spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
25.1 C
Sringeri
Monday, October 7, 2024

युद्ध और स्त्रियाँ: एक ओर है वीर भारतीय स्त्रियाँ और दूसरी ओर रोती वामपंथी मादाएं!

अभी जब रूस और युक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है तो सोशल मीडिया और मीडिया सहित हर स्थान पर एक लेख बहुत वायरल हो रहा है कि जंग सीमाओं पर नहीं औरतों के शरीर पर भी लड़ी जाती है, जिससे मर्द अपनी हार का गुस्सा या जीत का जश्न मना सकें। और उसमें द्वितींय विश्वयुद्ध के बहाने जापानी सैनिकों को कोसा गया है कि न जाने कितने सैनिकों ने कितनी कोरियाई लड़कियों का बलात्कार किया। इस लेख में पूरी तरह से वामपंथी यौन कुंठा और उनकी यौन फेंटेसी थी। जबकि युद्ध में यदि यौन हिंसा किसी ने झेली है तो वह इस्लाम के नाम पर किए गए युद्धों में झेली गयी है। हिन्दुओं में न जाने कितनी स्त्रियों ने स्वयं को इस कारण भस्म कर लिया था, जिससे कबीलाई मानसिकता वाले लोग उन्हें छू न सकें।  उस मानसिकता के भारत में आने से पहले जौहर नामक शब्द नहीं सुना गया था।  

ncr Know the trurh of Rani Karnavati Jauhar

युद्ध किसी भी युग की सबसे बड़ी त्रासदी हैं और यह हमने महाभारत काल से लेकर हीरोशिमा और नागासाकी की विभीषिका से देखा है। यह सत्य है कि स्त्री सहज रूप से युद्ध नहीं चाहती, और जबसे कबीलाई लोग युद्ध करने आने लगे थे तब से युद्ध स्त्रियों के लिए एक ऐसी यातना बन गया था जिसके कारण जौहर जैसी कुप्रथा भारत में जन्मी। भारत में जौहर का आगमन इस्लामी आक्रान्ताओं के कारण ही हुआ था, इस बात से शायद ही कोई अनभिज्ञता दिखाए। उससे पूर्व भी युद्ध होते रहे है और तमाम शक, हूण आदि आए और भारत की संस्कृति में बस गए, क्योंकि उनके द्वारा युद्ध का उद्देश्य महज़ सीमा विस्तार ही रहा होगा, अपने धर्म को बलात थोपना और ऐसा न करने पर लाशों के ढेर लगाना उनका उद्देश्य नहीं हुआ करता था। जैसा हमने पढ़ा भी है। और इंडिका में भी मेगस्थनीज लिखता है कि भारत में युद्ध अधिकांशत: सेनाओं के ही मध्य होते थे, आम जनता को प्रभावित नहीं किया जाता था!

Dailyhunt

संभवतया यही कारण है कि भारतीय स्त्रियों में स्वभाव से शस्त्रों के प्रति कोई अरुचि नहीं दिखती है। सीता भी इतनी शक्तिशाली थीं कि उन्होंने शिव का धनुष उठा लिया था, मैंने हाल ही में पढ़ा कि वैदिक काल में व्यवसाय के कौशल की शिक्षा स्त्रियों को भी दी जाती थी ताकि वह किसी भी परिस्थिति से निबटने के लिए कार्य कर सकें।

जहां तक युद्ध न चाहने की बात है तो सीता भी युद्ध नहीं चाहती थीं, वह भी बार बार रावण से कहती थीं कि वह राम के पास उन्हें छोड़कर आए, और युद्ध तो शायद कृष्ण भी नहीं चाहते थे। परन्तु रामायण और महाभारत के युद्ध स्त्री के अपमान के कारण लड़े गए थे, उनके कारण किसी स्त्री का अपमान हुआ हो, या कहा जाए कि युद्ध में स्त्रियों को किसी प्रकार अपमानित किया गया हो, ऐसा कबीलाई संस्कृति के भारत आने से पहले दिखता नहीं है।

फिर भी स्त्री सम्पूर्ण मानव जाति का विकास चाहती है और युद्ध से हर संभव बचने का प्रयास करेगी, परन्तु जब युद्ध सामने आएगा तो वह काली भी बनेगी, लक्ष्मी बाई भी बनेगी और वह जीजाबाई भी बनेगी। वह मीरा बनकर भी जड़ परम्पराओं पर प्रहार करेगी। महिषासुर का मर्दन करने भी स्त्री ही आएंगी:

