भारतीय जनता पार्टी के पश्चिम बंगाल चुनावों में कथित खराब प्रदर्शन के चलते पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रशंसा विपक्षी दल कर रहे हैं एवं उन्हें स्पष्ट तौर पर प्रधानमंत्री पद का स्वाभाविक उम्मीदवार मान चुके हैं एवं यह मान कर चल रहे हैं कि मोदी सरकार अगली बार नहीं आएगी। खैर वह तो समय के गर्भ में है। परन्तु प्रशंसा में शिव सेना के सांसद संजय राउत काफी आगे निकल गए हैं।
उन्होंने ममता बनर्जी की प्रशंसा में कसीदे कढ़े हैं। वही ममता बनर्जी अपने राजनीतिक विरोध में लगभग हर सीमा पार कर ली है और हिन्दुओं का एवं विशेषकर भाजपा समर्थकों का शोषण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यहाँ तक कि राज्यपाल ने जब हिंसाग्रस्त स्थानों का दौरा किया तो वह भी सरकार के इस उत्पीडन पर खुलकर बोले।
At Coochbehar. Visited several affected areas. Distressed at grim scenario. After listening to tales of sorrow no tears left in my eyes. Never imagined severity of post poll retributive violence @MamataOfficial was much beyond.
One is made to pay with life and rights for voting!
— Governor West Bengal Jagdeep Dhankhar (@jdhankhar1) May 13, 2021
परन्तु भाजपा विरोध में अंधे हो चुके विपक्षी दलों एवं कथित निष्पक्ष पत्रकारों को यह सब उत्पीड़न नहीं दिख रहा है। बल्कि वह ममता बनर्जी के लिए दुर्गा से लेकर तमाम नई उपाधियों का प्रयोग कर चुके हैं। परन्तु कई बार यह तुलना किसी को बुरी भी लग सकती है। शिव सेना सांसद संजय राउत ने अब शिव सेना के मुखपत्र सामना में ममता बनर्जी की तुलना महान रानी अहिल्याबाई होलकर से कर दी है। उन्होंने सामना में लिखा कि ममता बनर्जी ने जिस प्रकार से पश्चिम बंगाल के चुनाव जीते हैं, वह अहिल्याबाई होलकर द्वारा लड़े गए युद्ध के समान हैं।
इस बात पर अहिल्याबाई होलकर के परिवार से काफी कड़ा विरोध आया है। अहिल्याबाई होलकर की ममता बनर्जी के साथ तुलना पर उनके एक परिजन श्री भूषण सिंह राजे होलकर ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नाम एक पत्र भी भेजा है।
इस पत्र में संजय राउत द्वारा इस तुलना की आलोचना की गयी है। मराठी में लिखे गए इस पत्र का सार यह है कि यह नितांत लज्जा से भरा हुआ रवैया है कि एक ऐसी राष्ट्रीय नेता जिन्होनें अपना सारा जीवन जन कल्याण के कार्यों के लिए लगा लिया था उनकी तुलना एक ऐसी नेता से की जाए, जो अपनी राजनीति के लिए अपने ही नागरिकों पर अत्याचार कर रही हैं।

ज्ञातव्य हो, कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों के बाद से अब तक आम नागरिक डर के साए में रह रहे हैं और ममता बनर्जी के गुंडे गुंडागर्दी की हर सीमा पार कर रहे हैं।
इस पत्र में यह भी लिखा गया है कि जनता को स्वयं तय करने दिया जाए कि कौन सा नेता कैसा है? इस बात का मूल्यांकन जनता स्वयं करे कि उनका नेता कैसा है।
इस पत्र का विश्लेषण करने पर दो तीन चीज़ें स्पष्ट होती हैं। एक तो सामना में वह लेख मोदी विरोध में लिखा गया है। और मोदी विरोध में ममता बनर्जी को केंद्र में रखते हुए रणनीति बनाने के उद्देश्य से लिखा गया है। एवं यह कहीं न कहीं कांग्रेस को भी नीचा दिखाने के लिए लिखा है तथा साथ ही इस लेख के माध्यम से संजय राउत ममता बनर्जी की चापलूसी करते हुए नजर आ रहे हैं। क्योंकि उन्हें यह दिखाई नहीं दे रहा है कि भाजपा की सीटें 3 से कहीं अधिक बढ़ गयी हैं! पर भाजपा विरोध में अंधे होकर संजय राउत कुछ भी देखने में अक्षम प्रतीत होते हैं.
