केरल में अडानी समूह द्वारा विझिंजम बंदरगाह परियोजना के निर्माण को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शन ने रविवार रात को हिंसक रुप ले लिया। प्रदर्शकारियों ने विझिंजम थाने पर हमला कर दिया है, जिसमे 29 पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार केरल में अडानी बंदरगाह के निर्माण के विरोध में लैटिन कैथोलिक चर्च के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों ने रविवार को विझिंजम थाने को लाठी और पत्थरों से निशाना बनाया और पुलिस अधिकारियों पर हमला किया।
पुलिस की विशेष शाखा के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया, “कम से कम 29 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं और उन्हें अलग अलग अस्पतालों में भर्ती कराया गया है.” क्षेत्र में व्याप्त संवेदनशील स्थिति को देखते हुए, केरल सरकार ने अन्य जिलों से अधिक पुलिस अधिकारियों को तैनात किया है। पुलिस के अनुसार प्रदर्शनकारियों ने स्थानीय चैनल ‘एसीवी’ के कैमरामैन शेरिफ एम जॉन पर हमला किया और उनका कैमरा क्षतिग्रस्त कर दिया तथा उनका मोबाइल भी छीन लिया।
पुलिस सूत्रों ने बताया कि एक पुलिस थाने में तोड़फोड़ करने तथा पुलिसकर्मियों पर हमला करने के आरोप में 3,000 ऐसे लोगों के विरुद्ध मामले दर्ज किए गए हैं, जिनकी पहचान की जा सकती है। प्राथमिकी में कहा गया है कि इन लोगों ने थाने का घेराव किया, पुलिस अधिकारियों को कई घंटों तक बंधक बनाकर रखा, फर्नीचर में तोड़फोड़ की और थाना परिसर में खड़े कई वाहनों को क्षतिग्रस्त भी किया।
पुलिस के अनुसार, प्रदर्शनकारी बीते 26 नवंबर की हिंसा को लेकर हिरासत में लिए गए पांच लोगों को मुक्त कराना चाहते थे, और सरकार के मना करने पर पुलिसकर्मियों को जिंदा जला देने की धमकी भी दी गयी थी। पुलिस द्वारा दर्ज की गयी प्राथमिकी में कहा गया है कि इस हमले से पुलिस विभाग को 85 लाख रुपये का नुकसान हुआ है।
पुलिस ने उन्हें जैसे तैसे बचाया और तिरुवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया है। इसी बीच, जिला प्रशासन ने चर्च के अधिकारियों के साथ शांति वार्ता शुरू कर दी है। चर्च के प्रतिनिधि फादर ई. परेरा ने कहा कि चर्च शांति बनाए रखना चाहता है, हम प्रदर्शनकारियों से बात करेंगे और इसे शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाया जाएगा। वहीं केरल पुलिस ने विझिंजम में हुई हिंसा को लेकर शहर के आर्कबिशप थॉमस जे नेटो और परेरा सहित लातिन कैथोलिक के कम से कम 15 पादरियों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की थी।
राजनीतिक दलों का चर्च को अघोषित समर्थन
सत्तारूढ़ माकपा पार्टी का कहना है कि तटवर्ती क्षेत्रों में पिछले दिनों में हुईं हिंसक घटनाएं निंदनीय हैं और दावा किया कि निजी हित से प्रेरित कुछ ‘रहस्यमयी ताकतें’ वहां दंगों जैसी स्थिति पैदा करने का प्रयास कर रही हैं। माकपा के राज्य सचिवालय ने अपने वक्तव्य में कहा कि, ‘प्रदर्शनों के नाम पर कुछ लोग तटवर्ती क्षेत्रों में संघर्ष पैदा करने के लिए हिंसा का सहारा ले रहे हैं और राज्य सरकार को उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।’
हालांकि वामपंथी दल इस मामले में सीधे सीधे चर्च का नाम लेने से बच रहे हैं। वहीं कांग्रेस नीत यूडीएफ ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि उसने विझिंजम में हुई हिंसा को लेकर मेट्रोपॉलिटन आर्चबिशप थॉमस जे. नेट्टो और पादरी यूजीन पेरेरा सहित लैटिन कैथोलिक चर्च के कम से कम 15 पादरियों को गिरफ्तार करके प्रदर्शनकारियों को उकसाया है। एक प्रकार से कांग्रेस उन पादरियों के पक्ष में खड़ी है जिन्होंने प्रदेश में हिंसा की है।
विपक्ष हुआ सरकार पर हमलावर
राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता वी. डी. सतीशन ने तिरुवनंतपुरम में पत्रकारों से कहा, ‘अगर प्रदर्शनकारियों की गतिविधियों के लिए प्रदर्शन का नेतृत्व करने वालों (पादरियों) को जिम्मेदार बताया जाता है तो क्या पार्टी कार्यकर्ताओं के प्रदर्शनों और अन्य गतिविधियों के लिए केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और माकपा के राज्य सचिव एम. वी. गोविंदन जिम्मेदार होंगे?’
कांग्रेस नेता ने विजयन को सलाह दी कि वे अपना अहम छोड़कर प्रदर्शन कर रहे लोगों से मिलें और सीधी बातचीत करके इस संघर्ष को समाप्त करने के लिए उन्हें मनाएं। केरल के बंदरगाह मंत्री अहमद देवरकोविल ने कहा कि जहां तक प्रदर्शन का संबंध है तो सरकार अब तक ‘बहुत संयमित’ थी लेकिन अगर आंदोलन ‘आपराधिक प्रकृति’ का होता है, जहां पुलिसकर्मियों पर हमला किया जाता तथा पुलिस की संपत्ति को नष्ट किया जाता है तो यह ‘अस्वीकार्य’ है।
चर्च के नेतृत्व में न्यायालय के आदेश का उल्लंघन कर रहे हैं लोग
केरल सरकार ने सोमवार को उच्च न्यायालय को बताया कि हिंसक प्रदर्शनों से हुए नुकसान की भरपाई के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। वहीं अडानी समूह द्वारा प्रदर्शनों के कारण निर्माण कार्य में बाधा पहुंचने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायाधीश अनु शिवरमण ने इस मामले में कड़ी कार्यवाही करने के आदेश दिए थे। न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह हिंसा के विरुद्ध की गयी कार्यवाही की विस्तृत रिपोर्ट उसे सौंपे और मामले की सुनवाई शुक्रवार, 2 दिसंबर तक के लिए टाल दी गयी है।
यहाँ यह जानना महत्वपूर्ण है कि न्यायालय ने प्रदर्शनकारियों को बार बार यह आदेश दिया है कि वह बंदरगाह की ओर जाने वाले सड़कें अवरुद्ध न करें और सरकार को निर्देश दिया है कि वह प्रदर्शनों के लिए बनाए गए अस्थायी निर्माणों को हटाए। लेकिन प्रदर्शनकारियों को चर्च ने भड़का दिया है, और वह अवरोध पैदा कर रहे हैं, वहीं सरकार ने सात नवंबर को न्यायालय को अपनी अक्षमता बताते हुए कहा, कि प्रदर्शनकारियों में बच्चों, बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं के सम्मिलित होने के कारण वह प्रदर्शनकारियों के अस्थायी निर्माण नहीं हटा सकती है।
विझिंजम बंदरगाह क्यों है भारत के लिए महत्वपूर्ण, और क्यों चर्च इसका विरोध कर रहा है?
विझिंजम बंदरगाह के निर्माण की शुरुआत साल 2015 में हुई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने इसकी आधारशिला रखी थी । इसकी लागत 7,525 करोड़ रूपए है और इसका निर्माण पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के अंतर्गत किया जा रहा है। पोर्ट पर 30 बर्थ होंगी, जहाँ से जहाज़ों में सामान भरे जाते हैं और उतारे जाते हैं।
360 एकड़ क्षेत्र में बन रहे इस बंदरगाह की शुरुआत 2019 में होनी थी, लेकिन विभिन्न समस्याओं के कारण इसमें देर होती जा रही है। इस बंदरगाह की क्षमता इतनी है कि यह भारत के 80 फीसदी माल को ढो सकता है। यह भारत का सबसे बड़ा बंदरगाह होगा, भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी सिरे पर स्थित यह के प्रमुख अंतरराष्ट्रीय समुद्री मार्ग और पूर्व-पश्चिम शिपिंग अक्ष से सिर्फ 10 समुद्री मील की दूरी पर स्थित है।
यह बंदरगाह अच्छी प्राकृतिक पानी की गहराई होने के कारण बड़े जहाज़ों के द्वारा आसानी से उपयोग किया जा सकता है। विझिंजम बंदरगाह देश और केरल के समुद्री विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके परिचालन होने से प्रदेश में हजारों रोजगार के अवसर पैदा करने के साथ-साथ राज्य में 17 छोटे बंदरगाहों का समुचित विकास भी हो पायेगा।
क्यों चर्च और विदेशी ताकतों द्वारा किया जा रहा है इसका विरोध?
इस बंदरगाह प्रोजेक्ट को शुरुआत से ही विरोध झेलना पड़ा है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं, मछली पकड़ने वाले, चर्च और विदेशी ताकतें इसका लगातार विरोध करते रहे हैं। उनका आरोप है कि प्रोजेक्ट के कारण बड़े स्तर पर तटीय कटाव होंगे या हो रहे हैं। वर्ष 2016 में, दो पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) में पोर्ट के विरुद्ध याचिका डाली थी, लेकिन एनजीटी ने पर्यावरणीय मंजूरी रद्द करने से मना कर दिया था।
अडानी समूह और केरल सरकार भी तटीय कटाव होने की बात को नकार चुके हैं। हालांकि, 2019 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी, चेन्नई ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 2015 में पोर्ट का निर्माण शुरू होने के पश्चात वल्लियाथुरा, शंगुमुघाम और पुंथुरा जैसी जगहों पर कटाव में कोई बदलाव नहीं हुआ है। बाद में ये मामला उच्चतम न्यायालय भी गया था, जहां इस काम को रोकने से मना कर दिया था।
मछली पकड़ने वाले स्थानीय लोगों का आरोप है कि प्रोजेक्ट के कारण उनके समुद्री रास्ते बंद हो गए हैं, उनका डर है कि पोर्ट बनने के बाद वो समुद्र से और दूर हो जाएंगे और उनके लिए मछली पकड़ना मुश्किल हो जाएगा। इन्ही लोगों को चर्च और विदेशी ताकतों द्वारा भड़काया जा रहा है। विरोध करने वाले अधिकाँश लोग धर्मांतरण करा कर ईसाई बन चुके हैं, उन्हें पादरी डरा धमका कर विरोध करने के लिए उकसाते हैं, वहीं विदेशी एनजीओ और अन्य संस्थाएं इसके लिए फंडिंग और अन्य सहायता प्रदान करती हैं।
चर्च और मिशनरी गठजोड़ पहले भी कई भारतीय प्रोजेक्ट का कर चुका है विरोध
तमिलनाडु का कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र अपने निर्माण के प्रारब्ध से ही विवादित रहा है। यह संयंत्र भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम था, और शायद यही एक बड़ा कारण था कि विदेशी एनजीओ और चर्च ने इसका पुरजोर विरोध किया। आप यह जान कर हैरान रह जाएंगे कि नागरकोइल में आयोजित रैली में भाग लेने वाले अधिकांश लोग विभिन्न कैथोलिक परगनों से आये थे। इदिनथाकराई में सेंट लूर्डेस चर्च परिसर को इस संयंत्र के विरोध स्थल में बदल दिया गया था।
