूठा विवाद भी करते हैं, छोटे छोटे मुद्दों को बड़ा बनाते हैं, परन्तु असली मुद्दों पर मौन रह जाते हैं।
ऐसा ही एक प्रकरण हुआ उत्तर प्रदेश में। वैसे तो अभी उत्तर प्रदेश में चुनाव दूर हैं, परन्तु यहाँ पर चुनावी माहौल न जाने कब से बना हुआ है। कांग्रेस यहाँ पर पूरा जोर लगा रही है। फिर भी यह मामला दूसरे ऐसे प्रदेश का है जहाँ पर चुनाव होने वाले हैं। अर्थात केरल का। केरल में चुनावों में जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस के युवराज अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना करने के साथ साथ केंद्र सरकार की भी एक मामले में आलोचना कर दी। हाँ, हालांकि इस मामले में भी उनका दोहरा मापदंड दिखाई दिया।
घटना इस प्रकार थी कि दिल्ली से राउरकेला जा रही चार ननों के विषय में यह खबर आई कि वह धर्मांतरण के लिए जा रही हैं और उनके साथ कुछ बच्चियां भी हैं। और उन्हें झाँसी पर उतार लिया गया था और पूछताछ के बाद उन्हें जाने दिया गया। झाँसी के अधिकारियों ने कहा कि उन्हें यह शिकायत मिली थी कि वह धर्मान्तरण करने के लिए जा रही थीं, अत: उनके साथ पूछताछ की गयी और फिर कुछ आपत्तिजनक न पाए जाने पर उन्हें अगली ट्रेन से रवाना कर दिया गया।
यह शिकायत एक कथा-कथित बजरंग दल कार्यकर्ता द्वारा की गयी थी, और इसी घटना पर न केवल कांग्रेस बल्कि भाजपा भी तेवर दिखा रही है और इस घटना की आलोचना कर रही है। इसी के साथ सबसे हास्यास्पद है केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल द्वारा इस घटना की निंदा किया जाना। कोची में एक बिशप द्वारा जारी किए गए एक वक्तव्य में यह कहा गया है कि धार्मिक व्यक्तियों के एक समूह को बिना किसी कारण के हिरासत में लिया गया और उन्होंने केरल राज्य सरकार से भी इस घटना का संज्ञान लेने के लिए कहा क्योंकि सभी नन केरल की थीं। इसी के साथ वक्तव्य में उन्होंने कहा कि इन धार्मिक व्यक्तियों को कुछ लोगों द्वारा अपशब्द कहे गए।
और इस मामले में केरल के मुख्यमंत्री के साथ साथ कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी कूद लिए और राहुल गाँधी ने हमेशा की तरह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को ‘विषैली विचारधारा’ का दोषी ठहरा दिया और इतना ही नहीं संघ को ‘महिला विरोधी’ ठहरा दिया। ठीक है, अगर किसी बजरंग दल के कार्यकर्ता की शिकायत पर यह कदम उठाए गए थे, तो भी सरकारी अधिकारियों के अनुसार उन्हें पूछताछ के बाद ससम्मान जाने दिया गया। परन्तु राहुल गाँधी ने ट्वीट करके कहा कि चूंकि संघ महिलाओं का आदर नहीं करता है, इसलिए वह अब संघ परिवार नाम का शब्द प्रयोग नहीं करेंगे क्योंकि परिवार में तो महिलाएं भी होती हैं।
अगर हम मान लें की इस घटना की निंदा बनती है, परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब पालघर में दो साधुओं को भीड़ द्वारा घेर कर मारा जा रहा था, वह भी पुलिस की उपस्थ्तिति में, तब यह कहकर कुछ लोगों ने उस लिंचिंग का बचाव किया था कि लोगों को यह संदेह हो गया था कि यह लोग धर्म प्रचार करने के लिए आए थे या फिर बच्चों का अपहरण करने। जब साधुओं को इतनी बुरी तरह पीट कर मारा जा रहा था, तब राहुल गाँधी ने एक शब्द भी कहा हो, याद नहीं आता। जहाँ पर उनकी खुद की सरकार थी, महाराष्ट्र में, वह बिलकुल भी नहीं बोले।
चलिए वहाँ तो हिन्दू साधुओं की बात थी, राहुल गाँधी द्वारा ईसाई ननों के लिए दिखाया जा रहा प्रेम तो और भी नकली है क्योंकि केरल में पादरियों द्वारा ननों के साथ किए जाने वाले यौन शोषण बहुत आम हैं और जरा सा गूगल करते ही मिल जाएंगे, मगर उसमें राहुल गाँधी नहीं बोलते। हाल ही में सिस्टर अभया वाले मामले पर निर्णय आया था, मगर उस निर्णय पर भी राहुल गाँधी जी का कोई ट्वीट आया हो यह याद नहीं। बल्कि उसमें तो दोषी पादरी के साथ ही चर्च और सारी व्यवस्था आ गयी थी। वह मामला तो धर्म और शासन व्यवस्था के घालमेल का अत्यंत घातक मामला था, जिसने कई प्रश्न उठाए थे, परन्तु राहुल गाँधी का कोई ट्वीट आया हो, यह स्मरण नहीं है।
इतना ही नहीं राहुल गाँधी और चर्च आज तक बिशप फ्रैंको मुलक्कल के खिलाफ भी नहीं बोले हैं। जो न केवल नन के यौन उत्पीडन के आरोपी हैं बल्कि इसके साथ ही जिन जिन ननों ने पीड़ित नन का साथ दिया, उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर अभियान चलाने के भी आरोपी है। इस मामले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था, परन्तु कांग्रेस ने इस घटना का विरोध किया हो, या फ्रैंको मुल्क्कल के खिलाफ कुछ कहा हो याद नहीं आता।
तो क्या यह समझा जाए कि राहुल गाँधी और चर्च का गुस्सा केवल इसलिए है कि यह मामला एक योगी के राज्य में हुआ, यदि उनके राज्य में नन की हत्या भी हो जाए, या यौन शोषण होता रहे तो वह नहीं बोलेंगे। या फिर उनके राज्य में साधुओं को पुलिस के संरक्षण में मार दिया जाए, वह नहीं बोलेंगे?
जनता इन दोहरे मापदंडों को समझती है और अपने अनुसार उत्तर देना जानती है। परन्तु इस मामले में केंद्र तथा राज्य सरकार का रक्षात्मक हो जाना भी हैरानी व्यक्त करता है।
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