रानी अहिल्याबाई होलकर के परिजनों की शिकायत गलत नहीं है क्योंकि अहिल्याबाई होलकर का जीवन एक ऐसा जीवन था, जो हर शासक के लिए आदर्श हो है। मालवा की वधु थीं रानी अहिल्याबाई होलकर। जब से वह ब्याह कर आईं थीं, तब से उन्होंने अपने श्वसुर की सहायता शासन के कार्यों में करनी आरम्भ कर दी थी। जटिल कार्यों को चुटकी में हल निकालते देखकर मल्हर राव चकित रह जाते और उन्हें अपने निर्णय पर गर्व होता! परन्तु नियति में कुछ और ही लिखवाकर लाईं थी रानी अहिल्याबाई! वर्ष 1754 में 29 बरस की आयु में उनके पति खंडेराव का निधन हो गया एवं उन्होंने सती होने का निर्णय लिया! परन्तु उनके श्वसुर ने उन्हें सती न होने दिया! रानी अहिल्याबाई ने पुत्र बनकर उनकी सेवा का प्रण लिया! उसके उपरान्त रानी अहिल्याबाई ने राजकाज का कार्य अपने कन्धों पर ले लिया! और अपने पुत्र का राजतिलक किया! परन्तु सच्चे व्यक्तियों के जीवन में परीक्षा अधिक होती हैं और उनके पुत्र का भी निधन हो गया! गद्दी पर कोई उत्तराधिकारी न देखकर शत्रुओं की नज़र शीघ्र ही मालवा पर जम गयी! परन्तु यह तलवार म्यान में रखने के लिए नहीं थी, अहिल्याबाई का स्वर अवश्य मधुर था, परन्तु हाथी की सवारी उन्होंने महल की शोभा के लिए नहीं सीखी थी। तुकोजी होलकर को सेनापति नियुक्त किया। एवं गद्दी पर स्वयं बैठीं।
रानी अहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में कई दुर्गों एवं सड़कों का निर्माण कराया। जनता से प्रत्यक्ष सम्वाद किया। उनके लिए उनका कर्म ही उनका ईश्वर था। मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया। मात्र मालवा के ही नहीं बल्कि उनके लिए हर तीर्थ स्थान पूज्य था। महादेव के जिस मंदिर को काशी में अर्थात बाबा विश्वनाथ मंदिर को औरंगजेब ने नष्ट कर दिया था, महादेव के उसी मंदिर का वर्तमान रूप रानी अहिल्याबाई होलकर का ही दिया हुआ है। इतना ही नहीं उन्होंने वर्ष 1783 में पुणे के पेशवा के साथ मिलकर सोमनाथ में बिखरे पड़े मंदिर के पास एक अलग मंदिर का निर्माण कराया। और आज वह पुराना सोमनाथ मंदिर और अहिल्याबाई मंदिर के नाम से विख्यात है।
धर्मप्रिय रानी अहिल्याबाई होलकर ने लगभग पूरे भारत में मंदिरों को दान ही नहीं दिए थे बल्कि असंख्य घाटों का निर्माण कराया था। मंदिरों का जीर्णोद्धार एवं पुनर्निर्माण भी बड़े पैमाने पर कराया था! साहित्य के प्रति उनके ह्रदय में अनुराग था। उन्होंने अपने द्वार सरस्वती के उपासकों के लिए खोल रखे थे, जैसे मोरोपंत, खुशाली राम।
13 अगस्त 1795 को जब उनका देहांत हुआ, तब तक उनका नाम एक ऐसी स्त्री के रूप में स्थापित हो चुका था, जो शासन, प्रशासन, धर्म, वीरता, संवेदना, एवं जनता की प्रिय नेता आदि सभी का पर्याय थीं।
ऐसी महान स्त्री के साथ ममता बनर्जी जैसी सनकी एवं जिद्दी राजनेता, जो अपनी सत्ता की हनक के आगे किसी को कुछ भी नहीं समझती हैं, जिसके लिए उसे वोट न देने वालों को जीने का अधिकार नहीं है, की तुलना कहीं से भी न्याय संगत नहीं हैं एवं इस चाटुकारिता से भरी हुई तुलना से मात्र होलकर परिवार ही नहीं हर उस व्यक्ति को क्रोध आ रहा है, जिसे अपने इतिहास की महान स्त्री से प्रेम है और जिन्हें वह आत्मगौरव से स्मरण करता है!
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