क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक ऐसी महिला जिन्होनें लाखों महिलाओं का उपचार किया, जिन्होनें पचास से अधिक पुस्तकें लिखीं एवं जिन्होनें चार पत्रिकाओं का सम्पादन किया, और वह भी उस समय जब परिवेश भारतीय एवं हिन्दू दृष्टिकोण वाली महिलाओं के एकदम विरुद्ध था, औपनिवेशवाद के चलते मात्र उन्हीं महिलाओं की उपलब्धियों को उपलब्धियां माना जा रहा था, जो हिन्दू धर्म के विरुद्ध विष उगलती थीं, फिर भी उन का नाम तो क्या उनकी तस्वीर तक कथित आधुनिक स्त्री विमर्श का हिस्सा नहीं है?
हम बात कर रहे हैं, आधुनिक काल में स्त्री विमर्श की सबसे बड़ी पुरोधा वैद्य यशोदा देवी की! यशोदा देवी कौन हैं? क्योंकि जब हम यशोदा देवी का नाम लेते हैं, तो कोई भी तस्वीर मस्तिष्क में आकार नहीं लेती है, यहाँ तक कि शब्दचित्र भी नहीं बनते हैं? वह इसलिए क्योंकि उनका नाम विमर्श में है ही नहीं! जब आज हम नवरात्र का उत्सव, स्त्री शक्ति का उत्सव मना रहे हैं, तो क्या हमें प्रयागराज की यशोदादेवी को स्मरण नहीं करना चाहिए, जो “वामपंथी” फेमिनिज्म के हर षड्यंत्र का तोड़ अपनी पुस्तकों के माध्यम से प्रस्तुत करती हैं?
हमने उनका परिचय बार बार अपने लेखों में दिया है। वह उस समय महिलाओं की आयुर्वेदिक चिकित्सा किया करती थीं, जब अंग्रेजी सरकार ने आयुर्वेद को नष्ट करने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रखा था। वर्ष 1908 में उन्होंने इलाहाबाद (प्रयागराज) में एक स्त्री चिकित्सालय आरम्भ किया था।
और उन्होंने स्त्री की उन समस्याओं पर बात करनी आरम्भ की थी, जिसे लेकर आज वामपंथी फेमिनिज्म यह कहता है कि लड़कियों के उन विषयों पर बात नहीं होती। यशोदा देवी ने सुखमय वैवाहिक जीवन को आयुर्वेद से जोड़ते हुए धर्म, पुण्य, कर्म आदि सभी कारकों को महत्वपूर्ण बताया था। उन्होंने बताया कि जिस संतुष्टि की तलाश में पुरुष रहते हैं, या स्त्रियों को बरगलाया जा रहा है, उसका क्षेत्र बहुत विशाल है।
यशोदा देवी ने अपनी पुस्तक विवाह विज्ञान में योग्य जोड़ों एवं योग्य सन्तान पर बात की। इसके साथ ही उन्होंने उन बातों को भी “संतुष्टि” के लिए आवश्यक बताया है, जिन्हें आज पिछड़ा समझकर त्याग दिया जाता है। उन्होंने दापत्तय जीवन में कलह के कारण बताते हुए लिखा है कि
“दाम्पत्य कलक का मुख्य कारण पति पत्नी का सम्बन्ध उचित न होना ही है। जोड़ा ठीक मिलाने के लिए ही हमरे देश में जन्म पत्र आदि मिलाने की बहुत पुरानी प्रथा है क्योंकि जन्म पत्र से किस नक्षत्र में उत्पन्न होने से स्त्री पुरुष की क्या प्रकृति होती है, आदि का पता चलता है। यदि जन्म पत्र शुद्ध ठीक ठीक जन्म के समय से बनी हो तो ग्रह, सूर्य, चंद्रमा, लग्न राशि आदि के मिलान से सब बातों का पता चल जाता है!”