Shardiya Navratri 2020: नवरात्र में मनोरथ सिद्धि के लिए इस स्तोत्र को  पढ़ने-सुनने की है मान्यता | Jansatta

जब से इस्लामी आक्रान्ताओं ने भारत में कदम रखा उन्होंने युद्ध में जीती गयी स्त्रियों को बाज़ार में नंगा बेचना शुरू कर दिया, और यहीं से देह के आधार पर स्त्री को पराजित होने का भाव बार बार जागृत हुआ। यह भी कई स्थानों पर है कि जीती गयी स्त्रियों को और युद्ध जीतने के लिए रिश्वत के रूप में भी देने का चलन यही तहजीब लाई।

सांस्कृतिक भारत में युद्ध बहुधा आत्मरक्षा में ही लड़े जाते थे, और धर्म जो कि रिलिजन नहीं है, की स्थापना के लिए लड़े जाते थे, और सबसे बड़ी बात मूल्यों पर लड़े जाते थे। बिना मूल्य के धर्म शास्त्र सम्मत है ही नहीं।

जो सैनिक सुदूर अरब से आए उनके लिए लालच ही भारत की सम्पदा और स्त्रियाँ थीं। पश्चिम में भी स्त्रियों की आरम्भिक स्थिति बहुत भिन्न नहीं थी। उन्हें कई वर्षों तक तो मानव ही नहीं समझा गया था।  

समस्या यह है कि जब अनुवाद की परम्परा आई तब हमने हर चीज़ का स्थानीय करण कर दिया, पश्चिम की स्त्रियों और पूरब की स्त्रियों की स्थिति में जो मूल अंतर था उसे भूल कर पश्चिम की स्त्रियों की पीड़ा को ही पूरे विश्व की स्त्रियों की पीड़ा मान लिया। और अनुवाद करते करते अपनी संस्कृति को भी अनूदित चश्मे से देखने लगे। युद्ध नहीं चाहिए, यह हमारा धर्म और हमारे ग्रन्थ भी कहते हैं, परन्तु भारतीय संस्कृति में यह भी है कि अपनी मातृभूमि को बचाने के लिए शस्त्र उठाने पड़े तो उठाने में कोई समस्या नहीं है, तभी हमें आरम्भ से ही तमाम भारतीय स्त्रियाँ योद्धा के रूप में दिखती हैं।

Great Indian Mother Jijabai जीजाबाई - BehtarLife.com

एक तरफ भारत की भूमि पर अधिकाँश युद्ध जहां अपनी संस्कृति और पहचान को बचाने के लिए लड़े गए, तो उन्हें भी हम उसी चश्मे से देखने लगे, जिस चश्मे से हम वर्चस्ववादी विचारधारा द्वारा अपनी ही विचारधारा को पूरी दुनिया पर थोपे जाने की जिद्द को देखते थे।

बार बार हमें जरूरत है विचारों को समझने की, हमारी और उनकी अवधारणाओं में जो अंतर है उसे समझने की और अवधारणा को समझकर ही कुछ लिखने की। सीता को दुर्बल किसी ने नहीं दिखाया तो आखिर एक आयातित विचार के अंतर्गत लिखी गयी कविताओं में सीता को सबसे दुर्बल स्त्री बनाकर प्रस्तुत कर दिया गया, जो कि आजतक की पूरे विश्व की सबसे शक्तिशाली स्त्री हैं।

आज भी भारत में स्त्रियाँ पुलिस में हैं, सेना में हैं। देश के लिए बलिदान होने की एक सहज भावना है, जिसे यह वामपंथ पूरी तरह से समाप्त करना चाहता है, और वह भी स्त्रियों के मध्य ऐसी भावना का विस्तार करके जो भारत की है ही नहीं।

परन्तु समस्या उन लोगों से है जो बिना एजेंडा समझे उन लेखों को साझा करने लगते हैं, जिनका न भारत से सम्बन्ध है, जिनका न भारतीय मानसिकता से सम्बन्ध है और न ही भारतीय वीरता से।

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.