इस देश का एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य है कि जिस देश की पहचान ही प्रभु श्री राम से हो, जहाँ की संस्कृति ही प्रभु श्री राम हों, उस देश में अब एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो प्रभु श्री राम को बैन करवाना चाहता है। यह दुस्साहस करने वाले कहीं बाहर से नहीं आए हैं, हाँ उनकी पहचान अब अवश्य बाहरी हो गयी है, और वह अब किसी न किसी प्रकार से मात्र यह चाहते हैं कि उनका ही शरिया चले।
तभी उनके हौसले इतने बुलंद हैं कि वह अब प्रभु श्री राम का नाम ही बैन कराना चाहते हैं। रुबिका लियाकत के शो का एक वीडियो है, जिसमें शोएब जमाई वीडियो में कुछ और दिखाना चाहते थे, मगर दिख गया वह छिपा हुआ मंसूबा, जो लगभग पूरा का पूरा समुदाय पाले हुए बैठा है, जो फैज़ भी चाहते थे, जब लिखते हैं कि हर बुत उठवाए जाएंगे।
शोएब जामेई का वीडियो है उसमे लिखा था कि “अब भारत से राम को बैन कराने का समय आ गया है!”
यह उस देश में राम को बैन कराने की बात करते हैं, जिस देश में जब मुस्लिम आए थे, वह मंदिरों को तोड़ते हुए ही आए थे। सीताराम गोयल ने विस्तार से लिखा है कि भारत में कितने मंदिर तोड़े गए और कितनी मस्जिदों का निर्माण मंदिरों पर किया गया।
बैन तो प्रभु श्री राम का नाम तभी से करने की फिराक में कुछ लोग हैं, जब उन्होंने इस देश की धरती पर प्रथम चरण रखा था। और तभी से राम, कृष्ण, महादेव सभी का नाम हटाने की फिराक में हैं। वह मंदिर तोड़ते गए और उन पर मस्जिदें बनाते गए।
प्रभु श्री राम का मंदिर तोडा, उस का निर्माण अब इतने वर्षों के संघर्ष के उपरान्त हो रहा है। और यह संघर्ष कोई सहज संघर्ष न होकर हर प्रकार के संघर्ष थे। लोगों ने अपने शीश कटाए हैं, कारसेवा में सैकड़ों लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है। न जाने कितने लोग कानूनी लड़ाई लड़ते रहे, न जाने कितनी पीढियां उस मंदिर की आस को संजोए हुए चली गईं।
वह बैन ही तो था? बैन नहीं था क्या जब औरंगजेब के समय में काशी का मंदिर तोडा गया और मथुरा में मंदिर पर मस्जिद बना दी गयी! यही सब देख देखकर तो मंदिरों पर उन्हें अपना सहज अधिकार लगता है और फिर फैज़ कहते भी हैं कि क्रान्ति के लिए बुत तो तोड़ना ही पड़ेगा!
इकबाल भी कहते हैं कि ब्राह्मण अब तुम्हारे भगवान पुराने हो गए हैं, तो ऐसे में आम मुसलमान यदि यह सोचते हैं कि प्रभु श्री राम का नाम बैन होना चाहिए तो क्या गलत सोचता है, यही तो वह देख रहा है। क़ुतुब मीनार में जो गणेश प्रतिमाएं हैं, वह बैन ही तो हैं।
सच कह दूं ऐ बरहमन गर तू बुरा न माने
तेरे सनमक़दों के बुत हो गए पुराने
प्रभु श्री राम को बैन कराना और कपिल मिश्रा को खरगौन में हुई हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराना
एक ओर जहां यह प्रभु श्री राम को बैन करने के मंसूबे पाले बैठे हैं और भास्कर के अनुसार खरगोन में जहाँ पहले से ही तैयारी कर रखी थी। लोगों का कहना है कि उपद्रव अचानक नहीं हुआ। इसकी तैयारी पहले से की गई थी। उपद्रवियों ने घरों की छतों पर पत्थर और पेट्रोल बम जमा कर रखे थे। पुलिस ने जुलूस के पहले ड्रोन से सर्चिंग कराई होती तो ये पहले ही पकड़ में आ जाते।

