आमिर खान की बहुप्रतीक्षित फिल्म लाल सिंह चड्ढा के विषय में जहाँ मीडिया भी खुलकर उसी प्रकार पक्ष में उतर आया है जैसे वह किसी राजनीतिक दल के पक्ष में उतरता है। वह बात दूसरी है कि सेक्युलर मीडिया जिस दल के पक्ष में जमीन आसमान एक करता है, उस दल के प्रति आम जनता में रोष ही बढ़ जाता है। अब जब वही मीडिया लाल सिंह चड्ढा का भी प्रचार करने के लिए जैसे कमर कस करके उतर गया है।
यहाँ तक कि आमिर खान के आंसुओं को बेचा जा रहा है। आमिर जैसे “स्टार” का “गरीब बचपन” बेचा जा रहा है। और फिल्म की बुकिंग को लेकर भी भ्रम फैलाया जा रहा है। परन्तु तरण आदर्श ने “शानदार बुकिंग” की अफवाहों पर रोक लगाते हुए कहा कि सब कुछ ठीक नहीं है। हमें गुलाबी तस्वीर दिखानी बंद कर देनी चाहिए, हमें तथ्यों पर बात करनी चाहिए। लाल सिंह चड्ढा और रक्षाबंधन की एडवांस बुकिंग अपेक्षा से बहुत कम हैं और दोनों ही अब माउथ पब्लिसिटी पर निर्भर करती हैं:
विदेशी समीक्षकों ने नकारी लाल सिंह चड्ढा?
चूंकि यह फिल्म फारेस्ट गंप का आधिकारिक रीमेक है तो यह भी स्पष्ट है कि विदेशी मीडिया दोनों फिल्मों को साथ रखकर ही समीक्षा करेगा। इस फिल्म को विदेशों में दिखाया गया है, उसी के आधार पर औस्टिन क्रोनिकल में इस फिल्म की समीक्षा प्रकाशित हुई है। और इस फिल्म के विषय में नकारात्मक ही लिखा है।
इसमें लिखा है कि फारेस्ट गम्प के रिलीज होने लगभग 30 वर्षों के बाद यह फिल्म एक दूसरी भाषा और संस्कृति में रिलीज होने जा रही है। इसमें वह प्रश्न यही उठाते हैं कि क्या होगा जब एक पृष्ठभूमि पर बनी हुई एक फिल्म दूसरी संस्कृति में “अनूदित” होगी?
अनुवाद सुनकर चौंकिए नहीं, क्योंकि यह फिल्म कहीं न कहीं एडेप्टेशन न होकर अनुवाद ही प्रतीत होती है जैसा दोनों ही फिल्मों का ट्रेलर दिखाता है। मगर इस समीक्षा में भी यही लिखा है कि अक्सर जब रीमेक बनाए जाते हैं तो नए बाजार में ले जाने के लिए विषय को एडेप्ट करने अर्थात बाजार को अनुकूल करने के उद्देश्य से कई समायोजन किये जाते हैं अर्थात एडजस्टमेंट किए जाते हैं। हालांकि लाल सिंह चड्ढा में बहुत कुछ बदलाव किए गए हैं, परन्तु वह बुरे के लिए ही हुए हैं।
इसमें कहा गया है कि अधिकाँश डायलॉग “शब्द-दर-शब्द” फोरेस्ट गंप से उठा लिए गए हैं। इसमें लिखा है कि कुछ परिवर्तन किए हैं जैसे चौकलेट का डिब्बा “गोलगप्पा” हो गया है, अस्पताल में आइसक्रीम कुल्फी हो गए है आदि आदि। चंदन का निर्देशन मूल की नक़ल ही लगता है क्योंकि कई शॉट हूबहू उठा लिए गए हैं। ऐसा लग रहा है जैसे उसने मूवी को सेट पर चला दिया हो और अपने कलाकारों से कहा हो कि आपको उसी स्टाइल में एकदम वही एक्शन करने है और कैमरे में भी वही मूव हैं!
अर्थात विदेशों में समीक्षक यह कह रहे हैं कि डायलॉग भी अनुवाद करके ही ले लिए हैं एवं अधिकाँश दृश्य भी
फिर इसमें अभिनेत्री की आलोचना करते हुए लिखा है कि जो नायिका की भूमिका थी, उसमें काफी परिवर्तन किए गए हैं और करीना कपूर की गलती हालांकि नहीं है, परन्तु रूपा का चरित्र एकदम भावहीन है, और मूल फिल्म के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक पहलू को तो हटा ही दिया है।
फिर लिखा है कि आमिर खान 57 वर्ष के है और उन्हें 20 वर्ष का दिखाया गया है तो डिजिटल डी-एडिटिंग बहुत अधिक की गयी है और हालांकि उससे उन्हें कोई समस्या नहीं है, परन्तु इस डिजिटल डीएडिटिंग में केवल चेहरा ही स्मूथ नहीं किया है, बल्कि शरीर को भी इस डिग्री तक बदला है कि जब भी युवा लाल स्क्रीन पर होता है तो सारा बैकग्राउंड ही युवा और पतले फिजिक में बदल जाता है। यह भयानक रूप से परेशान करने वाला है और इस प्रकार की बड़े बजट की ड्रामा फिल्म में दर्शक इसकी अपेक्षा नहीं करते हैं। मुझे बहुत देर लगी कि यह समझने में कि समस्या आखिर क्या है, और जब आपको समस्या समझ में आ जाती है तो आप अनदेखा नहीं कर सकते हैं।
इस समीक्षा में इस फिल्म की व्यावसायिक सफलता से इंकार नहीं किया गया है, क्योंकि इस समीक्षा के अनुसार इसमें बड़े कलाकार हैं और यह हॉलीवुड की सबसे लोकप्रिय फिल्मों में से एक की रीमेक है।
फिर भी इसमें कहा गया है कि भारत की ख़ूबसूरती को दिखाती हुई शानदार सिनोमेटोग्राफी भी इस गड़बड़ को सम्हालने के लिए पर्याप्त नहीं है। इस असफल एवं प्रेरणारहित एडेप्टेशन के बीच निर्देशन शायद इसलिए ठीक लगता है क्योंकि वह उन शॉट्स पर आधारित है जो पहले से ही उपस्थित हैं!
यह फिल्म निराश करती है। और इस समीक्षा में इसे रेटिंग 5 स्टार में से डेढ़ स्टार दिया गया है!
भारत में भी दृश्य सुहाना नहीं है:
जमकर प्रचार करने के बाद भी लाल सिंह चड्ढा को वांछित सफलता नहीं मिल पा रही है और अब आमिर खान ने भी कहा है कि वह नर्वस हैं और पिछले 48 घंटों से सोए नहीं हैं। मीडिया के अनुसार आमिर खान ने कहा कि मैं इस समय बहुत ज्यादा नर्वस हूं। 48 घंटे हो गए हैं मैं सोया नहीं हूं। मैं मजाक नहीं कर रहा हूं। मैं सच में सो नहीं पा रहा हूं। मेरा दिमाग तेज गति में में है, इसलिए मैं किताबें पढ़ता हूं या ऑनलाइन शतरंज खेलता हूं। मैं अब 11 अगस्त के बाद ही सो पाऊंगा।
एक बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि आमिर खान की यह फिल्म लोगों को उतना आकर्षित नहीं कर पा रही है, जितनी पहले आमिर खान की फिल्मे किया करती थीं। इस समय लोगों के दिल में आमिर खान के प्रति बहुत गुस्सा है!
हालांकि फिल्म की समीक्षाएं भी सकारात्मक न होने से फिल्म के लिए और भी समस्या उत्पन्न होगी, ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है।