HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
26.2 C
Sringeri
Thursday, June 1, 2023

रिंकू शर्मा से लेकर रूपेश पांडे तक: कहानी वही है, मौन वही है, हिन्दू वही है, परन्तु पीड़ा के विमर्श से उनकी पीड़ा गायब है, बल्कि वही दोषी ठहराए जा रहे हैं!

13 फरवरी 2021, दिल्ली में रहने वाला रिंकू शर्मा उन लोगों के हाथों मारा गया था, जिनकी सेवा में वह लगा रहा था और जिसकी पत्नी को रिंकू शर्मा ने खून दिया था। कोरोना के दौरान जिनकी मदद की, उन्हीं लोगों ने उसे पीट पीट कर और फिर चाकू घोंप कर हत्या कर डी थी। रिंकू शर्मा की हत्या किस कारण हुई थी? पहले मीडिया ने बहुत दबाने की कोशिश की, परन्तु बाद में धीरे धीरे यह स्पष्ट हो गया था कि जिन लोगों को उसने अपना खून दिया था, उन्हें उसका “राम-मंदिर” के लिए चंदा मांगना पसंद नहीं आया था।

https://www.amarujala.com/photo-gallery/delhi/rinku-sharma-murder-case-rinku-donate-blood-to-accused-wife-help-in-brother-covid-treatment-then-why-islam-killed-him

25 वर्षीय युवक रिंकू की एकमात्र गलती उसका हिन्दू होना था, नहीं तो जिन लोगों के लिए उसने खून दिया था और जिनलोगों को उसने कोरोना के दौर में सहायता पहुंचाई थी, उसे वही लोग क्यों मार डालेंगे? क्यों उनके भीतर उस अहसान का एक कतरा भी मौजूद नहीं रहा होगा? क्यों ऐसा हुआ कि रिंकू चला गया और शेष रह गयी विश्वासघात की कहानी, जिसे पूरे हुए आज पूरा एक वर्ष हो गया है और जैसे रिंकू को घेरकर मारा गया था। दानिश, इस्लाम, जाहिद, मेहताब और ताजुद्दीन आदि को इस हत्याकांड में गिरफ्तार किया गया था।

दिल्ली में रिंकू को घेरकर मारने की घटना के बाद यदि यह मान लिया जाए कि ऐसी हर घटना बंद हो गयी, तो यह सबसे बड़ी अज्ञानता है। क्योंकि जहाँ रिंकू की ह्त्या मजहबी आधार पर हुई थी, जैसा उसके परिवार ने दावा किया था, कि रिंकू “राम मंदिर के लिए चंदा माँगता था, इसलिए आरोपी क्रोधित थे” हालांकि पुलिस ने पहले इसे आपसी लड़ाई और रंजिश बताया था, परन्तु बाद में इसे क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया।

रिंकू को जहाँ उन लोगों ने मारा जिनके लिए उसने अपने शरीर का खून दिया तो वहीं दिल्ली में हाल ही में एक दलित व्यक्ति हीरा का खून उस इरफ़ान ने कर दिया था, जिसे उसकी माँ हीरा की तरह अपना ही बेटा समझती थी।

38 वर्ष हीरालाल गुजराती दलित समुदाय से थे। उनके तीन बेटियाँ हैं। परन्तु अब हीरा की बेटियों के सिर पर उनके पिता का हाथ नहीं है। 17 जनवरी 2022 को ही उनके सिर से उनके पिता का साया इरफ़ान सिद्दीकी और शानू ने छीन लिया। परन्तु उसका कारण क्या था? उसके कारणों में हम क्या समझ सकते हैं? क्यों इरफ़ान ने उस माँ की गोद सूनी कर दी, जो उसे अपने ही बेटे के जैसे प्यार करती थी?