कई गिरजाघरों ने लोगों से कुडनकुलम संयंत्र के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन में सम्मिलित होने का आग्रह किया था। कुडनकुलम भारत में सबसे अधिक क्षमता वाला परमाणु संयंत्र है, जिसमें वर्तमान में 2,000 मेगावाट की स्थापना की गई है। एक बार पूरा हो जाने के बाद संयंत्र की क्षमता 6,000 मेगावाट हो जाएगी। लेकिन इन विरोधों के कारण इस संयंत्र को बनने में कई वर्षों की देरी हुई और विरोध प्रदर्शनों में कई लोगो की जान गयी, अन्य कई घायल भी हुए थे।
स्टरलाइट कॉपर संयंत्र भारत का सबसे बड़ा कॉपर का संयंत्र था, जो देश में कॉपर की औद्योगिक जरूरतों को पूरा करता था, वहीं भारत को ताम्बे के निर्यात में भी सहायता करता था। लेकिन एकाएक इस संयंत्र का विरोध होना शुरू हो गया था, इस संयंत्र के बारे में झूठ फैलाया गया कि इससे पर्यावरण पर कई तरह के कुप्रभाव पड़ रहे थे। इन विरोध प्रदर्शनों में विभिन्न गिरजाघरों ने सहयोग किया था, चर्चों द्वारा रविवार को विरोध दिवस के रूप में मनाया जाता था।
तूतीकोरिन के तट पर एक बस्ती में रहने वाले कैथोलिक फर्नांडीज समुदाय के सदस्यों ने ‘अवर लेडी ऑफ स्नोज’ चर्च से कलेक्टर कार्यालय तक मार्च किया था, जिसमे पादरी लाजर ने प्रमुख भूमिका निभाई। उसके पश्चात चर्च और विदेशी एनजीओ ने सरकारों और न्यायपालिका पर दबाव बनाया, जिसके कारण इस संयंत्र को बंद कर दिया गया। जो भारत ताम्बे का निर्यातक हुआ करता था, वह अब ताम्बे की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर हो गया है, जिससे हर वर्ष कई सौ करोड़ की विदेशी मुद्रा का नुक्सान हमे उठाना पड़ता है।
बेंगलुरू मेट्रो एक ऐसी ही परियोजना थी, जिसका विरोध भी चर्च और मिशनरियों ने किया था । ऐसा बताया जाता है कुछ भूमि वहां के चर्च ऑफ साउथ इंडिया (सीएसआई) को पट्टे पर दी गई थी। बेंगलुरु मेट्रो को बनाने के लिए इस संस्था को 60 करोड़ रुपये देकर यह जमीन खरीदी गयी थी। लेकिन ‘ऑल सेंट्स चर्च’ ने मेट्रो निर्माण का विरोध करते हुए पेड़ों को बचाने की मांग की। यहाँ यह जानना महत्वपूर्ण है कि सीएसआई ऑल सेंट्स चर्च का मूल निकाय है। इसका अर्थ है कि एक संस्था जमीन बेच कर पैसा ले चुकी है, जबकि उसी सस्था का चर्च इस परियोजना का विरोध कर रहा है, स्थानीय लोगो को इसके विरुद्ध भड़का रहा है।
चर्च के संस्थानों का अब राजनीति और गैर सरकारी निकायों में बड़े स्तर पर हस्तक्षेप होना शुरू हो गया है। भारत के चर्चों को वेटिकन से भी सहायता मिलती है, जो उन्हें असीमित रूप से शक्तिशाली बना देता है। लेकिन चर्च ने इस शक्ति का दुरूपयोग भारत विरोध में ही करना शुरू कर दिया है। भारत की बड़ी परियोजनाओं और ऊर्जा संयंत्रों के विरुद्ध हिंसक प्रदर्शनों का समर्थन कर और विदेशी संस्थाओं से सहायता ले कर चर्च सीधे सीधे भारत की प्रभुसत्ता को ही चुनौती दे रहे हैं।
समाज और सरकार को चर्च के इन द्वेषपूर्ण मंतव्यों को समझना पड़ेगा और इनका पुरजोर विरोध भी करना पड़ेगा। हम किसी भी धार्मिक और गैर सरकारी निकाय को देश की प्रभुसत्ता से खेलने की अनुमति नहीं दे सकते । इससे पहले कि यह समस्या और बढे, सर्कार को चर्च पर नियंत्रण करना ही पड़ेगा, अन्यथा इसके भयानक दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे।