त्रिपुरा में स्थानीय निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने विजय का परचम लहरा दिया है। और 334 में से 329 सीटें जीत ली हैं। मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने जनता का आभार व्यक्त किया है, कि उन्होंने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में विश्वास व्यक्त किया।
वैसे तो स्थानीय चुनाव चर्चा का विषय नहीं होते हैं, परन्तु त्रिपुरा में स्थानीय चुनाव दो कारणों से रोचक हो गए थे और चर्चा में आए थे। पश्चिम बंगाल में विधानसभा में हुए चुनावों के बाद हुई हिंसा में तृणमूल कांग्रेस का जो हाथ था, वह सभी ने देखा था और जिस प्रकार भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता मारे गए थे, हिन्दुओं पर हमला हुआ था, वह देखकर हर कोई हतप्रभ था। परन्तु उच्चतम न्यायालय ने संज्ञान नहीं लिया था और 25 मई को जाकर अंतत: उन मामलों की सुनवाई हो पाई थी।
परन्तु त्रिपुरा के स्थानीय चुनावों में वही तृणमूल कांग्रेस, जिसके कार्यकर्ता भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को जीने तक का अधिकार नहीं देना चाहते हैं, उच्चतम न्यायालय इसलिए पहुँच गयी थी कि त्रिपुरा में निष्पक्ष चुनाव नहीं हो सकते हैं। इसलिए चुनाव रद्द कर दिए जाएं। परन्तु उच्चतम न्यायालय ने यह याचिका खारिज करते हुए यह कहा था कि यह अंतिम उपाय होता है।
परन्तु उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि संवेदनशील इलाकों में अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की समीक्षा करने का निर्देश दिया और चेतावनी दी कि यदि निर्देशों का अनुपालन नहीं किया गया तो कठोर कार्रवाई की जाएगी।
इतना ही नहीं विरोधी दलों के कार्यकर्ताओं पर हिंसा करने वाली तृणमूल कांग्रेस ने यह आरोप लगाया कि चुनाव लड़ रहे राजनीतिक समूह उन्हें निशाना बना रहे हैं।
इससे पहले भी हाई वोल्टेज ड्रामा इन चुनावों में देखा गया था, जब तृणमूल कांग्रेस की युवा नेता सायानी घोष को त्रिपुरा पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। इस पर तृणमूल कांग्रेस ने त्रिपुरा से लेकर दिल्ली तक हंगामा मचा दिया था, जबकि मामला यह था कि सायानी घोष ने मुख्यमंत्री बिप्लब देब की एक नुक्कड़ सभा को बाधित किया था, और “खेला होबे” का नारा लगाया था।
क्या था खेला होबे!
पश्चिम बंगाल में खेला होबे का नारा सभी को याद होगा। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खेला होबे का नारा दिया था और फिर चुनाव जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ हिंसा की थी। खेला होबे, जैसे प्रतिशोध के एक प्रतीक के रूप में उभरा था।
इतना ही नहीं ममता बनर्जी ने चुनाव जीतने के कुछ महीनों के बाद खेला होबे दिवस भी मनाने का निर्णय लिया था और वह दिवस उन्होंने मनाया था 16 अगस्त को। यह दिन वही दिन था, जब डायरेक्ट एक्शन डे अर्थात ग्रेट बंगाल किलिंग हुई थी।
त्रिपुरा चुनावों में कांग्रेस हुई साफ
त्रिपुरा स्थानीय चुनावों में कांग्रेस एकदम साफ़ ही हो गयी है। यह नहीं भूलना चाहिए कि यह राहुल गांधी ही थे जिन्होनें त्रिपुरा के हिन्दुओं को हिंसा के लिए दोषी ठहरा दिया था, वह भी उस मामले में जो हिन्दुओं ने किया ही नहीं था।
त्रिपुरा पुलिस ने जबकि इसे पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि कोई भी हिंसा नहीं हुई थी और अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ उचित कदम उठाया जाएगा
फिर भी एजेंडा चलाने वाले मीडियाहाउस ने अपना एजेंडा चलाना चालू रखा था और झूठी एजेंडावादी समाचार चलाए थे। इसी आरोप में महिला पत्रकारों पर भी यह आरोप था कि उन्होंने सोशल मीडिया पर हिन्दुओं के खिलाफ वीडियो साझा किए थे, और भड़काऊ वीडियो साझा किए थे। इसी कारण उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था!
न्यायालय ने हालाँकि उन्हें जमानत दे दी थी, परन्तु यह भी टिप्पणी की थी कि यह अपराध गंभीर प्रवृत्ति के हैं, परन्तु इसके लिए आरोपी को हिरासत में रखना आवश्यक नहीं है।
त्रिपुरा जल रहा है। ऐसे ट्वीट करवाए गए थे और एक ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास किया गया था, जैसे त्रिपुरा में मुस्लिमों के साथ हिंसा हो रही है। और हिन्दू ही मारने वाले हैं।
आज जब चुनाव परिणाम आ गए हैं, तो क्या यह समझा जाए कि इस दुष्प्रचार पर रोक लगेगी या फिर हिन्दू और मुस्लिम की खाई यह राजनेता और चौड़ी करेंगे? यह देखना होगा!
फिलहाल तो त्रिपुरा की जनता ने इस हिंसा का और दुष्प्रचार का उत्तर दे दिया है। भारतीय जनता पार्टी के नेता अमित मालवीय ने ट्वीट करते हुए कहा कि तृणमूल कांग्रेस को अभी और झटके लगने हैं: