आज काशी में ज्ञानवापी मस्जिद की वीडियोग्राफी हुई है। जैसा की आशंका थी ही कि वहां पर कुछ न कुछ हंगामा होगा, तो वहां पर आज हजारों की संख्या में लोग नमाज पढने के लिए पहुंचे। परन्तु चूंकि पुलिस एवं प्रशासन चूंकि सजग और सतर्क था तो कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है। यह सर्वे चार महिलाओं की याचिका के आधार पर हो रहा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि वह श्रृंगार गौरी का रोज पूजन करना चाहती हैं।
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि काशी विश्वनाथ के मंदिर को औरंगजेब ने तोड़ा था और फिर वहां पर मस्जिद का निर्माण कराया था। यह भी ऐतिहासिक तथ्य है कि वह शिवाजी के आगरा से अपनी उस कैद से भागे जाने को लेकर बहुत क्रोधित था, जो उसने उनके लिए तय कर रखी थी। परन्तु शिवाजी को रोकना संभव नहीं था। शिवाजी ने औरंगजेब को उसके ही घर जाकर मात दे दी थी और यही कारण था कि हिन्दुओं से हद तक नफरत करने वाला औरंगजेब हर उस मंदिर का शत्रु बन बैठा था, जो उसे दिखाई दे रहे थे।
उसे संदेह था कि मंदिरों द्वारा शिवाजी को सहायता दी गयी है। इसलिए उसने मथुरा काशी के मंदिरों को तुड़वा दिया था।
मासिर-ए-आलमगीरी में लिखा है कि बनारस में ब्राह्मण काफ़िर अपने विद्यालयों में अपनी झूठी किताबें पढ़ाते हैं और जिसका असर हिन्दुओं के साथ साथ मुसलमानों पर भी पड़ रहा है। आलमगीर जो इस्लाम को ही फैलाना चाहते थे, उन्होंने सभी प्रान्तों के सूबेदारों को आदेश दिए कि काफिरों के सभी विद्यालय और मंदिर तोड़ दिए जाएं और इन काफिरों की पूजा और पढाई पर रोक लगाई जाए!

फिर उसी वर्ष अर्थात 1669 में आगे आकर पृष्ठ 66 पर लिखा है कि यह रिपोर्ट किया गया कि बादशाह के आदेश से उसके अधिकारियों ने काशी में विश्वनाथ मंदिर तोड़ दिया!
वहीं बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के परवेज़ आलम एक शोधपत्र में लिखते हैं कि बनारस का मंदिर इसलिए औरंगजेब ने नहीं तुड़वाया था क्योंकि वह हिन्दुओं से नफरत करता था, बल्कि इसलिए तुडवाया था क्योंकि ब्राह्मण संगठित हो रहे थे और उन्होंने शिवाजी का साथ दिया था। बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण अकबर के समय राजा मानसिंह ने कराया था और उन्हीं के परिवार के राजा जय सिंह ने शिवाजी की सहायता की थी, जिस कारण औरंगजेब को अपमान सहना पड़ा था, इसलिए क्रोध में आकर औरंगजेब ने उस मंदिर को तुड़वा दिया।

वहीं किसी भीष्म नारायण पांडे का यह कहना है कि औरंगजेब एक बार बंगाल जाते समय बनारस में टिका तो उसने देखा कि कच्छ की रानी का अपमान वहां के पंडितों ने किया और जहाँ किया वह स्थान शिवलिंग के नीचे था। इसलिए क्रोध में आकर उसने उस मंदिर को तुड़वा दिया।
परन्तु कोनार्ड एल्स्ट इस दावे की हवा निकाल देते हैं क्योंकि इस बात का कोई सन्दर्भ ही नहीं प्राप्त होता है कि औरंगजेब बनारस होते हुए बंगाल गया था और उसके साथ कैसे राजपूत रानियाँ हो सकती हैं और कैसे रानी रक्षकों की उपस्थिति में गायब हो सकती हैं?
तो यह झूठी कहानी रची गयी और इस कहानी का उल्लेख पाकिस्तान और मुस्लिमों में झूठ फ़ैलाने के लिए एवं हिन्दुओं के प्रति घृणा फैलाने के लिए किया जा रहा है। इतना ही नहीं ऐसे ही कई आधारों पर यह भी निर्धारित किया जाता है कि चूंकि हिन्दुओं के मंदिरों में देवदासी आदि की प्रथा थी, तो मुगलों ने इस कारण मंदिर तोड़े।
लाहौर की तवायफों की मंडी हीरामंडी की तवायफों पर लिखी गयी किताब द डांसिंग गर्ल्स ऑफ लाहौर में हिन्दुओं के मंदिरों को नष्ट करने के लिए यही कारण दिया गया है कि मंदिरों में देवदासी अपनी देह बेचती थीं। या हिन्दू मंदिरों के बहाने शोषण करते थे।

इसमें लिखा है कि
“अब उत्तर भारत में मंदिरों में औरतों को नहीं दिया जाता है, जहाँ पर मुस्लिम शासकों के सैकड़ों वर्षों के शासन ने हिन्दू मंदिरों का प्रशासन अस्थिर कर दिया, बल्कि कुछ मामलों में तो उन्होंने मंदिरों को तोड़ ही दिया।”
अर्थात लाहौर में जो जिस्म की मंडी सजती है, उसके लिए लुईस ब्राउन मंदिरों को ही दोषी ठहराते हैं। जबकि यदि मंदिर दोषी होते भी तो भी पाकिस्तान इस समय तवायफों से मुक्त होता, पाकिस्तान ही क्यों हर इस्लामिक देश तवायफों से मुक्त होता, परन्तु क्या ऐसा है?
ऐसा नहीं है! आए दिन मदरसों से ही यौन शोषण के समाचार आते रहते हैं। आए दिन मुस्लिमों में हलाला के माध्यम से होने वाले वैध बलात्कार के मामले सामने आते हैं। यह भी बात सत्य है कि इनमें हिन्दुओं का या मंदिरों का या फिर पंडितों का कोई हाथ नहीं है।
कई राष्ट्रवादी सोशल मीडिया हैंडलर भी इस झूठ का शिकार होते हैं!
काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रति बोले जा रहे इस झूठ को फैलाने में जहां इस्लाम और वाम सबसे आगे हैं तो वहीं उसे सत्य मानने में कई ऐसे लोग भी आगे हैं जो स्वयं को राष्ट्रवादी मानते हैं! काशी विश्वनाथ मंदिर को बदनाम करने के समस्त प्रयास निष्फल होंगे एवं असत्य का अंधेरों से बाहर निकलकर सत्य आएगा ही!