तो अब वहीं हर घटना के लिए हिन्दुओं को दोषी ठहराने वाले लोग एक बार फिर से तीन चार मुद्दों को लेकर आए हैं कि एक तो शोभायात्रा “मुस्लिम इलाकों” से निकल रही थी, और भड़काऊ नारे थे, इसलिए लोग भड़क गए! परन्तु यह वही लोग हैं, जो किसी के बाप का हिंदुस्तान नहीं है कहने वाली शायरी पर गद्द गद्द होते हैं, और जब पूरा भारत एक सेक्युलर देश है, जहाँ पर मन्दिरों में रोजा खुलता है, इफ्तारी की दावत दी जाती है, तो ऐसे में क्या मुस्लिम इलाका क्या होता है? क्या इलाके भी अब हिदू मुस्लिम हो गए हैं, और मुस्लिम इलाका इतना संवेदनशील है कि वह जय श्री राम और भारत माता की जय जैसे नारे सुनकर भी भड़क जाता है? क्योंकि अधिकाँश यही नारे लगाए गए थे।
क्या मुहर्रम के जुलूस किसी ऐसे क्षेत्र से नहीं निकलते हैं जहाँ पर बहुसंख्यक हिन्दू जनसँख्या निवास करती है? क्या अजान की आवाज उन क्षेत्रों में नहीं जाती है जहाँ पर बहुसंख्यक हिन्दू जनसँख्या निवास करती है? यदि ऐसा है तो मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में जय श्री राम से क्या समस्या है? धर्मनिरपेक्ष भारत में मुस्लिम इलाके जैसी बकवास का क्या अर्थ है? क्या अब सेक्युलर समाज पूरी तरह से भारत में दंगे भड़काने के लिए आगे आ गया है? संभवतया यही प्रतीत होता है, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो मुस्लिम इलाके की बात ही आगे आती।
कपिल मिश्रा खरगोन में थे और उन्होंने हिन्दुओं से अपील की कि वह जातिगत भेदभाव भुलाकर हिन्दू होना स्मरण रखें, और वह स्थान जहाँ से हिंसा हुई वहां से 40 किलोमीटर की दूरी पर था, परन्तु फिर भी दिग्विजय सिंह समेत मीडिया का एक बड़ा वर्ग कपिल मिश्रा पर खरगोन में हुई हिंसा का ठीकरा फोड़ रहा है।
इस पर कपिल मिश्रा ने ट्वीट कर उत्तर दिया कि
कसाब को हिन्दू बताने वाला फिर झूठ फैलाने लगा
मैं जहां था वहां कोई दँगा नहीं हुआ
और हाँ जांच हुई तो हर दंगे में किसी जिहादी और उसके पीछे छुपा कोई कांग्रेसी ही सामने आएगा
खरगौन में जिहादियों ने पथराव किए और आगजनी की
दिग्विजय जैसे लोग उन्हें बचाने के लिए झूठ फैलाने लगे
हिंसा का यह स्वरुप मात्र इस आधार पर नया है कि यह पूरे देश में आठ नौ स्थानों पर हुआ। यह वही पैटर्न है जिसके आधार पर बांग्लादेश में दुर्गापूजा के दौरान हिन्दुओं के दुर्गापूजा पंडालों पर हमला किया गया था, और जमकर तोड़फोड़ की गयी थी।
हिन्दू त्योहारों पर हिन्दुओं पर हमला करना जैसे उनके मनोबल को तोड़ने के लिए उठाया गया कदम है, जिसमें भारत में सेक्युलर वर्ग का पूरा समर्थन इस इस्लामी कट्टरता को है। भारत का मीडिया फिर से कपिल मिश्रा के बहाने हिन्दुओं को दोषी ठहराने में लग गया है। इंडिया टुडे ने कपिल मिश्रा के साधारण भाषण को भड़काऊ भाषण कहा है
इस पर लोग इंडिया टुडे की आलोचना भी कर रहे हैं कि कहाँ से इसमें भड़काऊ लग गया है:
परन्तु फिर भी यह खतरनाक ट्रेंड है कि पहले दंगे करो, उसके बाद किसी कपिल मिश्रा के कंधे पर ठीकरा फोड़ दिया जाए, जबकि न ही उस कथित वायरल टेप में कुछ भड़काऊ है और न ही मुस्लिम विरोधी और फिर अपने द्वारा की गयी हिंसा के आधार पर हिन्दुओं के देवों को बैन करने की बात करो!
क्योंकि उद्देश्य तो वही है कि “हर बुत उठवाए जाएंगे बस नाम रहेगा अल्लाह का!”