कहने के लिए हिजाब का आन्दोलन कथित रूप से कर्नाटक में हो रहा है, परन्तु उसका समर्थन पूरा कट्टर इस्लामी जगत कर रहा है। हमने देखा था कि कैसे तालिबान और अल कायदा तक ने हिजाब गर्ल “मुस्कान” का समर्थन कर दिया था। इन दोनों ही कट्टरपंथी संगठनों ने यह बताया था कि यह मामला मुसलामानों का है और मुस्लिम जगत का है। “मुस्कान” सभी मुस्लिम लड़कियों के लिए आदर्श है आदि आदि!
खैर, अब मामला कुछ और है और कुछ अलग है। तालिबान और अलकायदा जहाँ से बोल रहे थे वहां पर मुस्लिमों के अतिरिक्त और कोई पंथ उन्होंने छोड़ा नहीं है। अत: अब उनका निशाना वह गैर-मुस्लिम हैं, जो उनके अल्लाह की बनाई दुनिया में अभी भी अपने धर्म या विश्वास के साथ टिके हुए हैं। हिजाब का मामला ऐसे काफिरों को सबक सिखाने के लिए प्रयोग किया जा रहा है।
और ऐसे में बांग्लादेश से बढ़कर कौन सा देश होगा, जो शेष हिन्दुओं को भी डराने धमकाने के लिए इस मुद्दे का प्रयोग न करे। बांग्लादेश में सिलहट के गोपालगंज उपजिला में एक हिन्दू शिक्षक को एक महीने के लिए छिपना पड़ा था क्योंकि उनके विरुद्ध एक अभियान चलाया गया था कि उन्होंने कक्षा में एक बच्ची का हिजाब जबरन हटवाया और इस्लाम का अपमान किया। घटनाएं इतनी तेजी से घटीं और अफवाहें इतनी तेजी से फैलीं कि दो जांच एजेंसी से उन्हें जांच करानी पड़ी। एक जांच स्कूल की गवर्निंग बॉडी ने की तो दूसरी जांच उपजिला प्रशासन ने, परन्तु शिक्षक के लिए स्थितियां ऐसी नहीं थीं कि वह वहां रुक पाते। और उन्हें छिपना पड़ा।
भादेश्वर नासिर उद्दीन हाई स्कूल और कॉलेज के कार्यवाहक प्रधानाध्यापक सुनील चन्द्र दास ने कहा था कि “चीज़ें जटिल हो गयी हैं, मैं छुट्टी ले रहा हूँ!”
मामला क्या था?
दरअसल मामला यह था कि 15 मार्च को जब महामारी के दो वर्ष उपरान्त स्कूल खुले तो स्कूल के अधिकारियों ने बच्चों की पढ़ाई के नुकसान को कम करने के लिए एसएससी अभ्यर्थियों के लिए विशेष कक्षाओं का आयोजन किया था। उस दिन गणित के शिक्षक अमिन उद्दीन अनुपस्थित थे, तो सुनील चन्द्र ने कक्षा ली थी। और उस दिन वह बच्चों को ऑक्सीजन के महत्व को समझा रहे थे और साथ ही उन्होंने फेस मास्क के प्रयोग के बारे में समझाया। उन्होंने विद्यार्थियों से एक गहरी सांस लेने के लिए कहा, हालांकि एक लड़की ने यह आपत्ति की कि वह यह पूरा नहीं कर पाएगी क्योंकि वह अपना नकाब नहीं हटा सकती!
