अभी कश्मीर फाइल्स फिल्म पर चर्चा हो रही है और साथ ही यह भी बार बार कहा जा रहा है उसमें दूसरा पक्ष नहीं दिखाया जा रहा! क्या है दूसरा पक्ष? जब दुसरे पक्ष की बात की रही है तो उसके साथ ही वह तमाम समाचार हमें व्यथित कर रहे हैं, जो उस दूसरे पक्ष की नृशंसता को दिखा रहे हैं। वह दूसरा पक्ष लगातार अपनी असहिष्णुता को दिखा रहा है, वह बार-बार चुनौती दे रहा है कि देखो, यहाँ वही होगा जो होता आया है।
ऐसा ही आज फिर से कश्मीर में हुआ जब आतंकवादियों ने बुदगाम में तहसीलदार राहुल भट पर गोलियां चला दीं। राहुल भट को अस्पताल लेकर जाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया।
यह बहुत ही हैरान करने वाला तथ्य है कि बार-बार कथित कश्मीरियत के नाम पर शोर शराबा मचाने वाले इन हत्याओं पर मौन धारण कर लेते हैं। कश्मीरी पंडितों को अभी भी या तो जीनोसाइड या फिर सुसाइड में से एक को चुनने की विवशता है।
कश्मीरी पंडितों के लिए काम करने वाली संस्था पनुन कश्मीर ने यही कहते हुए ट्वीट किया कि कश्मीरी पंडित आर्थिक पैकेज के नाम पर कश्मीर में जीनोसाइड या स्युसाइड के बीच चुनने के लिए बाध्य हैं। और उन्होंने जीनोसाइड बिल को भी लागू करने की मांग की
हालांकि इस घटना की निंदा और विरोध होता जा रहा है, परन्तु निंदा और विरोध से क्या होगा? अभी भी जो लोग इस बात से इंकार कर रहे हैं कि कश्मीर में कश्मीरी हिन्दुओं के साथ कुछ हुआ भी था, वह अभी भी डिनाइल मोड में हैं, वह यह स्वीकार ही नहीं कर पा रहे हैं कि कश्मीरी पंडितों के साथ कुछ हुआ था! और जो कह रहे हैं कि कश्मीर में हिन्दुओं के साथ जो हो रहा है, वह कुछ विशेष नहीं है। वह होता रहता है, और इसके लिए मुस्लिमों को दोषी न ठहराया जाए।
यदि हिन्दुओं के साथ जो हो रहा है उस के विरोध में आवाज उठाई जाती है तो यह कहा जाता है कि हिन्दू कट्टर हो गया है, मुस्लिमों के लिए खतरा बढ़ रहा है आदि आदि! मुस्लिमों के लिए घृणा का माहौल बन रहा है, ऐसा बार बार आरोप लगाया जाने लगता है। तो ऐसे में प्रश्न उठता है कि हिन्दू क्या करे? हिन्दू अपना वह इतिहास भी न देखे जब उसके मंदिरों को मात्र इसलिए तोड़ दिया गया था कि जो आक्रमणकारी थे, उन्हें बुत पसंद नहीं थे?
हिन्दू बेचारा यह भी न प्रश्न करे कि उसे मारा क्यों जा रहा है? पलटवार करने की तो बात छोड़ ही दी जाए!
यह बात करना ही गुनाह है कि हिन्दुओं को मारा जा रहा है, फिर चाहे वह कश्मीर से लेकर कर्नाटक तक कहीं भी मारे जा रहे हों!
मुस्लिम पीड़ित हैं का नैरेटिव जब पूरे स्वर से गाया जा रहा है, उसी समय कश्मीर से लेकर गुजरात तक हिन्दुओं को मारा जा रहा है।
मगर लिब्रल्स को इससे कोई भी अंतर नहीं पड़ता, कितने भी हिन्दू मारे जाएं, मगर मुस्लिमों पर अत्याचार हो रहे हैं, यह नैरेटिव उन्हें सेट करना है। वहीं हिन्दू समाज भी विरोध और प्रतिरोध कर रहा है। कश्मीर घाटी एन रहने वाले कश्मीरी पंडितों के परिवारों और सरकारी कर्मचारियों ने राहुल भट की ह्त्या के विरोध में कश्मीरी उप-राज्यपाल के प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।
परन्तु प्रश्न यह भी है कि यह विरोध कितने दिन चलेगा? हिन्दुओं की लक्षित हत्या का विरोध कितने दिनों तक चल सकता है? और कौन है जो इस विषय को समझकर आगे बढ़ेगा? संभवतया कोई भी नहीं, ऐसे में मीडिया के सामने जैसे ही दूसरा मुद्दा आएगा, वैसे ही मीडिया वहां मुड़ जाएगा! मीडिया के सामने मुस्लिम खतरे में है का भी विषय आएगा, वह उसी नैरेटिव को उभारने लगेगा।
वहीं सेक्युलर्स कश्मीर फाइल्स पर बार-बार यही कहेंगे कि यह एकतरफा है, और उतने ही दिनों में हर रोज कोई न कोई हिन्दू लड़की किसी लव जिहाद का शिकार हो रही होगी, कोई न कोई हिन्दू लड़का इनकी हिंसा का शिकार हो रहा होगा और फिर जब फिर से कुछ दिनों में फिर से किसी कश्मीरी पंडित पर हमला होगा, तो फिर से कुछ लोग रीचार्ज होकर बातें करने लगेंगे!
फिर से निंदा का दौर होगा, फिर से चर्चाओं का दौर होगा, और उस चर्चा के दौरान फिर से यही कहा जाएगा कि “भारत में मुस्लिम खतरे में है” और दबा दी जाएँगी तमाम वास्तविकताएँ इसी नैरेटिव में!
राहुल भट की हत्या साधारण हत्या न होकर उसी जीनोसाइड का आगे का हिस्सा है, जो सदियों से हिन्दुओं के साथ होता आया है और जिसे क़ानून व्यवस्था का मामला बताकर हिन्दुओं के प्रति मजहबी घृणा को दबाने का असफल प्रयास किया जाता है!
परन्तु यह हर कोई जानता है कि यह हत्याएं विशुद्ध मजहबी हत्याएं हैं जो यह कहती हैं कि मजहबी वर्चस्व के आड़े नहीं आना है, जो कश्मीर से ऋषि कश्यप का एक एक प्रतीक विलुप्त करने के लिए लगी हुई हैं।