इरफ़ान ने उस माँ के बेटी के साथ पहले बलात्कार किया था, जो माँ उसे अपने बेटे के जैसे समझती थी। हीरालाल के भतीजे अर्जुन ने पुलिस को दी गयी शिकायत में लिखा था कि हीरालाल पर सुल्तानपुरी बी 4 कॉलोनी के डाडिया पार्क में हमला हुआ। हीरालाल और नरसिंह पार्क गए तो पहले ही मौजूद इरफ़ान सिद्दीकी और सानू मौजूद थे। चूंकि हीरालाल के घर वालों ने उसे जेल भिजवाया था, तो वह इस घटना से बहुत गुस्सा था। इरफ़ान ने हीरालाल पर चाकुओं से हमला कर दिया। और फिर उसे ईंटों से भी मारा गया।

हीरालाल की पत्नी विधवा हो गयी, और उसकी तीनों बेटियाँ अनाथ, परन्तु मीडिया में रिंकू शर्मा से लेकर हीरालाल गुजराती की हत्याएं भी हत्या का विमर्श पैदा नहीं कर पाईं, और वहीं झूठे एवं काल्पनिक शोषण पर विमर्श हो रहे हैं।

इतना ही नहीं सरस्वती विसर्जन के समय झारखण्ड में एक सत्रह साल के बच्चे की हत्या इस्लामी कट्टरपंथी भीड़ द्वारा कर दी जाती है, परन्तु जिस समय हिन्दुओं के खून से देश की धरती लाल हो रही है, उस समय मीडिया के लिए विमर्श यह आवश्यक है कि हिजाब कितना जरूरी है।

एक ओर हिजाब का मामला अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियाँ पा जाता है, परन्तु लावण्या जब निशाना बनती है, तो उस पर चर्चा नहीं हो पाती, चर्चा तो छोड़ ही दिया जाए, यदि लावण्या, कृष्ण भरवाड और अब रूपेश पांडे की हत्या पर कोई प्रश्न भी उठाता है तो यह कहा जाता है कि माहौल बिगाड़ा जा रहा है।

क्या हिन्दुओं की बात करना माहौल बिगाड़ना है? यहाँ तक कि उदारवादी मुस्लिम लड़कियों की आवाजें भी इस कट्टरपंथी शोर में दब रही हैं, मीडिया इस प्रायोजित शोर में क्या क्या दबा रही है, यह तब पता चलेगा जब यह दौर बीत जाएगा। परन्तु यह देखना बहुत दुखद है कि रिंकू शर्मा की हत्या के एक वर्ष बाद भी वह संवेदनशीलता के उस विमर्श का हिस्सा नहीं बन पा रही है, जिस संवेदनशीलता का हिस्सा वह कथित अल्पसंख्यक विमर्श बन जाता है जो पूरी तरह से प्रायोजित है, और जो उनकी भी पीड़ा है, वह भी इस बनावटी विमर्श के नीचे दब जाता है।

देशज पसमांदा मुस्लिमों की सभी समस्याएँ इस प्रायोजित विमर्श के नीचे दबकर रह गयी हैं।  

हालांकि दलित हीरालाल की हत्या पर मौन रहने वाली दिल्ली सरकार अब “दलित” प्रतीक भीम राव आंबेडकर की स्मृति में नाटकों का आयोजन कर रही है:

पर दिल्ली के मुख्यमंत्री इस बात पर खामोशी साध जाते हैं कि जिस दलित हीरालाल की हत्या हुई थी, उसके हत्यारों को कहीं राजनीतिक प्रश्रय तो प्राप्त नहीं है क्योंकि मीडिया के अनुसार इरफ़ान सिद्दीकी आम आदमी पार्टी का नेता है:
यह देखना होगा कि हिन्दुओं की हत्याएं कब विमर्श का हिस्सा बन पाती हैं? कब मीडिया उन कारणों पर बहस करेगा, परन्तु मीडिया क्यों खुद के विरुद्ध कार्य करेगा क्योंकि वामपंथी मीडिया तो स्वयं ही कहीं न कहीं इन हत्याओं के लिए उत्प्रेरक कार्य करता है, एकतरफा रिपोर्टिंग के माध्यम से? और जो मीडिया उस एक तरफ़ा और हिन्दुओं को गाली देने वाले विमर्श का हिस्सा नहीं बनता है उसे गोदी मीडिया कहकर अपमानित किया जाता है!

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.