विदेश जाना हमेशा से ही एक बहुत बड़ी बात मानी जाती रही है। वहीं विदेश जा कर पढ़ना और फिर वहीं की नागरिकता ले लेना तो अधिकाँश लोगो के लिए एक स्वप्न ही है। भारतीयों को उनके अच्छी पढ़ाई लिखाई और अच्छे सामाजिक मूल्यों के लिए जाना जाता है, और यही कारण है कि विकसित देशों में भारतीय कामगारों और छात्रों की हमेशा से ही मांग रही है। दूसरी ओर अच्छे अवसर और बेहतर जीवन शैली के लिए भारतीय लोग भी विदेश जाना पसंद करते हैं।
पिछले कुछ दशकों में कनाडा भारतीय छात्रों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य के रूप में उभरा है । भारत से हर वर्ष हजारों बच्चे उच्च शिक्षा करने के लिए कनाडा जाते हैं, और शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात उन्हें वहां की नागरिकता भी बड़ी ही आसानी से मिल जाती है। नागरिकता मिलने के बाद उन्हें कई प्रकार के लाभ मिलते हैं, और यही कारण है कि कनाडा जाकर उच्च शिक्षा ग्रहण करना अपने आप में एक बड़ा व्यवसाय भी बन गया है।
इस समय लगभग 1.83 लाख भारतीय छात्र कनाडा में विभिन्न स्तरों पर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इस वर्ष जनवरी से अब तक कनाडा सरकार ने 4.52 लाख से अधिक अध्ययन परमिट आवेदनों को संसाधित किया है। पिछले वर्ष इसी अवधि में संसाधित किए गए 3.67 लाख की तुलना में 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
एक कहावत है, ‘दूर के ढोल सुहावने’ और यही इस बात पर लागू होता है। कनाडा जाना आसान है, लेकिन वहां के नियम कानूनों का पालन कर जीवन यापन करना उतना ही कठिन है। पिछले कुछ समय में कनाडा की ट्रूडो सरकार ने कुछ नीतियां बनाई हैं, जिनके कारण भारतीय छात्र बड़े ही परेशान हो गए हैं। कनाडा के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहे विदेशी छात्रों, जिनमे से भारतीय छात्रों की संख्या सबसे अधिक है, उन्होंने कनाडा सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े किए हैं।
कनाडा सरकार ने आर्थिक स्थिति से निबटने के लिए किया छात्रों का दुरूपयोग
छात्रों का कहना है कि कनाडा सरकार उनका दुरूपयोग श्रम के सस्ते स्रोत यानी ‘चीप लेबर’ के रूप में कर रही है, और जब उनका उपयोग हो जाता है, तब वह उन्हें देश छोड़ने के लिए बाध्य कर देती है। दरअसल बीते साल कनाडा में जस्टिन ट्रूडो की सरकार ने लगभग 50 हजार विदेशी छात्रों को स्नातक होने के पश्चात नौकरी ढूंढने के लिए 18 महीने तक रहने की अनुमति दी थी। यह वह समय था जब कनाडा की सरकार कोरोना के मामलेकम होने के पश्चात देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने का प्रयास कर रही थी।
खराब आर्थिक स्थिति से निबटने के लिए कनाडा की सरकार और कॉर्पोरेट कंपनियों को ‘सस्ते लेबर’ की आवश्यकता थी, और यही कारण था कि उन्होंने यह नई नीति लागू कर दी। इस नीति का फायदा भी हुआ, भारतीय छात्र अपने खाली समय में नौकरी करने लगे और कम मानदेय पर भी काम करने लगे। इसका लाभ सरकार और निजी कंपनियों को हुआ, और एक आशा भी बंधी कि इन छात्रों को भविष्य में अच्छे अवसर मिलेंगे।
लेकिन जैसे ही कनाडा की अर्थव्यवस्था सुधरी , सरकार ने इस नीति को बिना कारण बताये बंद कर दिया । अब हजारों भारतीय छात्रों के सामने संकट खड़ा हो गया है, अब उन्हें कनाडा छोड़ने के लिए कहा जा रहा है, और छात्रों में सरकार के प्रति आक्रोश है, क्योंकि आज सरकार ने उनका सहयोग करने के स्थान पर उन्हे अकेला ही छोड़ दिया है।