इस पर सुनील चन्द्र ने उससे कहा कि “शिक्षक तो आपके मातापिता जैसे होते हैं, तो अपना पिता समझकर तुम यह नकाब हटा सकती हो!” ऐसा कुछ सहपाठियों एवं अभिभावकों का कहना है। लड़की ने बात मान ली और फिर उसने नकाब हटाकर यह कार्य किया। मगर मामले में मोड़ तब आया जब वह घर पहुँची तो उसने अपने अभिभावकों को सारी बात बताई और उसकी अम्मी ने गवर्निंग बॉडी के प्रेसिडेंट को फोन पर सारी घटना बताई। जबकि उसके अब्बा ने इस बात को फेसबुक पर पोस्ट कर दिया और उसकी बेटी के साथ जो कुछ भी उसके टीचर ने किया था, उसके लिए इंसाफ माँगा! देखते ही देखते खबर वायरल हो गयी और फिर लोगों ने फेसबुक पर यह मांग करनी शुरू कर दी कि निकाब और हिजाब के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में टीचर को सजा दी जाए!
जब स्थानीय लोग गुस्सा हो रहे थे तो सुनील चन्द्र कुछ और शिक्षकों के साथ बच्ची के घर गए और उन्हें सच्चाई बताई। जब परिवार वालों को सही बात बताई गयी तो बच्ची के अब्बा हलीम ने फेसबुक पर post लिखा कि उनकी बेटी के साथ जबरन निकाब हटाने की कोई घटना नहीं हुई, और टीचर मास्क के प्रयोग को बता रहे थे। मगर उसी बीच उसी कक्षा की किसी और लड़की का यह कहते हुए वीडियो वायरल हो गया कि टीचर ने बच्ची के चेहरे से जबरन निकाब हटाया था।
इस बात पर बहुत हंगामा किया गया परन्तु सुनील चन्द्र के साथ अब्दुल हलीम के घर 15 मार्च को जाने वाले अन्य टीचर्स ने कहा कि “कुछ लोग गलतफहमी पैदा करके फायदा उठाना चाह रहे हैं!”
अभियान चला रखा है
मीडिया की मानें तो यह एक अभियान चला रखा है। ऐसे आधे दर्जन मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें हिजाब हटाने के बहाने हंगामा किया गया। चित्तगौंग के मीरसराय में जोरारगंज बौद्ध हाई स्कूल के हेडमास्टर तुषार कान्त बरुआ ने तो स्कूल की समिति के निर्देशों के चलते एक अस्थाई त्यागपत्र दे दिया था। यह मामला था 29 मार्च का। जब एक बच्ची ने यह शिकायत की कि पीटी के पीरियड में उसे मैदान में हिजाब पहनने को लेकर पीटा गया।
बाद में पता चला कि वह बच्ची तो क्लास में थी ही नहीं।
सीसीटीवी से पता चला था कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था।

इतना ही नहीं नाओगांव में भी एक हिन्दू शिक्षक पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने हिजाब का अपमान किया। जबकि मामला यह था कि एक हिन्दू छात्रा सहित कुछ विद्यार्थियों को अनुशासनहीनता को लेकर डांट लगाई गयी थी।
ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे यह पूरा अभियान कर्नाटक में जो हिजाब को लेकर हंगामा हुआ है, उसके विरोध में बांग्लादेश में हिन्दू शिक्षकों के साथ हो रहा है। क्योंकि पाठकों को स्मरण होगा कि जब बांग्लादेश में दुर्गापूजा के दौरान हिन्दुओं पर हिंसा हुई थी तो बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने भारत को चेतावनी देते हुए कहा था कि भारत कुछ ऐसा न करे जिसका दुष्परिणाम बांग्लादेश के हिन्दुओं को झेलना पड़े!
वहीं बांग्लादेश में “हिजाबोफोबिया” से लड़ने के लिए लड़कियां तैयार हो रही हैं और वह सूची बना रही है उन लड़कियों की जो कहीं भी हिजाब पहनने की आजादी चाहती हैं। यह बहुत ही अजीब बात है कि जहां लड़कियों की आजादी की बात होनी चाहिए, तीन तलाक और हलाला जैसी कुप्रथाओं से छुटकारा पाने वाले अभियान चलने चाहिए तो वहीं अभियान चल रहे हैं कि निकाब और हिजाब कौन कितना पहनता है!