भारत के राष्ट्रपति इन दिनों बांग्लादेश की यात्रा पर हैं। वह बांग्लादेश की तीन दिवसीय यात्रा पर हैं, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री शेख हसीना एवं राष्ट्रपति अब्दुल हमीद सहित कई महत्वपूर्ण लोगों से भेंट की एवं कई विषयों पर चर्चा की। दोनों ही देशों के नेताओं के बीच आपसी हित एवं द्विपक्षीय सहयोग के कई मुद्दों पर बात हुई।
राष्ट्रपति कोविंद के कार्यालय की ओर से किए गए ट्वीट में यह लिखा था कि राष्ट्रपति कोविंद के नेतृत्व में बांग्लादेश के राष्ट्रपति अब्दुल हमीद से चर्चा हुई। दोनों ही नेताओं ने दोनों ही देशों के बीच आपसी हितों पर चर्चा की और जिनमें कनेक्टिविटी एवं व्यापार, कोविड 19 के खिलाफ लड़ाई एवं विकास भागीदारियां सम्मिलित थीं।
प्राचीन मंदिर रमना कालीबाड़ी मंदिर भी गए
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद प्राचीन रमना कालीबाड़ी मंदिर भी गए एवं उसके पुनर्निर्मित परिसर को जनता को समर्पित किया। इस मंदिर को वर्ष 1971 बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष के दौरान अन्य मंदिरों के साथ तोड़ दिया गया था। ऑपरेशन सर्चलाईट के नाम से कुख्यात इस ऑपरेशन में सैकड़ों हिन्दुओं को मार डाला गया था।
26 मार्च 1971 को पाकिस्तानी सेना ने रमना मंदिर एवं आनंदोमयी मंदिर में प्रवेश किया था और उन्होंने वहां के नागरिकों से कहा कि वह कहीं न जाएं। आश्रम और मन्दिर के निवासियों ने उनकी बात पर विश्वास कर लिया, जो उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल थी। अगले दिन पाकिस्तानी सेना आई और उन्होंने रमना मंदिर और आनंदमयी मंदिर और वहां पर रहने वाले सभी लोगों को चारों ओर से घेर लिया। हर ओर से पाकिस्तानी सेना ने सर्च लाइट onऑन कर दी, जिससे कोई भी भाग न पाए।
उस मंदिर क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद, उन्होंने कई प्रकार के विस्फोटक फेंकने आरम्भ कर दिए। जिसके कारण देवी की प्रतिमा एवं मंदिर का पिछ्ला हिस्सा उड़ गया। जिसके कारण पूरा मंदिर टूट गया।
जब पाकिस्तानी सेना ने मंदिर में प्रवेश किया तो वहां पर लोग सो रहे थे, जब वह जागे तो उनका सामना अपनी मृत्यु से हुआ। मंदिर को तोड़ दिया गया और लोगों को मारा जाने लगा। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार लोगों से कलमा पढवाया गया और फिर उन्हें मारडाला गया।
जो मर गए थे उन्हें जला दिया गया और उस आग में अधमरे लोगों को भी जला दिया गया। कहा जाता है कि उस दिन लगभग 250 हिन्दुओं का खून बहा था।
अमेरिकी सीनेटर गॉर्डोन अलोट जब बाद में वहां पर गए थे तो उन्होंने कहा था कि रमना कालीबाड़ी में अब कोई हिन्दू शेष नहीं है। मैं वहां पर देखने गया था। घर अभी भी जल रहे थे और उनके शव अभी भी कहीं कहीं पड़े हुए हैं।”
बांग्लादेश बनने के बाद भी तीन दशकों तकमंदिर नहीं बना था
जब भारत के हस्तक्षेप के बाद बांग्लादेश आजाद हुआ, तो कई हिन्दुओं ने शेख मुजीबुर रहमान से यह आशा की कि वह इस मन्दिर को दोबारा बनवाएंगे और उसकी पूर्व प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करेंगे।
परन्तु जनता की उम्मीद टूट गयी जब उन्होंने देखा कि सरकार ने मंदिर की भूमि को हिन्दू बोर्ड से छीन कर शत्रु सम्पत्ति अधिनियम के अंतर्गत कर दी गयी और फिर उसे पीडब्ल्यूडी को दे दिया गया, जिसे बदले में ढाका क्लब को दे दिया गया।
हिन्दू गुहार करते रहे
हिन्दू बार बार उस मंदिर के लिए सरकार से गुहार लगाते रहे। तीन दशकों के बाद वर्ष 2000 में शेख हसीना ने उन्हें पूजा पंडाल की अनुमति दे दी। उसके बाद वर्ष 2006 में खालिदा जिया सरकार ने यह घोषणा की कि वह स्थाई मंदिर के लिए अनुमति देंगी, और उसके लिए एक कमिटी का गठन किया गया, परन्तु एक शर्त रखते हुए यह कहा कि मन्दिर उसी स्थान पर नहीं बन सकता है, हाँ कुछ दूरी पर बनाया जा सकता है।
उसके बाद टुकड़ों टुकड़ों में मंदिर का निर्माण होता रहा। इस मंदिर के निर्माण में भारत सरकार ने वित्त प्रदान किया, जिसमें एक पांच मंजिला अतिथिगृह एवं ट्यूब वेल एवं मुख्य गेट का निर्माण सम्मिलित है।
वर्ष 2019 में इस मंदिर के लिए और भी अधिक वित्तीय सहायता प्रदान करने की घोषणा की थी।
मुगलकालीन इस मंदिर को आज भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने जनता को समर्पित किया है, और बांग्लादेश की सांस्कृतिक शक्ति बताया है!
क्या कभी शेष मंदिरों पर या हाल ही में हुई हिंसा पर बात होगी?
हालांकि यह मंदिर भारत सरकार की सहायता के कारण बन गया है, परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुर्गापूजा के दौरान हिन्दुओं के साथ हिंसा हुई थी और बहुत ही बड़े पैमाने पर हत्याएं हुई थीं। पूजा के पंडाल तोड़ दिए गए थे, मंदिरों को जलाया गया था। हिंसा का नंगा नाच पूरे विश्व ने देखा था। इस्कोन तक के मंदिर को नहीं छोड़ा था।
क्या हम यह आशा कर सकते हैं कि हिन्दुओं के साथ होने वाली इस हिंसा पर भी इस द्विपक्षीय वार्ता में चर्चा हुई होगी?