यशोदा देवी “संतुष्टि” के खेल के मूल कारणों पर बात करती हैं। जिन्हें लेकर वामपंथी वितंडा करते हैं, एवं हिन्दू महिलाओं को भ्रमित करते हैं। मैंने इसलिए हिन्दू महिलाओं की बात की, क्योंकि कथित वामपंथ एवं अंग्रेजी शिक्षा का असली निशाना मात्र हिन्दू और उस पर भी हिन्दू महिलाएं हैं, क्योंकि हिन्दू परिवारों को ही अंग्रेजी शिक्षा तक सीमित कर दिया गया है, उनके लिए आधुनिकता का अर्थ मात्र “पश्चिमीकरण का बेहूदा अन्धानुकरण” होकर रह गया है।
इसके विषय में न केवल सीएफ एंड्रूज़ ने लिखा है, बल्कि रिचर्ड टेम्पल भी अपनी पुस्तक मेन एंड इवेंट्स ऑफ माई टाइम इन इंडिया में लिखते हैं। जहां सीएफ एंड्रूज़ इस बात को खुलकर कहते हैं कि अंग्रेजी शिक्षा जो सिविलाइज़ेशन की बात करती है, वह सेक्युलर ही नहीं है, बल्कि वह ईसाई रिलिजन में रची बसी है। अंग्रेजी साहित्य, अंग्रेजी इतिहास एवं अर्थशास्त्र, अंग्रेजी दर्शन में जीवन की आवश्यक ईसाई अवधारणाएं हैं, क्योंकि वह जहां आकार ले रही थीं, वहां पर ईसाई रिलिजन ही प्रचलन में था।”
यह बात पूरी तरह से सत्य है कि जैसे जैसे शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होता गया, वैसे वैसे हिन्दू पुरुष एवं स्त्री अपनी संस्कृत की जड़ों से दूर होते गए। अंग्रेजी शिक्षा का प्रभाव हिन्दुओं पर ही अधिक पड़ा क्योंकि यशोदा देवी भी इस बात को कहती हैं कि यदि उन नियमों का पालन करते हुए स्त्री एवं पुरुष सम्बन्ध बनाएं, जो हमारे ऋषियों ने बताए हैं, तो वह स्वयं भी निरोगी रहेंगे एवं उनकी संतान भी निरोगी होगी।
वह लिखती हैं कि
“जैसे जैसे योग्य जोड़े का मेल मिलाना ढकोसला समझकर लोगों ने परवाह करनी छोड़ दी जितनी ऋषियों ने बतलाई है, तभी से स्त्री पुरुषों में कलह का आरम्भ हुआ। इस जमाने में यदि पता लगाया जाए तो सैकड़ा पीछे पचानवे घर ऐसे मिलेंगे जिनमें पति पत्नी में कलह रहती है, और पति से अप्रसन्न रहने के कारण पत्नी घर के सभी स्त्री पुरुषों, सास ससुर आदि से झगड़ा मचाए रहती हैं। सासें भी ऐसा ही व्यवहार करती हैं!”
जिस काल खंड को लेकर लड़कियों के विषय में यह अफवाहे फैलाई जा रही हैं कि लड़कियों को अपनी देह ही आवश्यकताएँ पूरी करने का अधिकार नहीं था और लड़कियों के समस्त जीवन को मात्र देह तक ही सीमित करने का जो षड्यंत्र वामपंथियों ने चलाया, या कहें कथित “अंग्रेजी” शिक्षा ने चलाया, उस समय यशोदा देवी यह बता रही थीं कि पति और पत्नी को अपने जीवन में सुख के लिए कमरे तक की स्थिति कैसी रखनी चाहिए!
अर्थात हिन्दू आयुर्वेद कितनी सूक्ष्मताओं तक पर बात करता है, यह स्वयं में हैरान करने वाली बात है। फिर भी आयुर्वेद और हिन्दू धर्म को पिछड़ा घोषित कर दिया है।
यशोदा देवी एक बहुत बड़ी बात लिखती हैं, जिसे आज सबसे अधिक समझने की आवश्यकता है। वह लिखती हैं कि
“स्त्री को योग्य अथवा अयोग्य बनाने वाले पुरुष ही हैं। बाल्यावस्था में मातपिता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि लडकियां गन्दी पुस्तके न पढने पाएं, तथा दुष्ट लड़के लड़कियों के साथ न रहने पाएं। आज कल तो लडकियां लड़कों के साथ पढ़ा करती हैं एवं स्वतंत्र होती जाती हैं, इन्हीं कारणों ऋतु धर्म का कुछ भी नियम नहीं रहा है।”
परन्तु जो बात यशोदा देवी कह रही हैं कि स्त्री को योग्य अथवा अयोग्य बनाने वाले पुरुष ही हैं, और मातापिता को चाहिए कि लडकियां गन्दी पुस्तकें न पढ़ें तो ऐसे में रिचर्ड टेम्पल जो अपनी पुस्तक मेन एंड इवेंट्स ऑफ माई टाइम इन इंडिया में लिखते हैं, उसे पढने की आवश्यकता है कि
“पश्चिमी शिक्षा ने मुस्लिमों को प्रभावित नहीं किया है। इसने हिन्दू धर्म या ब्राह्मण धर्म को विकृत कर दिया है। और यह सब हिन्दुओं के शिक्षित वर्ग में हुआ है, आम लोगों में नहीं! शिक्षित हिन्दू अपने हिन्दू धर्म से तो विमुख हो गया है, मगर वह अधार्मिक नहीं हुआ है, और वह प्राचीन हिन्दू धर्म को छोड़ रहा है और किसी और प्रकार की आस्तिकता की ओर जा रहा है!”
