अभिनेत्री कंगना रनाउत ने कल महात्मा गांधी को लेकर अब एक बयान दे दिया है। उन्होंने अपनी इन्स्टाग्राम पोस्ट के माध्यम से कहा था कि आप नेता जी या सुभाष चन्द्र दोनों के समर्थक नहीं हो सकते। इस पर लोगों को आपत्ति हुई। और कंगना ने यह भी कहा कि एक गाल पर थप्पड़ मारने के बाद दूसरा गाल आगे करने से आजादी नहीं मिलती है, भीख मिलती है।
अभी तक कंगना केवल कुछ ही लोगों के निशाने पर थीं, पर अब महात्मा गांधी और नेता जी पर प्रश्न उठाने पर कंगना एक अत्यंत वृहद समूह के निशाने पर आ गयी है। यह इस देश का दुर्भाग्य है कि इस देश में आलोचना के नाम पर प्रभु श्री राम की आलोचना ही नहीं हो सकती है बल्कि साथ ही उन पर हर प्रकार का दोषारोपण किया जा सकता है और वह भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का झंडा उठाने वाले उन सभी लोगों द्वारा, जो कुछ लोगों की आलोचना को गुनाह मानते हैं और प्रभु श्री राम से लेकर माता सीता को अपमानित कर सकते हैं और उनके समानांतर असुरों की सत्ता को महान बता सकते हैं।
आज जब कंगना द्वारा महात्मा गांधी की कथित आलोचना पर लोग विरोध कर रहे हैं, तो आइये हाल ही में आई कुछ और पुस्तकों पर बात करते हैं।
वामपंथी विचारों वाली अरुंधती राय ने अपनी पुस्तक “एक था डॉक्टर, एक था संत” में गांधी जी पर कई प्रश्न उठाए हैं और आम्बेडकर के साथ तुलना की है। और जो बात कांग्रेस के विषय में कंगना ने कही थी, उससे भी कहीं अधिक अरुंधती राय ने कांग्रेस के विषय में आम्बेडकर के हवाले से लिखा है। उन्होंने लिखा कि “आम्बेडकर ने कहा “यह बेवकूफी होगी यदि ऐसा मान लिया जाए कि चूंकि कांग्रेस भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ रही है, इसलिए वह भारत के लोगों की स्वतंत्रता के लिए भी लड़ रही है तथा छोटे से छोटे व्यक्ति की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रही है। कांग्रेस स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रही है, यह सवाल इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना यह सवाल अहम् है कि कांग्रेस किन लोगों की लड़ाई लड़ रही है।”
उनकी इस पुस्तक के अंशों को स्त्रीकाल ने भी प्रकाशित किया है और उसमें अरुंधती रॉय द्वारा की गयी आलोचना को भी लिखा है। और उन्होंने महात्मा गांधी को पूंजीवाद का समर्थक बता दिया है।
अरुंधती राय ने गांधी के प्रयोगों के विषय में कहा कि “गांधी की निपुणता इसी बात में थी कि उन्होंने इस मोस्ख की पारलौकिक खोज को सांसारिक सियासी मकसद से जोड़ दिया।”
और उन्होंने गांधी जी को ऐसे व्यक्ति के रूप में दिखाया है जो स्त्रियों को एक व्यक्ति के रूप में नहीं बल्कि एक श्रेणी या वर्ग के रूप में देखते थे।
आज वामपंथी विचार वाले लेखक और आलोचक या पत्रकार महात्मा गांधी की आलोचना को लेकर कंगना पर टूट पड़े हैं। परन्तु यह भी सत्य है कि वामपंथियों ने सदा ही महात्मा गांधी का विरोध किया था। और यह विरोध उन्होंने किसलिए किया था, यह जानना आवश्यक है। एम एन रॉय, जिनके विचारों से जवाहर लाल नेहरू बहुत प्रभावित थे, वह महात्मा गांधी के विरोधी थे।
यहाँ तक कि जवाहर लाल नेहरू भी महात्मा गांधी के खादी और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के विरोध में थे। “कहानी कम्युनिस्टों की” पुस्तक में पत्रकार और लेखक संदीप देव ने इस पूरे जाल के विषय में लिखा है कि
“मास्को से लौटकर नेहरू सीधे कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन पहुंचे और वहां गांधी की अनुपस्थिति में क्रेमलिन से लाए कई समाजवादी प्रस्तावों को पेश किया था। महात्मा गांधी पंडित नेहरू से बहुत नाराज हुए थे और उन्होंने कहा था कि वह परेशानियां पैदा करने वाले गुंडों को प्रोत्साहित कर रहे हैं।”
फिर उन्होंने लिखा है कि महात्मा गांधी ने “यंग इंडिया” में स्वाधीनता बनाम स्वराज्य लेख में नेहरू को सार्वजनिक फटकार लगाई थी। और इससे तिलमिलाए नेहरू ने सारी मर्यादाओं को लांघकर गांधी के विचारों और उनकी नीतियों पर ही सवाल खड़ा कर दिया था।
जिस खादी पर कांग्रेस अपना कॉपीराईट मानती है, और जो महात्मा गांधी के अनुसार भारतीयों का प्रतीक था, उसके लिए जवाहर लाल नेहरू ने लिखा था “खादी अपनी जगह बिलकुल ठीक है, पर उन्हें यह नहीं दिखाई देता कि इसके सह्रारे आजादी कैसे आ जाएगी?”
गांधी जी ने एक बड़ा और लम्बा पत्र लिखकर नेहरू जी से कहा था कि यदि तुम्हें मुझसे कोई स्वतंत्रता चाहिए तो तुमको और तुम्हारी वर्षों से की हुई विनम्र और प्रश्नविहीन निष्ठा से मुक्त करता हूँ”
ऐसी कई घटनाएं कई पुस्तकों में दर्ज हैं।
क्या यह महात्मा गांधी का अपमान नहीं है?
और एम एन राय तो महात्मा गांधी के घनघोर विरोधी थे, इतने कि वह कांग्रेस के साथ तो जुड़े पर वह गांधी जी के साथ नहीं जुड़ सके क्योंकि वह गांधी जी के रामराज्य के विचार के विरोध में थे।
आज जिन महात्मा गांधी के नाम पर कंगना को गाली देने के लिए वामपंथी आगे आ रहे हैं, वह अपना इतिहास नहीं देख रहे हैं कि उन्होंने गांधी जी के विषय में क्या कहा था, न ही कांग्रेस देख रही है कि जवाहर लाल नेहरू ने तो ग्राम स्वराज्य की पूरी अवधारणा को ही नष्ट कर दिया और आंबेडकरवादी तो गांधी जी को “हिन्दू सवर्ण नेता” कहते रहे थे।
पर वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी, हर कोई अपने अपने विचारों के अनुसार मत व्यक्त कर सकता है, फिर कंगना ने तो तथ्यों के आधार पर अपने विचार रखे हैं। एवं यह सत्य है कि अब समय आ गया है जब इन सब मामलों पर चर्चा होनी ही चाहिए। एवं यह प्रश्न पूछे जाने चाहिए कि “आखिर हिन्दुओं को स्वतंत्रता कब मिलेगी?” और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता इतनी एकतरफा क्यों है?