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, कनाडाई स्थानीय लोग बेरोजगारी से जूझ रहे हैं, जबकि भारतीय छात्रों को प्रवेश स्तर की नौकरियों में रखा जा रहा है। उन्हें स्थानीय नागरिको के ऊपर वरीयता दी जाती है, क्योंकि उन्हें स्थापित मानदेय से कहीं कम भुगतान किया जाता है, और उन्हें अधिक घंटों के लिए काम भी करवाया जाता है। हालांकि कुछ ही महीनों के पश्चात उनका वर्क वीसा समाप्त हो जाने पर उनके सामने ना सिर्फ आर्थिक समस्या उत्पन्न हो जाती है, बल्कि उन्हें देश छोड़ने के लिए भी कह दिया जाता है।
भारतीय छात्रों का भविष्य हो गया है अनिश्चित
इस लेख के अनुसार कनाडा में रहने वाले कई छात्रों ने अपने हाल बताए है। टोरंटो के पास सेनेका कॉलेज के एक एकाउंटेंट और पूर्व छात्र डैनियल डिसूजा ने ब्लूमबर्ग को दिए गए साक्षात्कार में कहा कि मैं अब पूरी तरह घर पर बैठा हूं। अब कुछ ना कमा पा रहा हूं ना बचत कर पा रहा हूं। यह नहीं जानता कि मुझे ऐसा कब तक करना होगा। डिसूजा कई अन्य स्नातकों की तरह 2021 कार्यक्रम का हिस्सा थे लेकिन अब उनका करियर रूका हुआ है और उनका भविष्य अनिश्चित है।
भारत, फिलिपींस सहित अन्य देशों के हजारों छात्रों को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी है क्योंकि उनका वर्क परमिट खत्म हो चुका है, और कनाडा की सरकार ने इसे बढ़ाने से मना कर दिया है। टोरंटो में अर्न्स्ट एंड यंग के पूर्व सलाहकार अंशदीप ब्रिंद्रा ने कहा कि जब उन्हें हमारी आवश्यकता थी तब उन्होंने कम पैसे में हमसे काम करवा कर हमारा शोषण भी किया। अब हमें उनकी आवश्यक्ता है तो कोई भी हमें पूछने वाला नहीं है। हम शुल्क और करों का भुगतान करते हैं और बदले में हमें कुछ नहीं मिलता। कनाडा की सरकार अब हमे नहीं पहचान रही, लेकिन हम उन्हें बताना चाहेंगे कि हम वे लोग हैं जिन्होंने आपकी ‘श्रम की कमी’ को हल करने सहायता की थी।
कनाडा की सरकार को उत्तर देना ही होगा
कनाडा में हर नौकरी के लिए एक निश्चित मानदेय होता है, जो घंटों के हिसाब से मिलता है। सरकार ने भारतीय छात्रों से काम करवाने के लिए नीति में बदलाव किया, लेकिन नीति में मानदेय नहीं बदले गए थे । हालांकि इसी नीति का दुरूपयोग कर भारतीय छात्रों से बहुत कम मानदेय पर कहीं अधिक कार्य करवाया जा रहा है। क्या यह श्रम कानूनों का उल्लंघन नहीं है ? क्या कनाडा की सरकार और निजी क्षेत्र की कंपनियां इस तरह का छल करके भारत और अन्य देशों के साथ अपने संबंधों को खराब करने का प्रयास नहीं कर रही है? कनाडा की सरकार को इन प्रश्नों के उत्तर देने ही होंगे।
सरकार दे रही है आश्वासन, लेकिन नीतियां कुछ और ही कह रही हैं
अप्रवासी मंत्री सीन फ्रेजर ने कहा कि वह प्रभावित लोगों को बेहतर समर्थन देने के तरीकों पर विचार कर रहे हैं, खासकर वह लोग जो स्थाई रूप से बसना चाहते हैं। सरकार “जबरदस्त सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक लाभों को पहचानती है” जो विदेशी छात्र लाते हैं, और हम उनका समर्थन करेंगे।
हालाँकि, सरकार की नीति उनके इस वक्तव्य से एकदम उलट काम कर रही है। इस नीति ने भारतीय छात्रों को एक बड़ा झटका दिया है, और यह भारतीय छात्रों और श्रमिकों के भविष्य में होने वाले कनाडा प्रवास को प्रभावित भी कर सकता है। यह कनाडा सरकार की विश्वसनीयता को भी कम करेगा, जो 2022-23 में हजारों लोगों के लिए आप्रवास खोलने की योजना बना रही है। हम आशा करते हैं किकनाडा सरकार इस मामले को प्राथमिकता के आधार पर हल करने के लिए सुधारात्मक कार्रवाई करेगी, और भारतीय छात्रों को आश्वस्त करेगी कि उनके साथ कोई अन्याय नहीं होने दिया जाएगा।