यशोदा देवी का गुम होना उसी मानसिक गुलामी का संकेत देता है, जो हमारे भीतर अंग्रेजी शिक्षा ने भर दी है! अंग्रेजी भाषा का विरोध नहीं हो सकता है, क्योंकि बातचीत के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है, परन्तु समूची शिक्षा ही हिन्दू मूल्यों को पिछड़ा बताकर अंग्रेजी दृष्टिकोण से दी जाने लगे, समस्या यहाँ पर है और उसके वशीभूत होकर हमारी चिकित्सा, हमारा इतिहास, हमारा खानपान सब कुछ वहां का हो जाए जो हमारा है ही नहीं तो शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक समस्याओं का भी इतना बड़ा ढेर लग जाएगा कि हम चाहकर भी सत्य को खोज नहीं पाएंगे!
यशोदा देवी आहार की महत्ता भी बताती हैं और लिखती हैं कि
“जो मनुष्य सदैव आरोग्य रहना चाहें , उनकी आरोग्यता के लिए हमारे प्राचीन ऋषियों ने आहार विहार के नियम बना दिए हैं। जब से इस बात का लोगों को ध्यान नहीं रहा, तब से देश में अनेक रोगों ने डेरा जमा लिया और लोग देश का आहार विहार छोड़कर विदेशी आहार विहार का अभ्यास करने लगे। आहर विहार सदैव अपनी ही जन्मभूमि का आरोग्यता के लिए हितकर होता है, उस के विरुद्ध चलने से अनेक रोगों की उत्पत्ति होती है। यही ऋषियों ने बताया है!”
यही बातें यशोदा देवी को विस्मृत बनाए रखने के लिए पर्याप्त हैं, क्योंकि वह स्थानीयता की बात करती हैं, वह ऋषियों की बात करती हैं, वह उन मूल्यों की बात करती हैं, जिन्हें तोड़ना आज आधुनिकता का प्रतीक है!
मूल्यों का प्रचार करने वाली यशोदा विस्मृत है और हमारी बेटियों को स्त्री विमर्श में कमला दास को पढ़ाया जाता है, जो बाद में सुरैया बन गयी थीं!
और फिर हम स्वयं से ही एक मासूम प्रश्न पूछते हैं कि हमारी लडकियां काले बुर्के में क्यों जा रही हैं? प्रश्न हम सभी से है कि क्या वास्तव में हम इस प्रश्न के अधिकारी भी हैं? क्योंकि लड़कियों को “वामपंथी और जिहादी” फेमिनिज्म की ओर धकेलता कौन है? कभी इसका उत्तर स्वयं से पूछिएगा!नवरात्र पर विमर्श के इस युद्ध में शत्रुओं को समझकर वार करना आना ही चाहिए!
महत्वपूर्ण मुद्दा। जब तक वामपंथी ईकोसिस्टम ही धीरे धीरे समाप्त नहीं होगा तब तक हमारी संस्कृति और गौरवशाली इतिहास को हम पुनर्स्थापित कैसे कर पायेंगे। समानांतर रुप से चलने चाहिए दोनों।
पहले से कम हुआ है वामपंथी इतिहासकारों का दुष्प्रचार, पर बहुत काम किया जाना बाकी है। नई शिक्षा नीति से महत्वपूर्ण परिणाम सामने आयेंगे, ऐसी आशा करनी ही होगी।