कांग्रेसियों का पाकिस्तानी प्रेम या कहें मुस्लिम प्रेम बहुत अधिक है और वह गाहे बगाहे दिखता रहता है। वह बात दूसरी है कि पाकिस्तानी उन्हें किस रूप में देखते हैं। यह देखा गया है कि मुस्लिम और विशेषकर पाकिस्तानियों के प्रति भारत के नेताओं के हृदय में बहुत प्रेम उमड़ता है। वह जैसे पाकिस्तान के नेताओं से ही प्रमाणपत्र चाहते रहते हैं। विशेषकर वर्तमान में विपक्ष अर्थात कांग्रेस एवं वामपंथी नेताओं के साथ साथ कथित बुद्धिजीवियों का झुकाव भी पाकिस्तान की ओर रहता है।
परन्तु वह क्या सोचते हैं? वह कांग्रेसियों को, वामपंथियों को किस दृष्टि से देखते हैं, यह भी देखना महत्वपूर्ण है। क्या वह हमें एक भारतीय की दृष्टि से देखते हैंया फिर वह हमें हिन्दू के रूप में देखते हैं या फिर वह हमें हीन मानते हुए देखते हैं। और क्या उनकी दृष्टि में अमीर हिन्दू और गरीब हिन्दू अलग अलग हैं? या एक समान है?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर पाकिस्तान की एक सांसद फराह आगा के एक वाक्य से मिलते हैं। जिन इंदिरा गांधी का आदर राजनीतिक लाइन से परे जाकर लगभग हर भारतीय करता है, उन इंदिरा गांघी को पाकिस्तान की एक सांसद ने यह कहते हुए नकार दिया कि “आप इंदिरा गांधी से तुलना कैसे कर सकते हैं? वह एक हिन्दू है, जो असली मजहब का पालन नहीं करती है!”
वह एंकर से कहती हैं कि आप मिसाले सहीं दिया करें! आप उनसे कैसे मिला सकते हैं जिन्हें यह पता ही नहीं है कि मजहब क्या है?”
अर्थात, जिन इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को परास्त किया, उसे धुल चटाई, वह इंदिरा गांधी केवल इसलिए उनके लिए महान नहीं हैं, क्योंकि वह हिन्दू हैं! वह इसलिए नहीं इंदिरा गांधी को नकार रही है कि इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को परास्त किया था, बल्कि उन्होंने इसलिए नकारा क्योंकि इंदिरा गांधी एक हिन्दू हैं!
मुस्लिमों के एलीट सर्कल या कहें कुलीन वर्ग में “हिन्दू” शब्द किसी गाली से कम नहीं है और यह पीड़ा भारत में पसमांदा आन्दोलन से जुड़े डॉ। फैयाज़ भी बार बार व्यक्त करते हैं। वह गाहे बगाहे यह कहते हुए देखे जा सकते हैं कि भारत से जुड़े हुए मुसलमानों को अशराफ वर्ग यह कहते हुए अलग कर देता है कि वह लोग तो हिन्दू जैसे हैं!
उनके भीतर जो हीनता से भरा हुआ श्रेष्ठता बोध है, वह उन्हें सबसे अलग होने का झूठा अहसास देता है और उनका यह विश्वास कि केवल मुस्लिम ही जन्नत में जा सकता है, उन्हें पूरी तरह से एक ऐसे भ्रम के संसार में ले जाकर खड़ा कर देता है, जहाँ पर वह अपनी इसी झूठी श्रेष्ठता से भरे रहते हैं, फिर चाहे कोई इनके देश के टुकड़े कर दे!
भारत में भी कई ऐसे कई मुस्लिम हैं, जो इसी श्रेष्ठता ग्रंथि से भरे हुए हैं। जैसे जाकिर हुसैन! जो बार बार यह कहता है कि जन्नत केवल मुस्लिमों के लिए है। उसके अनुसार जो गैर हिन्दू मुसलमानों के लिए लिखते हैं, या उनका पक्ष लेते हैं, वह भी जन्नत में नहीं जा सकते हैं। और कलीम सिद्दीकी तो केवल जन्नत का लालच देकर ही मुस्लिम बनाता था।
यह लोग हिन्दुओं से इसीलिए खुद को श्रेष्ठ मानते हैं क्योंकि इन्हें जन्नत नसीब होगी।
मौलाना सिद्दीकी का यह वीडियो एक बार फिर से देखने की आवश्यकता है:
खैर, भारत में यदि यह हाल है तो पाकिस्तान के एलीट वर्ग का क्या हाल होगा? यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है। कुछ वर्ष पहले पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने एक सार्वजनिक भाषण में हिन्दुओं के लिए घृणा दिखाते हुए कहा था कि वह उस कौम का नाम भी नहीं लेना चाहते हैं।
हिन्दुओं के प्रति घृणा अभी हाल ही में क्रिकेट के विश्वकप के दौरान देखने को मिली थी जब पकिस्तान की टीम ने भारत की टीम को परास्त किया था। पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के महान खिलाड़ी वकार यूनुस ने यह टिप्पणी की थी उन्हें यह देखकर बहुत आनंद आया था जब रिजवान ने हिन्दुओं के सामने नमाज पढ़ी थी।
दरअसल देश के विभाजन का आधार ही यही था कि मुस्लिम दारुल-हर्ब में नहीं रह सकते हैं। उन्हें दारुल-इस्लाम में रहना है। डॉ. भीमराव आंबेडकर अपनी पुस्तक ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ के पृष्ठ सँख्या 293 पर लिखते हैं कि “मुस्लिमों के क़ानून के अनुसार यह दुनिया दो भागों में बंटी हुई है, दारुल इस्लाम अर्थात इस्लाम का घर और दारुल हर्ब अर्थात युद्ध का घर। दारुल इस्लाम का अर्थ है जिस पर मुस्लिम ही शासन करें और दारुल हर्ब का अर्थ, वहां मुस्लिम रह तो सकते हैं, पर शासक नहीं हैं। तो भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की मातृभूमि नहीं हो सकती है। यह केवल मुस्लिमों की ही भूमि हो सकती है, मगर यह ऐसी जमीन नहीं हो सकती है जिसमें हिन्दू और मुस्लमान समान रूप से रह सकें। और यह मुसलमानों की जमीन तभी हो सकती है, जब इस पर मुसलमान ही शासन करें। जिस दिन कोई गैर मुस्लिम शासन करेगा वह मुस्लिमों की जमीन नहीं रहेगी और यह दारुल इस्लाम के बजाय दारुल हर्ब हो जाएगी।”
इसलिए यह घृणा गहरी है, इतनी गहरी है कि इस घृणा के चलते वह भारत में अपने पसमांदा भाइयों को ही नकार देते हैं।
जो पाकिस्तान की सांसद ने स्पष्ट बोला है वह यहाँ पर भी बोला जाता है, जैसा डॉ भीमराव अंबेडकर ने भी लिखा है कि इसके कारण क्या हैं!