ऐसा प्रतीत होता है जैसे बरसों की प्रतीक्षा अब समाप्त होने की है! नंदी के साथ साथ हिन्दुओं के एक बड़े वर्ग की तपस्या अब पूर्ण होने को है। आज जैसे ही ज्ञानवापी परिसर में सर्वे का कार्य पूरा हुआ, वैसे ही हिन्दुओं के पक्ष के वकील ने यह दावा किया कि उन्होंने शिवलिंग देख लिया है। यह शिवलिंग और कहीं नहीं बल्कि वहां पर मिला जहाँ पर वजू किया जाता था। जैसे ही यह सूचना सामने आई वैसे ही हिन्दुओं के भीतर एक क्षोभ और आक्रोश की लहर दौड़ गयी!
संजय दीक्षित ने कहा कि ज्ञानवापी में एकदम वहीं पर शिवलिंग पाए गए हैं, जहाँ की ओर नंदी महाराज 353 वर्षों से मुंह करके खड़े हैं और वह भी उस तालाब में जहाँ पर वजू के लिए पानी प्रयोग किया जाता था। और बेशर्म मुस्लिम समाज अभी भी वहीं पर हाथ और पैर धोने की जिद्द कर रहा है।
काशी के सिविल जज ने आदेश पारित किया कि वजूखाने के आसपास के क्षेत्र को सील कर दिया जाए तथा उसकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व सीआरपीएफ कमांडेंट, डीएम वाराणसी, पुलिस कमिश्नर वाराणसी अधिकारियों का है।
हालांकि मुस्लिम पक्ष के लोगों ने यह दावा किया कि वह तो फव्वारा है। परन्तु वकील दीपक सिंह ने कहा कि सर्वे के तीसरे दिन, एक पत्थर वहां मिला। यह तीन फीट लम्बा है और यही वह स्थान है जहाँ पर मुस्लिम वुजू करते हैं। उन्होंने दावा किया कि यह फव्वारा है, परन्तु जब सफाई कराई तो पता चला कि वह शिवलिंग हैं:
मंदिर के टूटने की कहानी एक बार नहीं बार बार कही गयी है। मासिर-ए-आलमगीरी में लिखा है कि बनारस में ब्राह्मण काफ़िर अपने विद्यालयों में अपनी झूठी किताबें पढ़ाते हैं और जिसका असर हिन्दुओं के साथ साथ मुसलमानों पर भी पड़ रहा है।
आलमगीर जो इस्लाम को ही फैलाना चाहते थे, उन्होंने सभी प्रान्तों के सूबेदारों को आदेश दिए कि काफिरों के सभी विद्यालय और मंदिर तोड़ दिए जाएं और इन काफिरों की पूजा और पढाई पर रोक लगाई जाए!

फिर उसी वर्ष अर्थात 1669 में आगे आकर पृष्ठ 66 पर लिखा है कि यह रिपोर्ट किया गया कि बादशाह के आदेश से उसके अधिकारियों ने काशी में विश्वनाथ मंदिर तोड़ दिया!

हालांकि इस सत्य को कई किन्तु परन्तु के बाद मुस्लिम भी मानते हैं, परन्तु वह एक झूठी कहानी गढ़ते हैं, यही कारण है कि पिछले दिनों लखनऊ में एक प्रोफ़ेसर के विरुद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अभियान चलाया था, जिन्होंने इस झूठी कहानी को आगे बढ़ाया था कि बनारस के मंदिर में कच्छ की रानी का अपमान हुआ था, इसलिए औरंगजेब ने मंदिर तुडवाया था।
परन्तु कोनार्ड एल्स्ट इस दावे की हवा निकाल देते हैं क्योंकि इस बात का कोई सन्दर्भ ही नहीं प्राप्त होता है कि औरंगजेब बनारस होते हुए बंगाल गया था और उसके साथ कैसे राजपूत रानियाँ हो सकती हैं और कैसे रानी रक्षकों की उपस्थिति में गायब हो सकती हैं?
मगर यह झूठ अब तक चल रहा था और चल रहा है, फिर भी यह सत्य है कि मंदिर को तोडा गया था और आज वहां पर “बाबा विश्वनाथ” प्रकट हुए हैं। यह हिन्दुओं के लिए तो बड़ी घटना है ही, साथ ही यह मुस्लिमों के लिए और भी बड़ी घटना है। क्योंकि इससे उनके कई झूठ सामने आएँगे। जो यह लोग बार बार कहते हैं कि वह तो शांतिपूर्ण लोग है, और भारत में इस्लाम शांतिपूर्ण तरीके से फैला, यह झूठ खुलकर सामने आएगा।
और साथ ही जब यह सत्य सभी के सामने आएगा कि यह जानते बूझते हुए भी कि तालाब में महादेव हैं, अर्थात हिन्दू धर्म के आराध्य अपने जीवित स्वरुप में हैं, फिर भी वह वहां पर वजू करते रहे? इस प्रश्न का उत्तर तो उन्हें बार बार देना ही होगा। यह प्रश्न उनकी हर पीढ़ी को परेशान करेगा ही कि आखिर क्यों आपने जानते बूझते ऐसा किया?
क्या आपका मजहब ही ऐसा है?
ऐसे स्थान पर शिवलिंग मिलने पर भी आरफा खानम शेरवानी ने विक्टिम कार्ड खेलना आरम्भ कर दिया कि
इस रात की सुबह नहीं!
मगर आरफा यह नहीं बता पा रही हैं कि आखिर ऐसा क्या कारण है कि बाहर कथित गंगा-जमुना तहजीब का नारा गाने वाले भीतर महादेव पर वजू कर रहे थे?
हिन्दू प्रश्न कर रहे हैं और कह रहे हैं कि हम तो इफ्तार परती खिलाते रहें और वह शिवलिंग पर हाथ पैर धोते रहें!
मगर प्रश्न यह भी उठता है कि वहां पर अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी के सदस्यों और उसके इमाम की देखरेख में नमाज़ी विश्वेश्वर शिवलिंग को वजुखाने में डुबा कर हाथ-पैर धो रहे थे। इस इमाम और मस्जिद कमेटी के सदस्यों को तुरंत गिरफ्तार कर जेल में डाला जाए। हिंदू समाज की आस्था के घोर अपमान का मामला बनता है इन पर।
यह प्रश्न कई लोग कर रहे हैं कि आप लोग यह जानते हैं कि वह कहाँ था? और फिर भी आप अपने गंदे पैर धोते रहे?
हालांकि अभी भी वह लोग रुके नहीं है और उन्होंने अब सर्वे को ही चुनौती दी है और इसे उच्चतम न्यायालय में जस्टिस चंद्रचूड़ और नरसिम्हा की बेंच के सम्मुख कल के लिए सूचीबद्ध किया गया है
देखना होगा कि कल क्या निर्णय आता है? परन्तु उच्चतम न्यायालय के लिए भी इस सर्वे को झुठलाना संभव नहीं होगा!